सुरेंदर कुमार चोपड़ा
सावधान! होशियार! खबरदार! झूठों के शहंशाह! ऑक्टोपस महाराज पधार रहे हैं! अभी भी मौका है। नाप सको
तो नाप लो। पतली गली देख कर निकल लो। गली नहीं तो छेद से सही, निकल सको तो निकल लो। आठ-
आठ पैरों वाला ऑक्टोपस आठों दिशाओं को हड़पने चला है। उधर देखो बीएसएनल को चट कर गया। इधर
देखो देश के सबसे ऊंचे सिंहासन पर बैठे अपनी बाहों को अष्ट दिशाओं में फैलाए सब कुछ हड़पने की फिराक
में स्वांग रच रहा है। रेल को भेलपुरी समझकर बिना किसी दिक्कत के झटके में हजम कर गया। हवाई अड्डों
को निजी हाथों में सौंप कर सारी सरकारी हवा निकाल रहा है। इस्पात कंपनियों को ककड़ी समझकर कचर-
कचर खा रहा है।
यह ऑक्टोपस रुकने वाला नहीं है। सीबीआई, ईडी, नेता खरीद-फरोख्त, चुनावी लुभावने वादे, धार्मिक मतभेद,
निजीकरण, सोशल मीडिया हथकंडा और अंधभक्ति की आठ भुजाओं पर चलकर सबको अपना ग्रास बना लेता
है। यह तो बस चुनावी राज्यों में, लाभ पहुंचाने वाले सरकारी उपक्रमों के निजीकरण में, देश का आर्थिक
ध्रुवीकरण करने वाले हम दो हमारे दो वालों की बाहों में दिखाई देता है। ऑक्टोपस के दिमाग में निजीकरण का
कीड़ा कुलबुलाता रहता था। मात्र दो उद्यमियों को छोड़ सभी उधमियों को ठिकाने लगाना चाहता है। ऑक्टोपस
बेरोजगारों को नौकरी देने के जंजाल से छुटकारा चाहता है। उसकी नजर में सरकारी नौकरी बांस है और
बेरोजगार बांसुरी। न सरकारी नौकरी होगी न बेरोजगार मांगेंगे। एक बार सरकारी उपक्रम निजी हत्थे चढ़ जाए
तो नौकरी के चुनावी वादों से पिंड छुड़ा सकते हैं।
ऑक्टोपस की माया बड़ी निराली है। भाई साहब नहीं लगेगा (बीएसएनएल) को ऑक्टोपस साहब ने अपनी भुजा
में दबोचे जुग-जुग जियो का आशीर्वाद दे दिया। कल, आज और कल वाला एलआईसी रातोंरात कल हो न हो
बन गया और उसे भी दबोच लिया। इस ऑक्टोपस के पेट में बड़ी मराड़ मची है। इसलिए ऑक्टोपस की
भुजाओं से बचने के लिए अपनी सोच को अष्ट दिशाओं में दौड़ाना आरंभ कर दें। वरना वह दिन दूर नहीं जब
तुम्हें अष्ट सिद्धी के दाता भी नहीं बचा सकते। इसलिए सावधान! होशियार! खबरदार!