संयोग गुप्ता
गत सप्ताह मंत्रिमंडल में हुए फेरबदल में सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने इस्तीफा दे दिया है। इस
इस्तीफे के पीछे दो संभावनाएं हैं। एक संभावना है कि श्री रवि शंकर प्रसाद ने ट्विटर एवं दूसरी सोशल मीडिया
कंपनियों पर प्रधानमंत्री की इच्छा से इतर अधिक सख्ती की जिसके फलस्वरूप इन सोशल मीडिया कंपनी द्वारा
देश एवं प्रधानमंत्री स्वयं की वैश्विक रैंकिंग पर प्रभाव पड़ सकता था। इसलिए प्रधानमंत्री ने इनका इस्तीफा मांग
लिया। दूसरी संभावना है कि रवि शंकर प्रसाद ने इन कंपनियों पर पर्याप्त सख्ती नहीं की जिससे देश के भविष्य
पर संकट आ सकता था और हल्का-फुल्का दिखावटी काम करके इनके गलत कार्यों पर रोक नहीं लगाई, इसलिए
प्रधानमंत्री ने इनका इस्तीफा मांग लिया। इन दोनों संभावनाओं में सत्य क्या है, यह तो प्रधानमंत्री स्वयं ही जानते
हैं। बहरहाल विषय महत्त्वपूर्ण है क्योंकि सरकार के सामने दो परस्पर विरोधी उद्देश्य हैं। एक उद्देश्य है कि देश
एवं प्रधानमंत्री की वैश्विक पैठ बनाए रखने में सोशल मीडिया का सहयोग लेते रहना। दूसरा उद्देश्य है देश की
जनता के प्रति जवाबदेही और देश हित को हासिल करने के लिए सोशल मीडिया पर नियंत्रण करना। आज से 300
वर्ष पूर्व भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी माल का व्यापार करने के लिए आई थी। भारत के राजाओं ने उन्हें व्यापार
करने की छूट दी। इनके द्वारा कोई फर्जी या झूठा माल बेचा गया हो, ऐसा संज्ञान में नहीं आता है। लेकिन सच्चा
माल बेचने के बावजूद इनके प्रवेश के 200 वर्षों के अंदर ही भारत का विश्व आय में हिस्सा 23 फीसदी से घटकर
मात्र 2 फीसदी रह गया। आप यह सोचिए कि यदि सच्चे माल के व्यापारी के प्रवेश से ही देश की ऐसी दुर्गति हो
सकती है तो सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा फर्जी सूचना परोसने से देश की कितनी हानि हो सकती है! इन सोशल
मीडिया कंपनियों के द्वारा क्या सूचना परोसी जाती है, इस पर वर्तमान में देश की जनता अथवा सरकार का कोई
भी नियंत्रण नहीं होता है। ये स्वतंत्र हैं। जैसे पिछले अमरीकी चुनाव के पहले ट्विटर ने अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप के
खाते को ब्लॉक कर दिया था।
उनका कहना था कि राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा गलत सूचनाएं डाली जा रही हैं। इसी क्रम में बीते समय में भाजपा के
कुछ नेताओं की पोस्ट को भी ट्विटर ने ब्लॉक कर दिया था। प्रश्न यह है कि इन सूचनाओं के सही और गलत
होने का निर्णय कौन लेगा? और किस उद्देश्य से लेगा? यह निर्णय यदि जनता के हित हासिल करने के उद्देश्य
से लिए जाएं तो स्वीकार होते हैं, जबकि यही निर्णय यदि सोशल मीडिया कंपनी के वाणिज्यिक स्वार्थों को बढ़ाने के
लिए लिए जाएं तो देश और जनता की अपार हानि हो सकती है। जैसे ईस्ट इंडिया कंपनी के द्वारा व्यापार करने
से हुआ था। इस संबंध में रवि शंकर प्रसाद के नेतृत्व में सरकार ने नए नियम लागू किए थे, जिसके अंतर्गत
सोशल मीडिया कंपनियों को एक शिकायत अधिकारी, एक प्रशासनिक अधिकारी और एक सरकार से समन्वय करने
के अधिकारी की नियुक्ति करनी थी। मेरी समझ से ये नियम पूर्णतया सही दिशा में हैं, लेकिन अपर्याप्त हैं। इन
नियमों के लागू होने के बावजूद सोशल मीडिया कंपनियां अपना मनचाहा व्यवहार करती रह सकती हैं। जैसे
शिकायत अधिकारी, प्रशासनिक अधिकारी और समन्वय अधिकारी की नियुक्ति के बाद भी ट्विटर भाजपा के
नेताओं की पोस्ट को ब्लॉक कर सकता था। समन्वय अधिकारी को ट्विटर को किसी पोस्ट विशेष के संबंध में
आदेश देने का अधिकार इन नियमों में नहीं दिया गया था। केवल विशेष परिस्थितियों में सरकार उन्हें सुधार करने
के लिए कह सकती है।
लेकिन सरकार द्वारा सोशल मीडिया कंपनियों के नियंत्रण में दूसरा संकट भी पैदा होता है। जैसे चीन ने सोशल
मीडिया कंपनियों को आदेश दे रखा है कि कोरोना वायरस के वुहान की प्रयोगशाला में उत्पन्न होने संबंधित कोई
भी सूचना वे अपने प्लेटफार्म पर नहीं डालेंगे, अथवा जैसे बेलारूस के तानाशाह लुकाशेन्को एवं म्यांमार के तानाशाह
मिंग हांग लेंग द्वारा सोशल मीडिया कंपनियों को कहा जा सकता है कि उनके आततायी व्यवहार का विरोध करने
वाली किसी भी पोस्ट को सोशल मीडिया कंपनी पोस्ट नहीं करेगी। ऐसे में सरकार के सोशल मीडिया पर नियंत्रण से
जनता की हानि हो सकती है। अतः सरकार द्वारा सोशल मीडिया कंपनियों पर नियंत्रण के दो पहलू हैं। एक है कि
सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा जनहित की अनदेखी करते हुए गलत सूचना परोसी गई हो तो सरकार का दखल
जरूरी होता है। दूसरी तरफ सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा गलत सरकार के विरोध में जनता को सही सूचना
उपलब्ध कराने की स्वतंत्रता को संरक्षित करना भी उतना ही जरूरी है। हमें इन दोनों परस्पर विरोधी उद्देश्यों के
बीच में रास्ता ढूंढना है। इस समस्या के समाधान का सर्वश्रेष्ठ उपाय यह है कि सरकार द्वारा स्वतंत्र नागरिकों की
समिति बनाई जाए जिसे सोशल मीडिया के विरुद्ध शिकायत सुनने एवं निर्णय लेने का अधिकार हो। अथवा जैसे
किसी कंपनी द्वारा शेयर धारक के प्रति अनुचित व्यवहार करने की शिकायत सेबी से की जा सकती है, उसी प्रकार
सोशल मीडिया नियंत्रण बोर्ड बनाना चाहिए जो सोशल मीडिया को आदेश दे, लेकिन सरकार के सीधे नियंत्रण से
बाहर हो। दूसरा उपाय है कि बड़ी सोशल मीडिया कंपनियों का सरकार विभाजन कर दे।
अपने देश में कंपीटीशन कमीशन ऑफ इंडिया स्थापित है जोकि किसी वाणिज्यिक कंपनी द्वारा बाजार में
एकाधिकार का उपयोग कर माल को महंगा बेचने इत्यादि पर रोक लगा सकता है। सरकार को चाहिए कि
कंपीटीशन कमीशन को आदेश दे कि किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफार्म की अधिकतम सदस्य संख्या को निर्धारित
कर दे। जैसे यदि आज भारत में व्हाट्सएप के 5 करोड़ ग्राहक हैं तो कंपीटीशन कमीशन निर्धारित कर सकता है कि
किसी एक कंपनी द्वारा 40 फीसदी यानी 2 करोड़ से अधिक ग्राहक हासिल नहीं किए जाएंगे। इससे अधिक संख्या
में ग्राहक हासिल करने पर उस कंपनी को दो या अधिक टुकड़ों में विभाजित कर दिया जाएगा। इस विभाजन का
लाभ होगा कि इन कंपनियों के बीच में प्रतिस्पर्धा बनेगी और देश की स्वदेशी सोशल मीडिया कंपनी को बाजार में
प्रवेश करने का अवसर मिल जाएगा। इनकी आपसी प्रतिस्पर्धा से इनके ऊपर स्वयं दबाव बनेगा कि यह जनता को
गलत सूचना न परोसे। यदि किसी एक सोशल मीडिया कंपनी ने गलत सूचना परोसी तो दूसरी सोशल मीडिया
कंपनी उसे एक्सपोज कर सकती है और ऐसे में सोशल मीडिया स्वयं ही अपने ऊपर नियंत्रण रखेगा। देश के प्रिंट
मीडिया में कई खिलाड़ी होने के कारण ऐसा ही दबाव प्रेस पर बना रहता है। सरकार ने जो नियम बनाए हैं, वे सही
दिशा में हैं, लेकिन इससे बहुत आगे जाने की जरूरत है और बड़ी सोशल मीडिया कंपनियों को तोड़कर टुकड़ों में
बांटने के लिए सरकार को कानून बनाना चाहिए।