हरियाणा सरकार, बनें दुष्यंत आधार?

asiakhabar.com | October 25, 2019 | 5:34 pm IST
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संयोग गुप्ता

हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस की कांटे की टक्कर के बीच दुष्यंत चौटाला की
जननायक जनता पार्टी किंगमेकर बनकर उभरी है। हरियाणा विधानसभा चुनाव के परिणामों के मुताबिक
दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (जजपा) प्रदेश में किंगमेकर की भूमिका निभा सकती है।
हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों में से भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस 40-31 सीटों के साथ एक-
दूसरे के सामने डटी हुई है। लेकिन जजपा 10 सीटों के साथ किंगमेकर की भूमिका में दिखाई दे रही है
क्योंकि, भाजपा तथा कांग्रेस दोनो के पास इतना बहुमत नहीं है कि वह सरकार अपने दम पर बना सकें,
इसलिए जजपा तथा अन्य निर्दलीय उम्मीदवारों को साथ लेना हरियाणा की राजनीति में आवाश्यक है
फिर चाहे वह भाजपा हो अथवा कांग्रेस दोनों पार्टियों कि स्थिति लगभग एक ही जैसी है क्योंकि, दोनों
बड़ी पार्टियाँ अपने दम पर सत्ता में आने की क्षमता नहीं रखतीं। जो भी पार्टी सत्ता के सिंहासन की ओर
गतिमान होने का प्रयास करेगी उसे अन्य विधायकों को अपने साथ लाना ही पड़ेगा। जिसमें भाजपा सत्ता
के समीप है। क्योंकि, भाजपा को मात्र छह विधायकों की आवश्यकता है जबकि कांग्रेस को सत्ता के
सिंहासन पर विराजमान होने के लिए पन्द्रह विधायकों की आवश्यकता है। यदि कांग्रेस सत्ता में आने का
प्रयास करती है तो उसके लिए रास्ते आसान नहीं हैं क्योंकि 15 विधायकों को अपने साथ जोड़ना आसान
काम नहीं होता। जबकि भाजपा को मात्र 6 विधायकों की आवश्यकता है। तो कांग्रेस के अनुपात में
भाजपा सत्ता के बहुत ही निकट है। जोकि पुनः सत्ता में वापसी कर सकती है।

अवगत करा दें कि जननायक जनता पार्टी को दुष्यंत चौटाला ने करीब ग्यारह महीने पहले अपने दादा
ओमप्रकाश चौटाला और चाचा अभय चौटाला से अनबन के बाद खड़ा किया था। परन्तु इतने कम समय
में वह प्रदेश में अपनी उपस्थिति दर्ज कर पाने में सफल रहे हैं। यह बड़ी बात है। जजपा ने सबसे पहले
जनता का ध्यान अपनी ओर तब खींचा जब जींद में विधानसभा का उपचुनाव हुआ था तब भाजपा की
तरफ़ से कृष्णा मिड्ढा, कांग्रेस की तरफ़ से प्रमुख चेहरा रणदीप सुरजेवाला और जजपा की तरफ़ से
दुष्यंत चौटाला के छोटे भाई दिग्विजय चौटाला मैदान में थे। उस चुनाव में जीत का सेहरा भले ही कृष्णा
मिड्ढा के सिर बंधा, लेकिन सुर्ख़ियां सुरजेवाला जैसे कद्दावर नेता को पीछे छोड़कर दिग्विजय चौटाला ने
बटोरी थीं तभी से दुष्यंत और दिग्विजय चौटाला को हरियाणा की राजनीति में लंबी रेस का घोड़ा माना
जाने लगा था इस दौरान जजपा पर ‘बच्चों की पार्टी’ जैसे तंज भी जमकर कसे गए लेकिन इस
विधानसभा चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन ने आलोचकों का मुंह को पूरी तरह से बंद कर दिया। अपने
राजनीतिक करियर की शुरुआत से ही दुष्यंत, दादा ओमप्रकाश चौटाला के दायरे से बाहर जाकर अपनी
अलग पहचान बनाने में जुट गए थे यहीं से वह अपने चाचा और दादा की आंखों में खटकने लगे थे
लेकिन क्षेत्र में अपनी जबरदस्त पकड़ के चलते दुष्यंत 2014 के लोकसभा चुनाव में सांसद बन पाने में
सफल रहे तब उनकी उम्र महज 25 साल ही थी और उस लोकसभा चुनाव में एक से एक दिग्गज नेता
भी मोदी लहर में धराशाई हो गए थे। अपने सहज स्वभाव, मुद्दों पर पकड़ और गंभीर छवि के चलते
दुष्यंत हरियाणा के जाट युवाओं के बीच खासे लोकप्रिय हुए इसके अलावा दुष्यंत जजपा के अस्तित्व में
आने के बाद से ही अपने परदादा चौधरी देवीलाल के नाम पर लोगों से समर्थन जुटाते रहे हैं अपनी
चुनावी सभाओं में खेती-किसानी के मुद्दों को प्रमुखता से उठाकर उनकी पार्टी ने ताऊ देवीलाल से जुड़ाव
महसूस करने वाले किसानों को अपने पक्ष में लाने की हरसंभव कोशिश की। जोकि पूरी तरह से सफल
हुई। जजपा के अब तक के सफ़र में दुष्यंत चौटाला के छोटे भाई दिग्विजय चौटाला की भूमिका भी
सकारात्मक मानी जाती है। हरियाणा के राजनैतिक विश्लेषक एकमत से मानते हैं कि इस चुनाव में प्रदेश
के जो जाट मतदाता कांग्रेस के साथ नहीं गए, वह सभी और कहीं बंटने के बजाय पूरी तरह से जजपा
की तरफ चले गए। हरियाणा का राजनीतिक इतिहास इस बात का गवाह रहा है कि प्रदेश के मतदाता
अक्सर नई पार्टियों पर अपना भरोसा जताते रहे हैं इनेलो और पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल की हरियाणा
जनहित कांग्रेस (हजका) इसका स्पष्ट उदाहरण है।
अब देखना यह है कि दुष्यंत चौटाला, कांग्रेस या भारतीय जनता पार्टी में से किसके साथ जाना पसंद
करेंगे? सबसे बड़ी बात यह है कि दुष्यंत अपने जाट समर्थकों को कदापि नाराज नहीं करना चाहेंगे
क्योंकि यदि लंबी पारी खेलनी है तो समीकरणों को साधना ही पड़ेगा। परन्तु राजनीति में समस्या यह
होती है कि विधायकों का खरीद फरोख्त, जिसमें रातों रात सारे समीकरण बदल जाते हैं और सुबह की
तस्वीर दूसरी हो जाती है। इस स्थिति में दुष्यंत के लिए विधायकों को अपने पाले में रखना सबसे बड़ी
चुनौती हो सकती है। क्योंकि, 2009 के विधानसभा चुनाव में आज की जजपा की तरह हरियाणा जनहित
कांग्रेस के छह विधायक जीते थे उस समय हजपा प्रमुख कुलदीप बिश्नोई का भी क़द दुष्यंत चौटाला की
तरह ही रातों-रात बढ़ गया था लेकिन ऐन मौके पर हजका के पांच विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए।
किसी पार्टी के दो-तिहाई विधायकों के दूसरी पार्टी में चले जाने पर दल-बदल कानून का उल्लंघन नहीं
होता अतः राजनीति के महारथी अपने समीकरणों को साधने में किसी भी प्रकार की कमी नहीं छोड़ते,

और जब मौका हो सरकार बनाने का तो फिर कुछ भी हो सकता है किसी भी प्रकार का प्रयोग किया जा
सकता है।


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