सुप्रीम कोर्ट के फैसलों से न्यायपालिका पर विश्वास बढ़ा

asiakhabar.com | March 3, 2023 | 12:58 pm IST
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-सनत कुमार जैन-
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दो फैसले दिए हैं। एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन आयोग के आयुक्त की नियुक्ति को लेकर स्पष्ट व्यवस्था दी है। जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा है, कि चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की समिति निर्णय करेगी। संवैधानिक पदों पर नियुक्ति को लेकर यह व्यवस्था पहले भी थी। लेकिन 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद से तथा कांग्रेस को 10 फ़ीसदी सीटों पर सफलता नहीं मिलने के कारण लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद खाली है। उसके बाद से प्रधानमंत्री ही संवैधानिक पदों पर नियुक्त होने वाले लोगों की नियुक्तियां करते रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट कर दिया है, कि भले 10 फ़ीसदी सीटें जीतकर विपक्षी दल ना भी आया हो, तो भी जो सबसे बड़ा विपक्षी दल है। उसके नेता को समिति की बैठक में शामिल कर चुनाव आयुक्त की नियुक्ति करना होगी।
संविधान पीठ की अध्यक्षता कर रहे केएम जोसफ ने अपने फैसले ने कहा कि किसी मजबूत और उदार लोकतंत्र की पहचान और ताकत नागरिकों को मिलने वाले अधिकारों पर निर्भर करता है। उन्होंने कहा मतदान की ताकत लोकतंत्र में सबसे ज्यादा है। वह शक्तिशाली दल को भी सत्ता से बाहर निकालने की ताकत रखता है। निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता बनी रहे यह जरुरी है।
इसी तरह अडानी समूह के आरोपों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व जज एएम सप्रे की अध्यक्षता में 6 सदस्य समिति का गठन किया है। इस समिति में ओपी भट्ट, जस्टिस जे पी देवदत्त, केवी कामत, नंदन नीलेकणी और सोमशेखरण सुंदरेसन को समिति का सदस्य बनाया गया है।
उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित इस समिति के निर्देश पर सिक्योरिटी एंड एक्सचेंज बोर्ड आफ इंडिया (सेबी) के माध्यम से 2 माह के अंदर अडानी समूह के ऊपर हिंडन बर्ग की रिपोर्ट में जो आरोप लगाए गए हैं। उनकी जांच करके सील बंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के बंद लिफाफे में सरस्यों के नो नाम सौंपे गए थे। उसके आधार पर जांच कराने से इंकार कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने सेबी के नियम 19 के उल्लंघन की जॉच करने का आदेश समिति और सेबी को दिया है। इसमें हिडंनवर्ग की रिपोर्ट के आरोपों की जॉच सेबी एवं समिति के दायरे में होगी। अडानी समूह का मामला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रभावित कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर नियामक संस्था सेबी और भारतीय और न्यायपालिका की शाख बढ़ेगी। वहीं सरकार के डर और भय को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सीलबंद लिफाफे में रिर्पोट 2 माह में तलब की है। इससे भारत के व्यापारिक हितों को भी सुरक्षित रखने का काम सुप्रीम कोर्ट ने किया है।
संवैधानिक संस्थाओं में जिस तरह से लोगों का अविश्वास बढ़ रहा था। सुप्रीम कोर्ट के इन दोनों निर्णय से न्यायपालिका के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ा है। संवैधानिक संस्थाओं में यदि पारदर्शी तरीके से योग्य व्यक्तियों की नियुक्ति होगी, तो निश्चित रूप से संवैधानिक संस्थाओं के ऊपर लोगों का विश्वास बढ़ेगा। पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से महत्वपूर्ण पदों पर सरकार अपने मनचाहे व्यक्तियों की नियुक्ति कर रही थी। बार-बार उन्हें सेवा वृद्धि दे रही है। संवैधानिक संस्थाओं ईडी, सीबीआई और चुनाव आयोग द्वारा विपक्षी दलों और सत्ता पक्ष के साथ जो भेदभाव किया जा रहा है। उसे आम जनता भी देख रही है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से विपक्ष सहित आम जनता के मन में एक नया विश्वास पैदा होगा। ईडी प्रमुख के पद पर जिस तरह से बार-बार एक ही व्यक्ति को सेवा वृद्धि की जा रही है। चुनाव के ठीक पहले विपक्षियों को ईडी के नोटिस जारी होते हैं, छापे पड़ते हैं। उससे ईडी और चुनाव आयोग जेसी संस्थाओं की विश्वसनीयता भी कम हो रही थी। सुप्रीम कोर्ट ने संवैधानिक संस्थाओं में नियुक्तियों को लेकर जो रुख अख्तियार किया है। नियुक्ति में पारदर्शिता लाने की कोशिश की गई है। उसमें सुप्रीम कोर्ट सरकार से टकराव को भी टालते हुए सरकार को सीधे कोई आदेश नहीं दिए हैं। वही भविष्य में होने वाली नियुक्तियों और कार्यवाही में जिम्मेदारी तय करने की कोशिश की है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में इसे एक शुभ संकेत के रूप में देखा जा रहा है।


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