-नईम कुरेशी-
सिख समाज के छटवें गुरु हरगोविंद सिंह ने आज से 400 साल पहले 1621 में जहांगीर के दौर में ग्वालियर फोर्ट
की जेलों में बंदी बनाये गये 52 राजाओं को मुक्त कराया था। गुरु हरगोविंद सिंह को मुस्लिम संत मीयां मीर
साहब ने जहांगीर की तबिया में सुधार लाने के वास्ते 40 दिन की प्रार्थना करने का संदेश भेजा था जिस निवेदन
पर गुरु जी ग्वालियर आकर यहाँ शाही मेहमान बनकर प्रार्थना करने पहुंचे थे। उन्हें दौर में 500 रुपये का खर्चा
प्रतिदिन मुगल सल्तनत के द्वारा दिया जाता था।
ग्वालियर किले पर भारत के सभी प्रातों के हजारों सिख अनुयायी इस मामले में पिछले हते आकर गुरु जी को याद
दिलाई थी। गुरु जी को मात्र 40 दिन का चिल्ला करना था पर चन्दू नामक एक मुगल ओहदेदार ने उन्हें लम्बे
समय तक ग्वालियर फोर्ट से जाने नहीं दिया। चन्दू ब्राम्हण के बारे में इतिहासकार लिखते हैं कि वो अपनी बेटी की
शादी गुरुजी से करवाना चाहता था।
मियां मीर ने छुड़वाया
करीब 2 साल के बाद इस्लामिक गुरु मियां मीर से जहांगीर की खास पत्नी नूरजहाँ बेगम उनसे मिलने आयीं तब
उन्हें मियां मीर साहब ने खूब फटकार लगाई कि गुरुजी कब से किले पर तेरे खामिद बादशाह के लिये दुआ व देश
की भलाई व सद्भावना के लिये प्रार्थना कर रहे हैं। उन्हें अभी तक वापस क्यों नहीं बुलाया जा रहा है।
नूरजहाँ ने बादशाह से ये हुक्म मियां मीर साहब का सुनाया तब खुद बादशाह को अपनी गलती का अहसास हुआ
तब गुरुजी को तमाम कीमती तोहफे देकर वापस बुलाने का बादशाह ने हुक्म दिया जिस पर गुरुजी ने अपने साथ
सालों से बंदी बनाये गये हिन्दू राजाओं को भी छोड़ने का आदेश दे दिया। इस तरह मानवता व सद्भावना से
सराबोर गुरु हरगोविंद सिंह जी ने 52 कलियों का कुर्ता बनवाया जिसे पकड़कर इन राजाओं को ग्वालियर जेल से
मुक्त कराया गया। 13वीं सदी से ग्वालियर फोर्ट को जेल के तौर पर भी जाना जाता था। औरंगजेब ने अपने भाई
द्वारा शिकोह, मुराद आदि को भी यहां कैद किया था।
135 राजाओं ने बनवाया इसे
ग्वालियर फोर्ट भारत के तमाम उम्दा व सुरक्षित किलों में से एक रहा है जो 135 राजाओं ने 6वीं सदी से बनवाया
है पर तोमर, कछवाहा शासकों ने यहां सहस्त्रबाहु मंदिर व मानमंदिर आदि सुन्दर महल व मंदिर बनवाकर इस
ऐतिहासिक किले की खूबसूरती में चार चांद लगा दिये हैं। 12वीं सदी के शुरू में इल्तुतमिश ने इस किले के ऊपर
परकोटा (चार दीवारी) बनवाकर इसकी खूबसूरती को बढ़ा दिया। 1236 में इस किले पर पहली महिला सुल्तान
रजिया सुल्ताना का भी शासन रहा है।
यहीं रानी कुंती जन्मी
ग्वालियर फोर्ट से 40 किलोमीटर की दूरी पर ही रानी कुंती का जन्म स्थल कुंतलपुर बानमोर मुरैना के समीप है
जो उनके पिता राजा कुंत भोज का इलाका रहा था। इस किले को बनाने वाले खास राजाओं में राजा सूरजसेन 6वीं
सदी में हुये थे उनका भी जिक्र है। उन्होंने पहला स्मारक यहां तालाब के तौर पर बनवाया था। इसके बाद परमार,
कछवाह व 84 पाल राजा भी हुये थे किले पर। यहाँ नरेसर, बटेसर, सुरवाया, पढ़ावली, मितावली जैसे इलाकों से
लाई गइऔ सुन्दर 3-4 शताब्दी की मूर्तियाँ भी राज्य पुरातत्व अभिलेखाकार जो किले की तलहटी में है रखी गई हैं
व भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने भी मानमंदिर के सामने अपना भव्य म्यूजियम भी बनवाकर पर्यटकों को अच्छे
स्मारक व मूर्तिर्य़ों को दिखाकर यहाँ के सांस्कृतिक महत्व को दर्शाया जा रहा है। ये क्षेत्र भगवान श्री कृष्ण का
इलाका माना जाता है। रानी कुंती को उनकी बुआ इतिहासकार व साहित्यकार बताते हैं। उनकी एक और बुआ चंदेरी
के राजा की पत्नी थीं व उनके पुत्र "वक्रदंत" ने मंदिर के शहर दतिया की स्थापना कराई थी जिसे म.प्र. के
लोकप्रिय वजीर डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने गत 15 सालों में भव्य शकर बनवा दिया है। ग्वालियर फोर्ट के समीप 50 से
80 किलोमीटर के आसपास दतिया में मांई पीतांबरा पीठ शक्तिपीठ से लेकर सोनागिरी के जैन मंदिर हजरत
मोहम्मद गोस मुगलों के रूहानी गुरु का मकबरा ख्वाजा खानून की दरगाह से लेकर सेंवढ़ा दतिया में पहला संगीत
स्कूल होने के भी गहरे प्रमाण मिले हैं। भिण्ड के भदौरिया शासकों का किला शिवपुरी के नरवर का किला चन्देरी के
स्मारक भी खास हैं। सिख गुरु ने इस किले से 52 राजाओं को मुक्त कराके एक महान काम कर इस ग्वालियर
फोर्ट को देश दुनिया में नई पहचान दिलाई। सिख समाज यहाँ हजारों लागों को प्रतिदिन 24 घंटों भोजन परोसने का
अहम काम करता है जहां भूखों को भरपेट रोटी मिल जाती है। यहाँ के लोगों ने बाबा सेवा सिंह व बाबा देवेन्द्र की
देखरेख में 30 सालों में लाखों पेड़ लगवाये जिससे यहाँ का पर्यावरण काफी 30-40 किलोमीटर तक बेहतर हो गया
है।