सिर्फ हमारी आस्था से नहीं बल्कि जीवन के हर पहलू से जुड़ा है नदियों का महत्व

asiakhabar.com | October 6, 2021 | 3:55 pm IST
View Details

-डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा-
आज भी हमारे देश में पुरानी पीढ़ी के लोगों में से अनेक लोगों को सुबह स्नान करते समय पवित्र नदियों का
स्मरण करते हुए सुना जाना आम है। यह तो नियमित स्नान की बात है जबकि किसी भी धार्मिक अनुष्ठान की
कलश पूजन के बिना कल्पना ही नहीं की जा सकती। स्नान ध्यान हो या फिर कलश पूजन, उसमें पवित्र नदियों के
जल की परिकल्पना हमारे हजारों हजारों साल के संस्कारों और सनातन परंपरा में चले आ रहे नदियों के महत्व को
दर्शाती है। दरअसल हमारे देश में नदियों को माता के रूप में माना जाता रहा है। विशेष अवसरों पर नदियों में
स्नान को पवित्र माना गया है। यहां तक कि मां गंगा की जलधारा में स्नान का जल लाने की परंपरा रही है और
मां गंगा के जल के इस पवित्र पात्र और जल की पूजा करने का विधान है।

उत्तरी भारत में गंगोज यानी कि गंगा स्नान के बाद लाए गए जल के पूजन का उत्सव हमेशा से होता रहा है। यह
तो गंगाजल की पवित्रता की बात है पर हमारी परम्परा तो ''गंगे च यमुने चैव, गोदावरी सरस्वति। नर्मदे सिन्धु
कावेरी, जले अस्मिन्न सन्निध किुरु।।'' की शाश्वत परंपरा और आस्था रही है। हालांकि इसे ढकोसला कह कर
नकारा जाने लगा हो पर आज इसका महत्व समझ में आने लगा है। समझ में यह भी आने लगा है कि हमारे
पूर्वज किस तरह से हमारे से अधिक गंभीर और समझ वाले रहे हैं। सब नदियों के स्मरण मात्र से उनके महत्व
और उस महत्व से प्राणी प्राणी को साक्षात कराने का अनवरत प्रयास रहा है। ऐसे में जब सितंबर के चौथे रविवार
को विश्व नदी दिवस मनाया जाने लगा है तो यह हमारे लिए कोई नई बात नहीं है। जो दुनिया के देश 2005 में
नदियों के महत्व को देखते हुए नदी दिवस मनाने की बात कह रहे हैं उन्हें समझना होगा कि यह तो हमारी पंरपरा
का अंग रही है। फिर भी विश्व नदी दिवस के आयोजन और इसके महत्व को नकारा नहीं जा सकता। इसमें भी
कोई दो राय नहीं कि इस तरह के आयोजनों की आज अधिक आवश्यकता हो गई है। हमारे देश की ही बात करें तो
आज गंगा सफाई अभियान या यों कहें कि नमामी गंगे अभियान चलाने की आवश्यकता आ गई। हजारों करोड़
रुपए खर्च कर गंगा जैसी नदी के सफाई और प्रदूषण से बचाने की बात आ गई है। जब गंगा नदी ही प्रदूषित हो
रही है तो दूसरी नदियों की शुद्धता की बात तो करना ही बेमानी होगी। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का नदियों
से फिर से जुड़ाव का संदेश महत्वपूर्ण हो जाता है।
दरअसल दुनिया की अधिकांश सभ्यताएं नदी किनारे ही विकसित हुई हैं। एक युग को नदी घाटी सभ्यता के नाम
से जाना जाता रहा है। देखा जाए तो जहां जीवन है तो वहां पानी की आवश्यकता है और उसके लिए नदी नालों का
होना जरूरी है। नदियां जीवन रेखा है। सभ्यताओं का विकास इनके किनारे हुआ है। क्या मनुष्य और क्या जीव जंतु
अपितु पेड़−पौधे सबकुछ इन पर निर्भर है और रहेगा। एक समय ऐसा आया कि हमने विकास के नाम पर नदियों
से भी छेड़−छाड़ की और परिणाम यह रहा कि साल भर बहने वाली नदियां भी मौसमी नदियों में परिवर्तित हो गई
तो कुछ नालें बन कर रह गईं। दूसरी ओर उनके रास्तों में अवरोध पैदा कर दिए गए, नदी नालों की राह में
गगनचुंबी इमारतें बना दीं। भविष्य या यों कहें कि बिना परिणाम सोचे शहरों के गंदे नालों का निकास नदियों में
कर दिया गया तो उद्योगों का प्रदूषित पानी नदियों में छोड़ कर प्रदूषित करने में कोई कमी नहीं छोड़ी गई। नदी
नालों की दुर्दशा का परिणाम आज समूची मानव सभ्यता के सामने आने लगा है। इससे हम भी अछूते नहीं रह गए
हैं। शहरीकरण की आड़ में नदी नालों के परंपरागत रास्तों को बंद कर दिया गया। इसका सबसे बड़ा उदाहरण इसी
से देखा जा सकता है कि जहां 1982 में जयपुर के पास रामगढ़ में एशियन खेलों के तहत नौकायन प्रतियोगिता
होती है वहीं रामगढ़ अतिक्रमणों के कारण बूंद बूंद पानी को तरस गया है। यह कोई रामगढ़ की दुर्दशा ही नहीं है
अपितु यह तो एक उदाहरण मात्र है। नदी नाले, परंपरागत जल स्रोत अतिक्रमणों की भेंट चढ़ गए हैं। आज हालात
दो तरह से बदले हैं। एक ओर तो जल संग्रहण के परंपरागत साधनों को हमने तहस नहस कर दिया है तो दूसरी
और विकास के नाम पर अत्यधिक जल दोहन से भूजल का स्तर चिंतनीय स्तर पर पहुंच गया है। माना जा रहा है
कि अगली लड़ाई होगी तो वह पानी के लिए होगी। पानी की शुद्धता के हजार विकल्प हम ढूंढ़ रहे हैं जबकि जो
हमारी परंपरागत मान्यता रही है उसे हम भूलते जा रहे हैं। आल बोतलबंद पानी का जमाना आ गया है। घर घर में
आरओ लग गए हैं। अब जब आरओ का कारोबार सेचूरेशन पर आने लगा है तो कहने लगे हैं कि आरओ लगाना
गलत है। स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
आखिर इन सब हालातों को देखते हुए ही 2005 से दुनिया के देशों को विश्व नदी दिवस मनाने की आवष्यकता
महसूस होने लगी है। हाल ही में 16वां विश्व नदी दिवस दुनिया के देशों ने मनाया है। पिछले कई वर्षों से गंगा में
सफाई अभियान चलाया जा रहा है। यमुना के प्रदूषण की बात की जा रही है। नदियों से जुड़ाव की बात की जा रही

है। जलवायु संतुलन के लिए जल प्रदूषण को दूर करने की बात की जा रही है। गिरते भूजल पर चिंता व्यक्त की
जा रही है। यह सारी दुनिया के हालात होते जा रहे हैं। ऐसे में नदियों से परंपरागत जुड़ाव को बनाए रखने की बात
करना अपने आप में महत्वपूर्ण हो जाता है। आज सैरसपाटे के नाम पर पवित्र नदियों की पवित्रता को भी भूलने
लगे हैं तो विकास के नाम पर नदियों को प्रदूषित कर रहे हैं। समय आ गया है कि हम नदी नालों के प्रति गंभीर
हो जाएं नहीं तो मानवता के लिए हालात गंभीर से गंभीरतम होने में अब अधिक समय नहीं लगने वाला है।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *