हमारी लापरवाही हमें संकट में डाल देती है

asiakhabar.com | July 27, 2023 | 6:40 pm IST
View Details

-हरीश कुमार-
दक्षिण पश्चिमी मानसून भारत में कुल वर्षा का लगभग 86 प्रतिशत योगदान देते हैं. भारत में मानसून का समय जुलाई से लेकर लगभग सितम्बर तक रहता है. इस दौरान अत्यधिक वर्षा होती है, तो ऐसे में बाढ़ आना स्वाभाविक है. वास्तव में, बाढ़ एक भयंकर प्राकृतिक आपदा है. इसके कारण जब नदी उफनती है तो वह आसपास के क्षेत्रों को अपनी चपेट में ले लेती है. किसान की वर्षों की मेहनत और उसके खेत बाढ़ के कारण नष्ट हो जाते हैं. गांव और कस्बों में बाढ़ का प्रकोप इतना भयानक होता है कि कई महीनों तक स्थिति सामान्य नहीं हो पाती है. यातायात के सारे संसाधन तबाह हो जाते हैं. लोगों के घर भी डूब जाने के साथ साथ कई दिनों तक बिजली और अन्य बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं. इससे प्रभावित लोगों की दशा दयनीय और असहाय हो जाती है. यह लोग अपना घर-बार छोड़कर सरकार द्वारा लगाए गए कैंपों में रहने पर मजबूर हो जाते हैं. दुर्भाग्यवश इन कैंपों में साफ़ सफाई का उचित प्रबंध नहीं होता है. जिसकी वजह से लोगों को कई तरह के रोगों का शिकार भी होना पड़ता है.
बाढ़ में फंसे लोगों तक मदद पहुंचाना इतना आसान काम नहीं होता है. लोग अपने पक्के घरों के छत ऊपर रहने के लिए विवश हो जाते हैं. हमारे सेना के जवान भी बाढ़ में पीड़ित लोगों की मदद करने में कभी पीछे नहीं हटते हैं. खाने और जरूरी सामग्री को हेलीकॉप्टर द्वारा पहुंचाया जाता है. जवानों की मदद से ही बाढ़ग्रस्त इलाकों में पहुंचा जाता है और वहां फंसे लोगों को नाव के माध्यम से या किसी अन्य संसाधन के ज़रिये सुरक्षित स्थानों पर ले जाया जाता है. हालांकि इसमें उनकी जान को भी खतरा रहता है. इसी वर्ष मानसून के कारण आई बाढ़ में दूसरों को राहत पहुंचाने वाले सेना के दो जवानों को ही अपनी जान गंवानी पड़ी है. बात बीते कुछ दिन पहले की है जब भारी बारिश के कारण अचानक आई बाढ़ में बहे 2 सैनिकों के शव जम्मू-कश्मीर के पुंछ में बरामद हुए थे. सेना के अधिकारियों ने जानकारी दी कि दोनों जवान सुरनकोट इलाके में डोगरा नाले को पार कर रहे थे और इस दौरान बारिश के कारण आई बाढ़ के तेज बहाव में वह बह गए. इस वक्त देश के अन्य राज्यों की तरह जम्मू कश्मीर में भी कई जगहों पर भारी बारिश के कारण अचानक बाढ़ आई हुई है. जवान इस बात का सही अंदाजा नहीं लगा पाए और इसी के चलते वह दोनों तेज बहाव में बह गए.
जम्मू-कश्मीर के पुंछ जिला की तहसील सुरनकोट शहर में भारी बारिश के कारण नालों का पानी दुकानों और मकानों में प्रवेश कर जाता है. जिससे लोगों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. लेकिन स्थानीय प्रशासन की ओर से इस समस्या का समाधान नहीं करने पर लोगों में नाराज़गी भी रहती है. पिछले महीने स्थानीय प्रभावित लोगों ने अपने गुस्से का इज़हार करते हुए तहसील प्रशासन और नगर पालिका के खिलाफ आक्रोश व्यक्त करते हुए नारेबाजी और प्रदर्शन भी किया था. प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि तहसील प्रशासन की लापरवाही से उनके घरों व दुकानों में पानी घुसा है और लाखों का नुकसान हुआ है. यह हर साल की समस्या है. फिर भी प्रशासन इसका कोई समाधान नहीं निकालता है. इस संबंध में स्थानीय निवासी अनिल कुमार का कहना है कि एक वर्ष पहले जब कस्बे में में बाढ़ आने से सैकड़ों घरों व दुकानों में 8 से 10 फुट तक पानी भर गया था, तब तहसील प्रशासन ने इसके लिए नालों पर हुए अतिक्रमण को जिम्मेदार ठहराया था. इसके बाद दिखावे के लिए कुछ स्थानों पर नालों से अतिक्रमण भी हटाया गया था. लेकिन जिन स्थानों से नालों का पानी मोहल्ले में जमा होता है, उस तरफ कोई कार्रवाई नहीं की गई. इस बार आई बाढ़ में भी लोगों को फिर से लाखों का नुकसान उठाना पड़ा है.
दरअसल बाढ़ के प्रतिकूल प्रभावों में शामिल कुछ ऐसी समस्याएं हैं, जो मानव को कई वर्ष पीछे ले जाती हैं. इस तबाही में मानव जीवन की हानि तो होती ही है, बड़ी संख्या में संपत्ति और बुनियादी ढांचे को भी नुकसान पहुंचता है. सड़कें बर्बाद हो जाती हैं. भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है. इसी भूस्खलन के कारण जम्मू कश्मीर के डोडा जिले में पिछले दिनों एक बस खाई में जा गिरी थी. जिसमें दो लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी. इस संबंध में पुंछ के रहने वाले 90 वर्षीय बुजुर्ग पूर्ण चंद कहते हैं कि समय के साथ मौसम पूरी तरह बदल चुका है. 8-10 वर्ष पहले तक सर्दियों में हमारे यहां तीन चार बार बर्फ पड़ जाती थी. लेकिन अब मौसम में ऐसा बदलाव आया कि अब सर्दियों में एक बार भी बर्फ नहीं पड़ती है. हम बर्फ पड़ने को अच्छा मानते हैं क्योंकि इससे सूखी सर्दी नहीं होती है. सूखी सर्दी के कारण बच्चे काफी लंबे समय तक बीमार पड़ जाते हैं.
बुज़ुर्ग पूर्ण चंद बदलते मौसम और जलवायु परिवर्तन के लिए इंसान को सबसे बड़ा ज़िम्मेदार मानते हैं. वह कहते हैं कि मनुष्य अपनी लालच में प्रकृति के साथ खिलवाड़ करता है, जिसका नतीजा अंत में उसे ही भुगतनी पड़ती है. विकास के नाम पर मनुष्य ने विनाश लीला रचा दी है. वह कहते हैं कि पहले जब हम छोटे होते थे तो गांव में 4-5 घर ही मिलते थे. अब आबादी ज्यादा बढ़ गई है, जगह जगह मशीनें लगी हैं. लोग कंक्रीट के घर बना रहे हैं. जहां घर होंगे, वहां सड़कें भी बनेगी. इन सड़कों के लिए जंगलों की लगातार कटाई हो रही है. गर्मियों में लोग अपने माल मवेशियों के घास के लिए जंगलों में आग लगा देते हैं ताकि नई घास अच्छे से उग सके. जहां लोगों को पेड़ लगाने चाहिए ताकि पेड़ों की जड़ें मिट्टी को काबू में रखें, वहां लोग दिन-रात पेड़ काट रहे हैं. ऐसे में बाढ़ का आना लाजमी है. दरअसल इस लापरवाही के ज़िम्मेदार हम खुद हैं. विकास के नाम पर जब तकनीकों का गलत इस्तेमाल होगा और उससे प्रकृति को नुकसान पहुंचाया जाएगा तो आपदा का सामना करनी ही पड़ेगी.


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *