-प्रो. मनोज डोगरा-
भारत मां रूपी हमारे देश की धरती अपने आप में पूरे विश्व से विलक्षण है। यहां की मिट्टी ही ऐसी है कि यहां
ऐसी महान् विभूतियां हुई जिन्होंने अपना सर्वस्व जीवन समाज व राष्ट्र के नाम समर्पित कर दिया। ऐसी ही महान्
शख्सियतों में हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर में 15 फरवरी सन् 1915 में जन्मे ठाकुर राम सिंह जी एक ऐसी अमर
विभूति थी जिन्होंने भारतीय इतिहास में हुए तथाकथित भ्रष्टाचार व कुरीतियों को मिटा कर सही भारतीय इतिहास
को नए सिरे से रचने का बीड़ा खुद के कंधों पर उठाया था। भारत में शिक्षा जगत में भारतीय इतिहास के सही और
ग़लत होने पर जितनी बहस और चर्चा है, उतनी अन्य किसी विषय पर नहीं है। ऐसे में आवश्यक हो जाता है कि
ऐसे महान् पुरुषों व शख्सियतों के विषय में जाना जाए जिन्होंने भारत के सच्चे इतिहास को खोजने व रचने में
अपनी अग्रणी भूमिका अभिनीत की हो। इस कार्य में ठाकुर राम सिंह जी का बहुत बड़ा योगदान रहा है। ठाकुर जी
ऐसे इतिहासविद् हुए जिन्होंने केवल इतिहास को पढ़ा ही नहीं, बल्कि गलत रचे इतिहास के पीछे छिपे सच्चे और
वास्तविक इतिहास को जाना और स्वयं इतिहास गढ़ा भी। ठाकुर जी का जीवन एक नदी के प्रवाह जैसा रहा है।
ठाकुर जी के साथ स्वर्गीय शब्द जोड़ना पीड़ा देता है। भगीरथ अपने तपोबल से गंगा को धरा पर लाए थे। ठाकुर
जी के पास भी जो कुछ था, वह उन्होंने सारा देश-समाज को समर्पित कर दिया। वह ऐसे व्यक्ति थे जिनके बारे में
बहुत सी बातें बताई जा सकती हैं। ठाकुर जी भारतीय सनातन परंपरा के विचारक थे। इससे आगे बढ़कर वे इस
परंपरा के व्यवहार थे। उनका हिंदू चिंतन उनके व्यवहार में उतरा था। ठाकुर जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कुशल
स्वयंसेवक व जमीन से जुड़े हुए ऐसे प्रचारक रहे जिनके अंदर जो उग्रता थी, वह तोड़ती नहीं थी, वह हम सबको
उनसे जोड़ती थी। वह कार्य और व्यवहार के अनुरूप थी। असम का प्रसंग है कि ठाकुर जी को एक कार्यकर्ता ने
कहा कि आप मेरा विषय बदल दो। ठाकुर जी का स्पष्ट उत्तर था, ‘राम सिंह असम में विषय बदलने नहीं, व्यक्ति
को बदलने के लिए आया है।’ यह थी ठाकुर जी की कठोरता। हमें जिस दिशा की ओर बढ़ना है, उसके अनुरूप हमें
अपने शरीर और चिंतन को बदलना है। विषय नहीं बदलना है, हमें बदलना है। ठाकुर जी की भारतीय इतिहास दृष्टि
इतनी दूरगामी थी कि वह भारत के गौरवमयी इतिहास के प्रति एक व्यापक और सूक्ष्म दृष्टिकोण रखते थे। उन्होंने
अपने जीवन काल में भारत के इतिहास के पुनर्लेखन की पृष्ठभूमि तैयार कर विकृतिकरण के छद्म दृष्टिकोणों के
निराकरण के सुझाव प्रदान किए। वे स्वयं इतिहास के श्रेष्ठ छात्र थे और स्वाधीनता आंदोलन की प्रत्येक घटना के
साक्षी थे।
इसी कारण उन्होंने पराधीन भारत के इतिहासकारों द्वारा लिखे गए भारत के इतिहास के दृष्टिकोणों को तथ्यों
सहित समाज के समक्ष रखा। ठाकुर जी की मान्यता थी कि किसी भी राष्ट्र के निर्माण एवं उज्ज्वल भविष्य के
उदय के लिए उस राष्ट्र के इतिहास का विशेष योगदान रहता है। विदेशी आक्रांता ग्रीक, मुसलमान रहे हों या अंग्रेज,
वे इन तथ्यों को भली-भांति जानते थे कि यदि किसी राष्ट्र पर शासन करना हो तो उसके इतिहास को सर्वप्रथम
नष्ट कर दो। ठाकुर राम सिंह जी जो इस बात पर बल देते थे कि काल, इतिहास की आत्मा है। भारत में काल की
प्राचीन अवधारणा ही काल की वैज्ञानिक अवधारणा है। ठाकुर राम सिंह जी काल की प्राचीन अवधारणा के अनुसार
इतिहास लेखन के पक्ष में थे। उनका कहना था कि भारत ही ऐसा राष्ट्र है जहां प्रकृति का इतिहास और मानव
इतिहास काल के खंडों में विद्यमान है। उनका कहना था कि इतिहासकारों को इस पर बहुत सावधानी से तथ्यपूर्ण
सामग्री संकलित कर इन दोनों पक्षों पर इतिहास लेखन करना चाहिए। इसी दृष्टिकोण से ठाकुर जी ने 197 करोड़
वर्षों के इतिहास लेखन का बीड़ा उठाया था। ठाकुर जी ने इतिहास लेखन के लिए उन बिंदुओं को आधार रूप से
स्वीकार किया जिनमें भारत का गौरवमयी इतिहास युगों की वैज्ञानिक भारतीय कालगणना के अनुसार चार युगों में
विभक्त है। ये चार युग देवयुग, ब्रह्मयुग, क्षात्र युग और वर्तमान कलियुग कालगणना क्रम में व्यवस्थित हंै।
वस्तुतः भारत के इतिहास का विषय गर्भ के संरचना काल के बिंदु से प्रारंभ होकर इस पृथ्वी पर प्रथम मानवोत्पत्ति
से लेकर 197 करोड़ वर्ष का है। तथ्यों के उद्घाटन के साथ-साथ धीरे-धीरे यह बात प्रमाणित हो रही है कि मनुष्य
जाति की आदि जननी भारत है क्योंकि विश्व के आदि मानव का प्रादुर्भाव भारत के सुमेरुपर्वत पर हुआ है। विश्व
के सम्पूर्ण प्राचीन इतिहास की सामग्री भी भारत के पास है। ठाकुर जी इन बातों को प्रमाणों सहित कहते थे।
यहां वे प्रमाण थे जिनके आधार पर ठाकुर जी ने इतिहास लेखन के व्यापक दृष्टिकोण स्थापित किए। इन्हीं
दृष्टिकोणों ने एक जीवंत संकल्प लेने के लिए ठाकुर जी को बाध्य किया और ठाकुर जगदेव चंद स्मृति शोध
संस्थान की नींव पड़ी। ठाकुर राम सिंह जी भारतीय इतिहास और कालक्रम के प्रमाणों को भली-भांति समझते थे।
उन्होंने आजीवन पाश्चात्य ईसाइयों, मुस्लिम दरबारियों, भारतीय साम्यवादी इतिहासकारों-धर्म निरपेक्ष इतिहासकारों
द्वारा खड़े किए गए कुदृष्ट सिद्धांतों का सदैव निराकरण किया। उन्होंने प्रमाण प्रस्तुत कर भावी पीढ़ी को सोचने
के लिए सामग्री प्रस्तुत की। उन्होंने कई महत्त्वपूर्ण तथ्य संजोए थे जो आज भी किताबों के रूप में प्रकाशित होकर
आज की युवा पीढ़ी को अपनी इतिहास की जड़ को जानने का अवसर प्रदान करते हैं। ऐसी शख्सियतों व उनके
किए गए कार्यों को जानना आज समाज के लिए आवश्यक है। युवा पीढ़ी को इनके कार्य व विचार प्रेरणा प्रदान
करते हैं। भारत के वास्तविक गौरवशाली इतिहास व भारतीय सभ्यता के गुमनाम तथ्यों को समाज के समक्ष लाने
में इनका योगदान अविस्मरणीय है। इनके बनाए व दिखाए मार्ग पर आज ठाकुर जगदेव चंद शोध संस्थान नेरी,
हमीरपुर चल रहा है और वास्तविक इतिहास को खोजने और रचने में योगदान कर रहा है। ऐसे प्रेरणा स्रोत
व्यक्तित्व समाज के लिए प्रेरणादायी हैं। इनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं तथा विचारों के माध्यम से ठाकुर राम
सिंह जी सदैव अमर रहेंगे।