-कर्नल (रि.) मनीष धीमान-
अमेरिका को यह सौदा इसलिए नहीं भा रहा है क्योंकि अमेरिका के काटसा नियम (कोउंट्रिग अमेरिकन एडवाइजरी:
सैंक्शन एक्ट) जोकि 2017 में रूस के यूक्रेन और सीरिया पर किए गए बर्ताव पर अमेरिका ने रुष्ट होकर उसको
सबक सिखाने के लिए बनाया था, उस नियम के अनुसार जो भी देश रूस से हथियार खरीदेगा, उस पर अमेरिका
प्रतिबंध लगा देगा। इसी कड़ी में अमेरिका ने अपने तेवर दिखाते हुए चीन और तुर्की को पर रूस से हथियार
खरीदने के लिए प्रतिबंध लगा भी दिए हैं। जब हम भारत की बात करते हैं तो भारत ने रूस के साथ एस-400
मिसाइल की डील की शुरुआत 2016 में कर दी थी, जबकि काटसा नियम 2017 में आया है। इसलिए भारत पर
इस रूल के अनुसार प्रतिबंध लगाना ठीक नहीं। एस-400 मिसाइल सतह से हवा में मार करने वाली लंबी दूरी की
रूस की सबसे उन्नत मिसाइल रक्षा प्रणाली है, ट्रांयफ मिसाइल प्रणाली 400 किलोमीटर की दूरी से शत्रु के विमानों,
मिसाइलों और यहां तक कि उनके बंकर तक को नष्ट करने में सक्षम है। गौरतलब है कि भारत ने रूस के साथ 5
अरब डॉलर में एस-400 वायु रक्षा प्रणाली की 5 इकाई खरीदने का समझौता किया था।
भारत ने यह करार अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन द्वारा प्रतिबंध लगाने की धमकी के बावजूद
किया था। भारत ने इस प्रणाली को खरीदने के लिए 2019 में 80 करोड़ डॉलर का भुगतान रूस को कर भी दिया है
तथा एस-400 मिसाइल प्रणाली की पहली खेप अक्तूबर से दिसंबर तक रूस से भारत को मिलने वाली है। एस-400
मिसाइल रूस से खरीदने के भारत को जो फायदे हो रहे हैं, अगर उनके मुकाबले में अमेरिका से प्रतिबंध लगने के
नुकसान के बारे में सोचा जाए तो हमें रूस के साथ इस डील को कंटिन्यू करना चाहिए। अगर भारत अमेरिका के
दबाव में आकर इस डील को रद्द कर देता है तो लंबे अरसे से भारत का दोस्त रूस इससे नाराज हो जाएगा तथा
वह चीन तथा पाकिस्तान के साथ मिलकर भारत के लिए आने वाले समय में खतरा हो सकता है।
इससे भी बढ़कर आज तक जितने भी हथियार जो भारतीय सेना में मौजूद हैं, उनमें ज्यादातर हथियार रूस से
खरीदे हुए हैं जिनका स्पेयर पार्ट्स अभी भी हमें रूस से लेना पड़ता है। अगर यह डील रद्द होती है तो स्पेयर
पार्ट्स न मिलने की वजह से ‘न ही हमारे समुद्री जहाज तैर पाएंगे, न ही हवाई जहाज उड़ पाएंगे और न ही हमारा
कोई थल सेना का हथियार चल पाएगा’। तो इस डील को बनाए रखने से भारत को जो सबसे बड़ा फायदा हो रहा है
कि उसका स्पेयर पार्ट्स मिलता रहेगा। भारत के अमेरिका के नजदीक जाने से जो रूस में नाराजगी हुई है और
उसके बदले वह पाकिस्तान के साथ दोस्ती के हाथ बढ़ा रहा है, उस पर प्रतिबंध लग सकता है और चीन द्वारा
भारतीय सीमा पर हो रहे अतिक्रमण को भी रोक सकता है। अगर भारत अमेरिका के दबाव में आ जाता है और इस
डील को रद्द कर देता है तो रूस का खुला हाथ हो जाएगा कि वह पाकिस्तान और चीन के साथ आगे बढ़ पाएगा।
अमेरिका को भी भारत पर प्रतिबंध लगाने में फायदा कम और नुकसान ज्यादा होने वाले हैं। अगर वर्तमान स्थिति
को देखा जाए तो एशिया में भारत ही एक ऐसा देश है जो चीन की ताकत को चुनौती दे सकता है। अगर अमेरिका
भारत पर प्रतिबंध लगा देगा तो वह भारत जैसे अग्रणी देश की दोस्ती को खो देगा जिससे अमेरिका को एशिया में
सहायता करने वाला कोई भी देश नहीं बचेगा। मेरा मानना है कि भारत अपनी स्वतंत्र नीति को अपनाते हुए
अमेरिका के दबाव में आए बिना डील को रद्द न करे।