-डा. अश्विनी महाजन-
जनवरी 2023 के अंतिम सप्ताह में हिंडनबर्ग रिसर्च नाम की एक फर्म ने अडानी समूह के खिलाफ कुछ गंभीर आरोप लगाए थे जिसमें धोखाधड़ी और गलत तरीके से शेयर कीमतों को प्रभावित करने के आरोप भी शामिल थे। उसके बाद अडानी समूह की कंपनियों के शेयरों के भाव में भारी गिरावट आ गई थी। हालांकि पिछले कुछ सप्ताह से अडानी समूह के शेयरों के भाव में थोड़ा-बहुत सुधार भी हुआ, लेकिन इस समूह के मुखिया गौतम अडानी, जो 24 जनवरी 2023 तक दुनिया के तीसरे सबसे अधिक धनाढ्य व्यक्ति बन चुके थे, की सम्पत्ति इतनी घट गई कि उनका नाम दुनिया के 100 धनी लोगों की सूची से भी हट गया। हालांकि अडानी समूह के शेयरों में कुछ बेहतरी के बाद अब अडानी वापस कम से कम विश्व के 26वें सबसे धनी व्यक्ति तो रह ही गए हैं। अडानी की कुल संपत्ति जो वर्ष के शुरू में 121 अरब डालर की थी, 22 फरवरी 2023 तक घटकर 43.4 अरब डालर ही रह गई। गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी सरकार आने के बाद गौतम अडानी समूह की कंपनियों का तेजी से विस्तार हुआ है। विपक्षी दलों द्वारा यह भी आरोप लगाया जाता रहा है कि सरकार द्वारा इस समूह को जरूरत से ज्यादा समर्थन दिया गया है। हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट के बाद विपक्षी दलों ने भी अडानी समूह और उसके बहाने प्रधानमंत्री मोदी पर हमला तेज कर दिया है। विकिपीडिया, जो देश-दुनिया में महत्वपूर्ण लोगों, कंपनियों, देश और विश्व की परिस्थितियों के बारे में जानकारी का एक प्रमुख स्रोत माना जाता है, के अधिकारियों ने कुछ दिन पहले यह आरोप लगाया है कि अडानी समूह के कर्मचारियों और उनसे जुड़े लोगों ने अडानी, उनके परिवार और कंपनियों की जानकारियों के संबंध में छेडख़ानी की। हालांकि हिंडनबर्ग रिसर्च स्वयं को फोरेंसिक वित्तीय शोध फर्म कहती है, लेकिन उसका मुख्य काम शेयर बाजार में शॉर्ट सेलिंग का है।
जब कोई व्यक्ति या फर्म अपने अधिकार में शेयर न होने पर भी शेयर बेचने का सौदा करती है तो उसे शॉर्ट सेलिंग कहा जाता है। ऐसे में शेयर का दाम भविष्य में कम होने पर शॉर्ट सेलर को फायदा होता है और यही फायदा अडानी के शेयरों की कीमत कम होने पर हिंडनबर्ग को भी मिला। इससे पहले भी हिंडनबर्ग अपने इस शॉर्ट सेलिंग व्यवसाय में फायदे के लिए 16 कंपनियों पर गलतियों और धोखाधड़ी के आरोप लगाकर फायदा कमा चुकी है। इसमें इलैक्ट्रिक ट्रक कंपनी, निकोला कॉरपोरेशन और एलॉन मस्क द्वारा ट्वीटर के अधिग्रहण के संदर्भ में ट्वीटर के बारे में खुलासे शामिल हैं। यानी हिंडनबर्ग पर भी आरोप है कि उसके ये खुलासे उसके व्यवसाय से जुड़े हैं, इसलिए इसमें हितों के टकराव का मामला बनता है। इससे पहले हिंडनबर्ग पर जुलाई 2022 में एबिक्स नाम की कंपनी द्वारा दिल्ली के तीसहजारी न्यायालय में मुकदमा दायर किया गया था, जिसमें कोर्ट के आदेश अनुसार गूगल और ट्वीटर को हिंडनबर्ग द्वारा दी गई जानकारी को हटाने का आदेश दिया गया था। दिलचस्प बात यह है कि उस मामले में हिन्डनबर्ग की तरफ से कोई प्रतिकार भी नहीं हुआ था।
यह भी समझने की जरूरत है कि 2014 के बाद और खासतौर पर पिछले 3-4 वर्षों में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भारत सरकार अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में घरेलू पूंजी पर आधारित औद्योगीकरण और इन्फ्रास्ट्रक्चर के निर्माण पर जोर दे रही है। अडानी समूह का विस्तार उसी प्रक्रिया का हिस्सा माना जाता है। गौरतलब है कि अडानी विश्व स्तरीय इंफ्रास्ट्रक्चर एवं अन्य लोजेस्टिक, खनन, धातु, ऊर्जा समेत विभिन्न प्रकार के व्यवसायों में देश का सबसे तेजी से बढ़ता समूह बन चुका है। अगर केवल अडानी एयर पोट्र्स की बात की जाए तो मुंबई, अहमदाबाद, लखनऊ, बेंगलूरू, जयपुर, गुवाहटी, तिरूवंतपुरम् समेत कई एयरपोर्टों का विकास एवं संचालन अडानी समूह द्वारा किया जा रहा है। अडानी समूह द्वारा एयरपोर्ट निर्माण और संचालन से पहले जिन कंपनियों ने एयरपोर्ट निर्माण के ठेके लिए थे, वे सभी विदेशी पूंजी पर आधारित थे। नजदीक से देखने से पता चलता है कि अडानी समूह ने जलपोतों, ट्रांसमिशन, एयरपोर्ट, सौर ऊर्जा, सडक़ निर्माण और कृषि भंडारण इत्यादि के क्षेत्र में 3 लाख करोड़ रुपए से भी ज्यादा का निवेश करके भारत को आत्मनिर्भरता की ओर बढऩे में मदद की है। 20 हजार मेगावाट के सौर ऊर्जा की क्षमता का निर्माण कर नवीकरणीय ऊर्जा में भी अडानी समूह एक उदाहरण बन चुका है।
हाल ही में शुरू अडानी ग्रीन एनर्जी नाम की कंपनी द्वारा बड़ी मात्रा में सोलर पैनल और अन्य उपकरण बनाए जा रहे हैं, जिससे देश की निर्भरता चीन समेत दूसरे मुल्कों पर घटने लगी है। अभी हाल ही में भारत सरकार द्वारा सेमीकंडक्टर प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता के उद्देश्य से एक बड़ा प्रयास किया गया है और सरकार सेमीकंडक्टर उद्योग को लगभग 60 हजार करोड़ रुपए के उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन देने की घोषणा कर चुकी है। उसी के तहत ऐसा माना जा रहा है कि जल्द ही अडानी समूह द्वारा बनाये गये सेमीकंडक्टर बाजार में उतर जायेंगे। देश में एक वर्ग का यह मानना है कि पश्चिमी देशों को भारत में बढ़ती आत्मनिर्भरता रास नहीं आ रही। पश्चिम की संस्थाएं और भारत विरोधी ताकतें भारत की इस तरक्की को बाधित करने हेतु तमाम प्रयास कर रहे हैं। हिन्डनबर्ग की रिपोर्ट हो अथवा जॉर्ज सोरोज़ का भारत सरकार पर हमला, ये इसी ओर संकेत करते हैं। इससे पहले भी वेल्ट हंगर हिल्फे द्वारा विश्व भूख सूचकांक की रिपोर्ट हो अथवा अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों की कारगुजारियां इसी दुष्प्रचार का हिस्सा माना जा रहा है। जहां तक शेयर बाजारों में शेयरों के भाव को प्रभावित करने की बात है, देश और दुनिया में यह कोई पहला उदाहरण नहीं है। मूल बात यह है कि अडानी समूह ने परिसंपत्तियों का निर्माण किया है, जो वास्तविक है। हाल ही के वर्षों में कई ऐसी कंपनियों के शेयरों के भाव भी आसमान छूते दिखाई दे रहे थे जिनके पास अपनी कोई परिसंपत्ति ही नहीं थी। ये कंपनियां कैश बर्निंग मॉडल के आधार पर उपभोक्ताओं को विभिन्न प्रकार के डिस्काउंट देकर अपने बाजार का विस्तार कर रही थी और अपनी वैल्यूशन बढ़ा रही थी। आज स्थिति यह है कि भारत में पेटीएम, जोमैटो, नाइका, फ्लिपकार्ट सरीखी अनेक कंपनियां जो इस कैशबर्निंग मॉडल को अपनाकर आगे बढ़ रही थी, जिन्होंने सेबी के माध्यम से आईपीओ जारी कर आम निवेशकों से धन ईकट्ठा किया, उनके शेयरों में अधिकांश निवेशकों का 40 प्रतिशत से लेकर 70 प्रतिशत तक धन डूब चुका है। वास्तव में किसी एक कम्पनी का शेयर हो अथवा शेयर बाज़ार, इनमें उतार-चढ़ाव सेंटिमेंट्स यानी भावनाओं पर निर्भर करता है।
बाज़ार भावनाओं के कारण कई बार शेयर बाज़ारों में गिरावट का यह कोई पहला मामला न है। यदि कम्पनी के बिजऩेस में दम हो तो शेयर फिर से बढ़ जाते हैं। समझना होगा कि अडानी की कम्पनियां भी सुदृढ़ बिजऩेस पर आधारित हैं। यही नहीं समूह ने बाज़ार भावनाओं को ठीक करने के लिए अपने कज़ऱ् को भी कम कर लिया है, जिसके कारण समूह के शेयरों के भावों में सुधार हुआ। गौरतलब है कि जब भारत के अनेक धनाढ़्य लोग यह मानकर कि भारत में रहना लाभप्रद नहीं है, अपनी संपत्तियां बांधकर विदेशों को स्थानांतरित हो गये और कुछ धनाढ़्य लोगों ने भारत में ही रहकर उद्यम बढ़ाने का निर्णय लिया तथा तेजी से विस्तार भी किया, तो चाहे वो अंबानी हो, अडानी हो, टाटा हो, महेंद्रा हो, बिरला समूह की कंपनियां हों, आईटीसी हो अथवा एलएंडटी, इन समूहों और कंपनियों ने भारत की ग्रोथ यात्रा को आगे बढ़ाने का काम किया है। इन कंपनियों और व्यवसायों को भारत सरकार का भी भरपूर समर्थन मिल रहा है। निश्चित रूप से ये कंपनियां कैशबर्निंग व्यवसायों से बेहतर काम कर रही हैं। ऐसे में विदेशी एजेंसियों द्वारा भारतीय उद्यमों पर किये गये हमलों से इन कंपनियों को बचाना होगा। यदि किसी भी प्रकार की गलती इन कंपनियों द्वारा की भी जाती है तो उसे भी देश के कानूनों के अनुसार दुरुस्त करना जरूरी होगा।