‘सेनापति’ की चेतावनी

asiakhabar.com | August 26, 2020 | 5:07 pm IST

अर्पित गुप्ता

अंततः युद्ध का विकल्प खोल दिया गया है। हालांकि न तो युद्ध की नौबत है और न ही आसार पुख्ता हुए हैं,
लेकिन चीन के दोगले और टालमटोल रवैये ने भारतीय सैन्य नेतृत्व को यह सोचने पर बाध्य कर दिया है कि यदि
वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन के साथ सैन्य और राजनयिक स्तर के संवाद के सिलसिले नाकाम रहे,
तो सैन्य विकल्प भी खुले हैं। भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस यानी सेनापति) जनरल बिपिन रावत ने
एक साक्षात्कार में चीन को यह चेतावनी दी है। ‘सेनापति’ स्तर के सैन्य अधिकारी ने चीन के अतिक्रमण पर ऐसी
टिप्पणी पहली बार की है। हालांकि उन्होंने यह स्पष्ट करने से इंकार किया है कि भारत कौन-से सैन्य विकल्पों पर
विचार कर सकता है।
बहरहाल जनरल रावत ने परोक्ष रूप से चीन को संवाद और उनमें तय सहमतियों की गरिमा और महत्त्व का
एहसास कराने की कोशिश की है। युद्ध इतना आसान भी नहीं है, लेकिन दक्षिण चीन सागर तक, विभिन्न मोर्चों
पर, जिस तरह भारत के मित्र-देशों और चीन ने तैनातियों की होड़ लगा रखी है, उनके मद्देनजर युद्ध किसी भी
उत्तेजक, चिंगारी वाले क्षण में छिड़ भी सकता है। इस बीच वियतनाम ने भारत को जानकारी दी है कि चीन
लद्दाख और तिब्बत वाले क्षेत्रों के अलावा, दक्षिण चीन सागर पर भी कब्जा करने की फिराक में है। भारत के
साथ-साथ अमरीका, जापान, ऑस्टे्रलिया आदि देश भी चीन की ऐसी विस्तारवादी नीति और वर्चस्व साबित करने
के खिलाफ हैं, लिहाजा अमरीका ने तो उस क्षेत्र में अपना युद्धपोत और बमवर्षक लड़ाकू विमान भी तैनात कर
दिए हैं। भारत का 55 फीसदी से ज्यादा समुद्री कारोबार दक्षिण चीन सागर के जरिए ही होता है।
यह विवाद और टकराव का नया आयाम है। हालांकि पूर्वी लद्दाख के इलाकों में चीनी सेना का जमावड़ा अब भी है।
वह फिंगर 4 से 8 तक के क्षेत्र पर काबिज है और पीछे हटने को टालमटोल करती रही है। भारतीय सैनिक इन
इलाकों में गश्त नहीं कर पा रहे हैं। चीन अपने अतिक्रमण से हटने को तैयार नहीं है। लद्दाख के इन इलाकों में
मौसम भी बदलने लगा है। यह चीनी सैन्य कमांडरों का भी अनौपचारिक तौर पर मानना है कि पहाड़ी युद्ध में

भारतीय सैनिकों का कोई जवाब नहीं, लिहाजा इन्हीं हालात में युद्ध छिड़ता है, तो भारत की स्थिति फायदेमंद
रहने वाली है। हालांकि कुछ रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि जिस तरह चीन ने अतिक्रमण किया है, उसी तर्ज पर
भारत की सेनाएं भी चीन के इलाके पर कब्जा करें। उससे चीन को सबक मिल सकता है और वह इन इलाकों से
पीछे हटने की सोच सकता है। युद्ध किसी भी पक्ष के लिए ठीक विकल्प नहीं है, क्योंकि युद्ध के बाद भी
बातचीत शुरू करनी पड़ती है। फिर भी चीन अड़ा हुआ है। न जाने उसकी रणनीति क्या है? वैसे भारत ने भी
हजारों सैनिकों को इन इलाकों में तैनात कर रखा है। तोपखाने और टैंक भी मौजूद हैं। वायुसेना के जंगी जहाज
रात-दिन इलाकों के आकाश में उड़ते हुए भारतीय सीमा की चौकसी कर रहे हैं और दुश्मन की गतिविधियों पर भी
‘आंख’ रखे हैं। यदि भारत के ‘सेनापति’ ने युद्ध के संकेत दिए हैं, तो जाहिर है कि रणनीति तैयार हो चुकी होगी!
अंततः युद्ध के जरिए ही हम अपनी खोई जमीन वापस हासिल कर सकेंगे, यह हमारा सैन्य संकल्प भी है।
हालांकि चीन के लिए युद्ध की स्थितियां माकूल नहीं हैं। इलाकों में पड़े-पड़े चीनी सैनिकों की फिटनेस भी सवालिया
होने लगी है। वे ज्यादा शराब पीते हैं और डिब्बाबंद खाना खाते हैं। ऐसी खबरें भी आई हैं कि कई सैनिकों का
वजन भी बढ़ने लगा है, तो वे पहाड़ी इलाकों में लड़ाई कैसे लड़ पाएंगे? इसके बावजूद चीनी सेना को आदेश दिए
गए हैं कि वे अपने घर, परिजनों को ‘गुडबॉय’ की चिट्ठी लिखें। साफ संकेत हैं कि कभी भी निर्णायक लड़ाई में
जाना पड़ सकता है। इस बीच भारत ने चीन का सुझाव खारिज कर दिया है कि दोनों देशों की सेनाएं फिंगर इलाके
में बराबर पीछे हटें। भारत का आग्रह रहा है कि चीन अप्रैल-मई की यथास्थिति बहाल करे। बातचीत के दौरान
सहमति भी बनती है, लेकिन फिर चीन अपनी जिद पर अड़ा है। बहरहाल अब भी दोनों देश संवाद के एक और दौर
पर विचार कर रहे हैं। देखते हैं कि उसका निष्कर्ष क्या निकलता है?


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