विनय गुप्ता
देश की सीमाओं पर बढ़ती घुसपैठ को देखते हुए सुरक्षा के कड़े प्रबंध किए जाने की अब अधिक जरूरत है। हालात
ऐसे बन चुके हैं कि सावधानी हटी, दुर्घटना घटी। नेपाल, चीन का पिछलग्गू बनकर अकारण ही अब भारत से
सीमा विवाद खड़ा करके आरपार की लड़ाई लड़ने के मूड में नजर आ रहा है। अभी दो दिन पूर्व ही नेपाली सैनिकों
ने सरहद पर गोलीबारी करके एक भारतीय युवक को मौत के घाट उतारा व दो अन्यो को घायल करके आपसी
विरोध की चिंगारी भड़काई है। भारत अपनी सुरक्षा मजबूत बनाए जाने को लेकर आजकल पुख्ता प्रबंध कर रहा है
तो चीन और नेपाल को यह बात चुभ रही है। नेपाल, भारत के कुछ हिस्सों को अपना बताकर मैत्री संबंध खराब
करने की ओर निकल पड़ा है। भारत अपनी सरहद में नई सड़कों का निर्माण किए जाने को लेकर प्रयासरत चल रहा
है जिसकी वजह से नेपाल और चीन इस कार्य में अडं़गा डालना चाहते हैं। नेपाल सरकार ने इस बाबत प्रस्ताव
पारित करके आगामी रणनीति बनाए जाने का फैसला लिया है। नेपाल को यह बात कतई नहीं भूलनी होगी कि
चीन ने पाकिस्तान को कर्जदार बना डाला तो वह आखिर कब तक उससे बच पाएगा? उधर, मंगलवार को भारत-
चीन सीमा पर स्थित गलवान वैली में दोनों देशों की सेना की आपसी खूनी भिड़ंत की वजह से भारी जानमाल का
नुकसान हुआ है। भारत के बीस जवान सरहद की रक्षा करते वीरगति को प्राप्त हुए तो वहीं 43 चीनी सैनिकों को
भी डंडों, पत्थरों से जख्मी होकर बेमौत मरना पड़ा है। भारत की सीमाएं पाकिस्तान, भूटान, बांग्लादेश, नेपाल,
म्यांमार और चीन के साथ लगती हैं। भारत की सरहदों पर निरंतर घुसपैठ जारी रहने की वजह से पड़ोसी देशों से
गोली, बारूद और घातक हथियारों की सप्लाई ही नहीं आ रही, बल्कि नशीले पदार्थों की तस्करी करके युवा पीढ़ी
को बर्बाद किए जाने की कोशिश चल रही है। केंद्र सरकार सरहदों पर सुरक्षा प्रबंध कड़े किए जाने को लेकर अरबों
रुपए खर्च कर रही है। आतंकवाद के खिलाफ भारत की ओर से छेड़ी गई यह लड़ाई भविष्य में सौहार्द का वातावरण
जरूर बनाएगी। सच्चाई यह है कि पड़ोसी देशों के सैनिक भारतीय सरहदों में निरंतर जगती लाइट से ही गश्त करते
हैं और उल्टा भारतीय सैनिकों को सबक सिखाने का सपना देखते रहते हैं। द्वितीय विश्व युद्ध में हुए नरसंहार की
वजह से विश्व के देश कई गुटों में बंटकर रह गए थे। कहीं दक्षिण एशिया, मिडल ईस्ट और यूरोपीय देशों का
नामकरण किया गया। इन देशों में भी प्रतिस्पर्धा इतनी बढ़ती जा रही है कि एक-दूसरे से सर्वोच्च शक्ति बनने की
होड़ चली हुई है। कहीं धर्म, जाति, क्षेत्रवाद और सांप्रदायिकता की आड़ में मानवता को शर्मसार किया जा रहा है।
यूरोपीय देशों ने ऐसी चाल चली कि अब ऐसे देश एक-दूसरे से अपनी सुरक्षा अत्यधिक बढ़ाए जाने को लेकर बहुत
आगे निकल गए हैं। जनता के विकास पर खर्च किया जाने वाला बजट अब सुरक्षा बढ़ाने के नाम पर सरकारों को
खर्च करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। देश की जनता का पेट भरने में बेशक पूरी तरह समर्थ नहीं, मगर
फिर भी परमाणु शक्ति से परिपूर्ण होने की धमकियां एक-दूसरे को देते आ रहे हैं। भारत की सीमाएं पाकिस्तान से
ज्यादा लगने की वजह से आतंकवाद को बढ़ावा मिलता रहा है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान बेशक कहते
रहे कि वह अब शांति के प्रतीक बनना चाहते हैं, मगर यह बात कभी नहीं भुलाई जा सकती कि पाकिस्तान जम्मू-
कश्मीर में आतंकवादियों के जरिए भारत की सुरक्षा को तोड़कर आतंकवाद का खेल खेलता रहा है। भारत ने जब भी
पाकिस्तान को सबूत सौंपकर आतंकवाद को खत्म किए जाने की अपील की, उसने कभी एक नहीं सुनी। नतीजतन
आए दिन लोग आतंकवाद की बलि चढ़ते रहे हैं। केंद्र सरकार ने अब जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटाते ही कुछ
दहशतगर्दों को सलाखों के पीछे पहुंचाया तो इस खूनी खेल में कुछ कमी आई है। भारत ने धारा 370 अपनी सरहद
में हटाई तो पाकिस्तान ने इसका विरोध करके कई देशों से इस मामले में उसका साथ देने की गुहार लगाई थी।
बहरहाल ज्यादातर देशों ने पाकिस्तान को दो-टूक शब्दों में जवाब दिया कि यह भारत का अंदरूनी मामला है,
इसलिए वे कोई दखल नहीं देना चाहते हैं। मुसलमानों के हकों की पैरवी करने वाले पाकिस्तान को आखिर शांत
होना ही पड़ा। नेपाल के एक हिंदू राष्ट्र होने की वजह से भारत से उसके सदैव मित्रता संबंध रहे। नेपाल के ऊपर
जब भी कोई आपदा आई, भारत हमेशा उसकी मदद करने के लिए अपने हाथ आगे बढ़ाता आया है। सन् 2015-
16 में जब भूकंप आया तो भारत ने सबसे पहले पहुंचकर राहत कार्य शुरू करवा दिए थे। नेपाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी का पुतला जलाकर उस समय मतलब-परस्त होने का संदेश दिया था। नेपाल के दक्षिण एशियाई देशों में
शामिल होने के कारण भी उसके भारत के साथ व्यापारिक संबंध घनिष्ठ रहे हैं। हिंदू होने के नाते नेपाल के लोग
भारत में रहकर रोजगार ही नहीं कमा रहे, बल्कि भारतीय सेना में रहकर देश की सेवा भी कर रहे हैं। कुछेक
नेपाल के लोगों में यही बात घर कर गई कि भारतीय सेना सिर्फ नेपालियों के दम पर टिकी हुई है। हिमाचल प्रदेश
में गुडि़या कांड में नेपाली संलिप्त होने, सोलन में नाबालिग लड़के का अपहरण किए जाने और भारी मात्रा में इन
लोगों के पास चरस और चिट्टा बरामद होने से देवभूमि की साख खतरे में पड़ती जा रही है। नेपाल अगर अपनी
हरकतों से बाज नहीं आता तो इसकी जनता को समय रहते भारत से निकालना ही सुरक्षा लिहाज से सही रहेगा।
इसी तरह चीन पर गोलियों की बौछार किए जाने से कहीं बेहतर होगा कि भारत में इसके सभी उत्पादों का
बहिष्कार करके इसकी अर्थव्यवस्था को सेंध लगाई जाए।