हरी राम यादव
आज सुबह की बात है। मैं दौड़ के दैनिक अभ्यास के लिए वृंदावन की सड़क पर जा रहा था। मैंने देखा कि रोज प्रसन्न मुद्रा में दिखायी पड़ने वाले सेना के बड़े साहब आज कुछ चिंतित और बुझे बुझे दिखाई पड़ रहे हैं। उनका रोबीला चेहरा मुरझाया हुआ सा लग रहा था। मैं उनको इस हालत में देखकर चिंतित हो उठा। मैं उन्हें पिछले दो वर्षों से जानता हूं। वह प्रतिदिन मुझे वृंदावन की सड़कों पर सैर करते हुए मिल जाते थे। कभी कभी मिलने पर वह युद्ध के अनुभव और घटनाओं के बारे में बताते थे। जय हिन्द का अभिवादन उन्हें बेहद पसंद है। वह जय हिन्द बोलने पर कम से कम दो बार “जय हिन्द बेटा, जय हिन्द” बोलते हैं। वह 75-76 साल की उम्र में भी काफी चुस्त दुरुस्त लगते हैं। वे हमेशा अपनी पल्टन की कैप पहने रहते हैं। उनकी सफेद गफ्फेदार मूंछें उनके चेहरे को रोबीला बनाये रहती हैं। उनकी आवाज़ काफी कड़क है। सैन्य विषयों पर उनके पास विशाल ज्ञान का भंडार है। उन्होंने सेना द्वारा लड़ें गये तीन युद्धों में भाग लिया है। वे जब किसी से सैन्य विषयों पर वार्तालाप करते हैं तब उनके रोबीले व्यक्तित्व और विस्तृत ज्ञान के कारण सामने वाला उनके आगे किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है।
मैं उनके चिंतिंत लगने के कारण को जानने के लिए उत्सुक हो उठा। मैंने उनके पास जाकर उन्हें जय हिन्द कहा। उन्होंने तुरंत जय हिन्द कहकर उत्तर दिया। मैंने उनसे पूंछा – सर, आज आप चिंतित लग रहे हैं। उन्होंने कहा मैं पिछले कुछ दिनों से सरकार द्वारा सैनिकों को मिलने वाली सुविधाओं में कटौती को लेकर चिंतित हूं। अभी कुछ दिन पहले की बात है सरकार ने सेवानिवृत्त सैनिकों को दी जाने वाली अंत्येष्टि क्रिया की रकम को बंद कर दिया है। अब तुम्हीं बताओ सरकार इससे कौन सा अरबपति बन जायेगी। जिसने इस अनुदान को देना शुरू किया होगा, कुछ सोचकर ही शुरू किया होगा। एक सैनिक जब सेना से सेवानिवृत्त होता है तो कुछ लाख रुपए मिलते हैं। वह सब घर बनाने, बच्चों की शादी करने में समाप्त हो जाते हैं। इस मंहगाई के जमाने में पेंशन से बड़ी मुश्किल से घर चलता है। इन्हीं सब समस्याओं को देखते हुए एक सैनिक का अंतिम संस्कार सम्मानित तरीके से हो क्योंकि उसने देश के लिए अपने जीवन का अमूल्य समय दिया है, सरकार वर्तमान समय में 7000 रुपए देती थी। लेकिन इसे सरकार ने इसी वर्ष 01 अप्रैल से बंद कर दिया।
अब पिछले कुछ दिनों से समाचार पत्रों में एक समाचार चल रहा है कि सेना के वेतन, भत्तों और पेंशन पर बहुत ज्यादा खर्च हो रहा है। इसलिए सेना में 3 और 5 साल के लिए सैनिकों की भर्ती की जायेगी। इस भर्ती को टूर ऑफ ड्यूटी कहा जायेगा। इसके तहत 25 प्रतिशत सैनिकों की नियुक्ति सिर्फ तीन साल के लिए की जायेगी और 25 प्रतिशत सैनिकों की नियुक्ति पांच साल के लिए की जायेगी। इसके बाद बाकी बचे 50 प्रतिशत जवान सेना में रिटायरमेंट की उम्र तक सेवा देंगे। सरकार यह सोच रही है कि इस नई योजना से सेना के खर्च में बचत होगी क्योंकि जितनी भी नियुक्तियां की जाएंगी, वे सब अनुबंध के आधार पर होंगी। इसमें सरकार को पेंशन नहीं देनी पड़ेगी। इन सैनिकों को नेशनल पेंशन स्कीम के तहत सुविधा दी जाएगी और जिस तरह आर्म्ड फोर्सेज के सेवानिवृत्त सैनिकों को मेडिकल सुविधा दी जाती है, उसी तरह से इन्हें भी मेडिकल सुविधा दी जाएगी।
यहां तक तो कुछ गनीमत है। इसमें जो सबसे ज्यादा विचारणीय बात और सेना में दरार पैदा करने वाली है वह यह है कि 3 या 5 साल वाली सेवा सेना में अधिकारियों पर लागू नहीं होगी, यह सिर्फ सैनिकों पर लागू होगी। पहले ही मिलिट्री सर्विस पे के मुद्दे पर सेना के जवानों में सुगबुगाहट चली आ रही है। बात भी सही है, मौसम की दुश्वारियां और समस्याएं जवान, जूनियर कमीशन अफसर और अफसर के लिए बराबर हैं। अब इस तरह के विभाजनकारी निर्णय से जवानों का मनोबल और गिरेगा।
हमारे समय में जवानों के बीच एक कहावत कही जाती थी – “पांच साल सीखने के, पांच साल सिखाने के और पांच साल पेंशन जाने के”। इसका अर्थ यह है कि एक जवान सेना में भर्ती होने के बाद पांच साल तक सीखता है। उसके बाद वह प्रशिक्षण प्राप्त कर आये हुए जवानों को कुछ सिखाने की स्थिति में होता है। सेना में दस वर्ष की सेवा हो जाने के बाद सैनिक अपने घर परिवार और भविष्य के बारे में सोचना शुरू कर देता है कि उसकी सेवा समाप्त होने पर वह क्या करेगा। लगभग पांच साल तक तो एक सैनिक रिक्रूट ही रहता है तो वह युद्ध या काउंटर इंसरजेंसी में क्या करेगा?
सेना कोई दैनिक जीवन की आम नौकरी या उद्योग धंधा नहीं है। सेना की सेवा में परिपक्वता, तत्काल निर्णय लेने की क्षमता और नेतृत्व का गुण आवश्यक है और यह सब 17 और 21 साल की उम्र में नहीं आता।जमीनी हकीकत यह है कि सेना अकेले जोश से नहीं चलती, सेना चलती है सर्विस में अनुभवी और उम्रदराज जूनियर कमीशंड अधिकारी और अनुभवी नान कमीशंड अधिकारियों से। कमीशंड अधिकारी रणनीति बना सकते हैं लेकिन क्रियान्वयन जूनियर कमीशंड अधिकारी और नान कमीशंड अधिकारी ही करते हैं।
अब तक लड़ें गये युद्ध इस बात के गवाह हैं कि युद्ध में बहुत से ऐसे मौके आते हैं जब ट्रुप, सेक्शन और प्लाटून की कमान जूनियर कमीशंड अधिकारी या नान कमीशंड अधिकारी के हाथ में आ जाती है। तब ऐसी स्थिति में परिपक्वता, नेतृत्व क्षमता और अनुभव ही काम आता है। 3 और 5 साल में तो एक जवान युद्ध या युद्ध जैसे हालात में क्या कर पायेगा, इस पर सवाल तो अवश्य खड़े होंगे।
सबसे बड़ी बात तो सेवानिवृत्त होने वाले सैनिकों के पुनर्नियोजन की है। प्रतिवर्ष लगभग 50 हजार सैनिक सेवानिवृत्त होते हैं। जिनमें आधे की उम्र 36 से 42 के बीच की होती है। इस उम्र में सैनिकों को पुनर्नियोजन की बहुत ही आवश्यकता होती है क्योंकि बच्चे बड़ी कक्षाओं में पहुंचे होते हैं, माता पिता 65 की उम्र पार कर चुके होते हैं। एक दो प्रतिशत सैनिक प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर सरकारी सेवा में चले जाते हैं। कुछ लोग कोई दुकान या पुश्तैनी काम करना शुरू कर देते हैं। बहुसंख्यक सैनिक तकनीकी जानकारी के अभाव में फिर से अर्धसैनिक बलों में समायोजित होने की कोशिश करते हैं। लेकिन यहां पर सरकारों की गलत नीतियों आडे़ आ जाती हैं।
राज्य सरकारें पांच प्रतिशत से लेकर दस प्रतिशत आरक्षण देने की बात तो करती हैं किन्तु पिछले दरवाजे से उनके खुद के नियम अड़ंगा लगा देते हैं। उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती में सैनिकों के आरक्षण की बात करें तो इसमें सरकार सेवानिवृत्त सैनिकों को आरक्षण देती है। पुलिस भर्ती की शारीरिक परीक्षा में दौड़ पूरा करने का समय सेवानिवृत्त सैनिकों और नवयुवकों का एक ही है। क्या 40 वर्ष का एक व्यक्ति 18 वर्ष के युवक की बराबर तेजी से दौड़ सकता है और दिए गये समय में दौड़ को पूरा कर सकता है? ऐसी स्थिति में सैनिक फेल हो जाता है। सरकार भी सैनिकों के विभिन्न कार्यक्रमों में आरक्षण का खूब प्रचार कर वाहवाही लूटती है। अर्ध सैनिक बलों में भर्ती की आशा समाप्त होने के बाद वह सैनिक गार्ड की नौकरी करने के लिए मजबूर हो जाता है। यहीं से इन सेवानिवृत्त सैनिकों का शोषण शुरू हो जाता है। जगह जगह गार्ड की नौकरियों की दुकान खोल कर बैठे लोग इनका शोषण शुरू कर देते हैं। 10 हजार से लेकर 26 हजार तक में 8 से 12 घंटे की ड्यूटी करवायी जाती है। अधिक समय की ड्यूटी या वेतन में से किसी मद में की जाने वाली कटौती का विरोध करने पर सीधे नौकरी से निकाल देने के लिए कहा जाता है।
जब प्रतिवर्ष लगभग 50 हजार सेवानिवृत्त होने वाले सैनिकों का समायोजन नहीं हो पाता तो हर तीसरे वर्ष और पांचवें वर्ष सेवानिवृत्त होने वाले सैनिकों का समायोजन कहां और कैसे होगा। सरकारों के पास वैसे ही शिक्षित बेरोजगारों की फौज खड़ी है। सरकारों के पास सरकारी विभाग में कितना समायोजन होगा? प्राइवेट सेक्टर पर सरकारों की नीतियां या आरक्षण लागू नहीं होता तो हर तीसरे और पांचवें साल सेवानिवृत्त होने वाले सैनिकों का भविष्य क्या होगा ?
निर्णय सरकार को करना है कि पेंशन और वेतन में ज्यादा खर्च होगा या टूर आफ ड्यूटी के तहत भर्ती सैनिकों के प्रशिक्षण पर। खर्च को घटाने के चक्कर में देश की सुरक्षा से समझौता नहीं किया जा सकता और न ही नौकरियों की तुलना सैन्य सेवा से की जा सकती है। नौकरियों में गलतियां होने पर पैसों या सामान का नुक़सान होता है लेकिन सीमा पर गलतियां होने पर नुकसान मानव जीवन, सैनिकों के परिवार और देश की सुरक्षा का होता है। इस विषय पर बड़े साहब की चिंता विचारणीय है।
अपनी वर्तमान पीढ़ी और भविष्य में आने वाली चुनौतियां से चिंतित सेना के बड़े साहब की चिंता को देखकर मैं भी सोचने पर मजबूर हो गया। उनके देश प्रेम की भावना ने मुझे यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि देश का प्रत्येक नागरिक यदि ऐसी ही सोच रखे तो देश फिर से सोने की नहीं बल्कि हीरे की चिड़िया बन जायेगा। मुझे अपने नियमित दौड़ के अभ्यास के लिए देर हो रही थी। मैं जय हिन्द के अभिवादन के साथ साहब से विदा लेकर सड़क पर सोच के साथ दौड़ने लगा।