सेहत, सफलता और खुशी

asiakhabar.com | March 2, 2023 | 6:17 pm IST
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-पीके खुराना-
जैसे-जैसे मुझे जीवन की कुछ समझ आ रही है, वैसे-वैसे सिर्फ एक बात साफ नजर आनी शुरू हुई है कि अगर हम सचमुच जीवंत जीवन जीना चाहते हैं तो हमें प्रकृति के नजदीक जाना होगा और प्राकृतिक जीवन जीना होगा, या प्रकृति को अपने जीवन में उतारना होगा। बचपन से ही हम ‘असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मामृतं गमय’ प्रार्थना गाते आए हैं जिसका अर्थ है कि हे प्रभु हमें असत्य से सत्य की ओर ले चलो, अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो, मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो। आइए, इस प्रार्थना पर थोड़ा गहराई से विचार करें। लालची व्यवसायियों और कुटिल राजनीतिज्ञों ने आज हमारे हमारे जीवन में जहर घोल दिया है। झूठ को सच बनाकर पेश करना, जानबूझ कर झूठे वायदे करना राजनीतिज्ञों का शगल हो गया है और यह किसी एक दल तक सीमित नहीं है। हर दल इस बीमारी को फैला रहा है और हम उनके झूठ के शिकार बन रहे हैं। ये राजनीतिज्ञ हमें सत्य से असत्य की ओर ले जा रहे हैं। पर हमारा आज का विषय राजनीति नहीं है, इसलिए इसे हम यहीं छोडक़र आगे बढ़ते हैं। ‘हे प्रभु, हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो’ का अर्थ है कि हम अज्ञानी न रहें, अज्ञान अंधकार की तरह है जिसमें हमें कुछ नहीं सूझता, इस अज्ञान की जगह हमें ज्ञान का प्रकाश मिले। ज्ञान का प्रकाश मिलना तो हमारी आकांक्षा में शामिल है ही, पर आज हम उससे भी पहले की बात भी करेंगे, यानी इस प्रार्थना के शाब्दिक अर्थ पर भी गौर करेंगे। आज हम सचमुच प्रकाश से वंचित हैं और ऐसा हमने खुद जानबूझ कर किया है।
हमारे भवन ऐसे बनने लगे हैं जहां सूर्य का सीधा प्रकाश नहीं आता, आता भी है तो उसे हम मोटे-मोटे परदे लगाकर बाहर रोक देते हैं और कृत्रिम प्रकाश में जीवन गुजारते हैं। घर से बाहर निकलते हैं तो सन-स्क्रीन लगाते हैं जो सूर्य की किरणों के गुणों से हमें वंचित कर देती है। सूर्य की किरणें हमारी त्वचा के सीधे संपर्क में आती हैं तो हमारे शरीर को अत्यावश्यक विटामिन-डी मिलता है, बिल्कुल मुफ्त। अब चूंकि यह मुफ्त है, इसलिए फार्मास्यूटिकल कंपनियां इसका विज्ञापन नहीं करतीं और अक्सर डाक्टर भी इसके बारे में ज्य़ादा बात नहीं करते। यह एक ऐसा असाधारण और गुणकारी पोषक तत्व है जिसके बारे में हमारी ‘हैल्थ इंडस्ट्री’ बात ही नहीं करती। सूर्य की किरणें जब शीशे में से गुजर कर हम तक पहुंचती हैं तो विटामिन-डी नहीं बनता, इसलिए घर, दफ्तर या कार में बैठने पर यदि हमें सूर्य का प्रकाश मिले भी तो हमें उसका असली लाभ नहीं मिल पाता। शरीर में विटामिन-डी की कमी हो तो हमारा शरीर भोजन से मिलने वाले कैल्शियम को नहीं सोख पाता और हमारी हड्डियां कमजोर रह जाती हैं। सूर्य की रोशनी से मिलने वाला विटामिन-डी एकाएक नहीं बढ़ाया जा सकता, इसके लिए सूर्य के प्रकाश में नियमित रूप से बाहर निकलना आवश्यक है। सुबह की सैर को इसीलिए अमृत समान माना गया है जो हमें ‘पूर्ण स्वास्थ्य’ प्रदान करता है क्योंकि इससे हमें व्यायाम के अलावा सूर्य की किरणों का पोषण भी मिल जाता है। उगते सूरज की रोशनी में लंबी सैर, थोड़ा सा योग, आंखों के व्यायाम और सही खानपान स्वास्थ्य की गारंटी हैं जो मुफ्त में उपलब्ध हैं। दुर्भाग्य की बात यह है कि हमें इनके बजाय दवाइयों पर निर्भर रहना सिखाया जा रहा है और हमें भी वह ज्यादा आसान लगता है।
सूरज की किरणों से मिलने वाले लाभ को जानने के अलावा यह जानना और भी जरूरी है कि विटामिन-डी की कमी से होने वाले नुकसान क्या हैं। शरीर में विटामिन-डी की कमी से हड्डियां कमजोर होती हैं, शरीर में इन्सुलिन का बनना कम हो जाता है और हम टाइप-2 शूगर के मरीज बन सकते हैं, और यदि शरीर में विटामिन-डी की आवश्यक मात्रा उपलब्ध हो तो हम प्रोस्टेट कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर, ओवेरियन कैंसर, कोलोन कैंसर आदि कई तरह के कैंसर से बच सकते हैं। आश्चर्य की बात तो यह है कि दोषपूर्ण जीवन शैली के कारण खुद डाक्टर भी विटामिन-डी की कमी के शिकार हो रहे हैं। सही खानपान भी हमारी सेहत के लिए बहुत आवश्यक है। हम भारतीय रोटी और चावल के आदी हैं और सलाद की महत्ता की उपेक्षा करते हैं। दरअसल अभी हम भोजन में जितनी सब्जी और जितना सलाद लेते हैं वह बहुत कम है। भोजन का सही तरीका यह है कि हम रोटी का एक कौर खाएं और उसके बाद दो-तीन बड़े चम्मच सब्जी या दाल लें, उसी प्रकार तीन-चार बार सलाद लें, तब अगला कौर खाएं। इससे शरीर में फाइबर की आवश्यक मात्रा पहुंचेगी और भोजन पूरी तरह से पचेगा। अभी हम सलाद दवाई की तरह खाते हैं, बहुत थोड़ा खाते हैं या खाते ही नहीं हैं। रोटी या चावल की जगह सब्जी और सलाद की मात्रा बढ़ा देने से हमें डाइटिंग की आवश्यकता भी नहीं रहती और हम स्वस्थ भी रहते हैं। हम नौकरी करते हों, छोटे या बड़े व्यवसायी हों या उद्यमी हों, समस्याएं तो आती ही हैं। समस्याएं जीवन का शाश्वत सत्य हैं। जीवन है तो समस्याएं हैं, चुनौतियां हैं, फर्क यही है कि उन चुनौतियों के प्रति हमारा दृष्टिकोण क्या है और हम समस्याओं से कैसे निबटते हैं। समस्या आने पर हमारी प्रतिक्रिया हमारे जीवन को परिभाषित करती है। हमारी योग्यता के साथ-साथ हमारा व्यवहार भी हमारी सफलता का पैमाना गढ़ता है।
अनुशासन में रहकर अपने काम में मन लगाना, पूरे मनोयोग से काम करना हमारी सफलता का कारण बनता है। जब हम मन लगाकर काम करते हैं तो हमारी कुशलता बढ़ती चलती है और हम ‘एक्सपर्ट’ बन जाते हैं। इससे हमारा सम्मान बढ़ता है और प्रमोशन अथवा सफलता के अवसर बढ़ जाते हैं। जैसे-जैसे हम वरिष्ठ पदों पर आगे बढ़ते हैं, वैसे-वैसे अपने सहकर्मियों से हमारे संबंधों का महत्व बढ़ता चला जाता है। यह समझना आवश्यक है कि सहकर्मियों से सार्थक मेलजोल हमारी सफलता की सीढ़ी है। इससे हमें सफलता ही नहीं, खुशी भी मिलेगी। खुशी के बिना सफलता अधूरी ही नहीं, अर्थहीन है क्योंकि हमने सफल माने जाने वाले लोगों को, अमीर लोगों को, शक्तिशाली और समर्थवान लोगों को भी आत्महत्याएं करते हुए देखा है। अपने आप में ही सीमित हो जाने वाले लोग अकेले पड़ जाते हैं, पैसा और साधन होने के बावजूद किसी को अपना दुख बता नहीं पाते और सारा जीवन निराशा में बिता देते हैं। यही नहीं, कभी-कभी तो आत्महत्या तक जैसे अतिवादी कदम भी उठा लेते हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि हम केवल सफलता की दौड़ का घोड़ा बन कर न रह जाएं, बल्कि अपने आप से भी प्यार करना सीखें, मनचाही हॉबी विकसित करें और खुश रहें। अच्छा स्वास्थ्य, सफल कैरिअर और खुशनुमा जीवन ही हमारी जीवंतता की निशानी हैं, इसलिए हमें सदैव प्रयत्न करना चाहिए कि हम खुद पर भी ध्यान दें, अपने लिए समय निकालें, सैर करें, प्रकृति का आनंद लें, ठीक से भोजन करें और खुश रहें।


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