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डॉo सत्यवान सौरभ
पूरा देश नग्नता के लिए फ़िल्मों को दोष देता है परंतु आज सोशल मीडिया (सामाजिक पटल) पर इतनी भयंकर नग्नता है कि हमारी जो भारतीय फ़िल्में को भी शर्म आ जाए। आज कोई भी सोशल प्लेटफार्म अछूता नहीं है फूहड़पन और नग्नता से। सोशल मीडिया के अंधे दौर में कुछ लाइक और व्यू पाने के लिए हमारे समाज की नारियों को कैसे लक्षित किया जा रहा है और उन्हें नग्नता परोसना पड़ रहा है और वह लाइक और व्यू के आसमान में उड़ने के लिए नग्नता परोस स्वयं के मान सम्मान स्वाभिमान का सौदा आसानी से कर रही है। कुछ चप्पल छाप यूट्यूबर्स लोग केवल व्यू पाने के लिए हमारी आस्था पर इस तरह के अश्लीलता वाले थम्बनेल लगाते हैं। किससे क्या कहें? जीवन का चरमसुख अब फॉलोअर्स पाने और कमेंट आने पर निर्भर हो गया है। फ़ेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म पर नग्न अवस्था में तस्वीरें शेयर कर आज लड़कियाँ लाइक कमेंट पाकर ख़ुद को अनुगृहित करती दिखाई देती है, मानो जीवन की सबसे अहम और ज़रूरी ऊंचाई को उन्होंने पा लिया हो। इस नग्नता को हम आधुनिकता के इस दौर में न्यू फैशन कहते हैं। सोशल मीडिया पर फैशन की उबाल आई तो सोशल नेटवर्क पर युवा पीढ़ी ने ख़ुद को खूबसूरत युवतियों से पीछे पाया, फिर क्या युवकों ने ख़ुद की नग्नता का नंगा नाच शुरू किया और कहा, मैं पीछे कैसे? युवा अपने यौवन को दिखाते घूम रहे हैं मैं किसी से कम नहीं। ऐसे बिगड़ैल यूट्यूबर के इंटरव्यूज होना और भी अचरज की बात है। पहले के ज़माने में बड़े बुज़ुर्ग इस तरह की हरकतों पर नकेल कसते थे। खैर ज़माना आधुनिक है इस लिए समाज इसे स्वीकारता और आनंदित होता है।
पर ये बहुत ही गम्भीरता से सोचने का विषय है-हमारे घरों के छोटे-छोटे बच्चे किस दिशा में जा रहे हैं। माता-पिता क्यों जानबूझ कर अनदेखा कर रहें हैं? क्यों नहीं अपने बच्चों को टाईम और संस्कार देना चाहते हैं? क्यों अपने हाथो अपने बच्चो को दलदल में धकेल रहें हैं। आजकल के माता-पिता बहुत ज़्यादा मार्डन है और उन्हें नंगापन, बॉयफ्रेंड और मार्डन परिवेश बेहद आकर्षित करती है। ये आने वाली पीढ़ी और समाज के लिए घातक सिद्ध होगा। टीनएजर लड़कियों की मनःस्थिति को अपने ख़ास मकसद के मुताबिक ढाला जा रहा है। अब तो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मस आभासी नग्नता के अड्डे बने हुए हैं। वल्गर रील्स और वीडियोस तो अब हर घर के टीनेजरस बना ही रहे हैं। अब तो ऐसा महसूस होने लगा है कि वैश्यावृति के अड्डे भी नये विकल्पों के साथ हवस परस्त मर्दो के लिए उपलब्ध हो गए हैं। सोशल मीडिया पर आजकल जो ये फॉलोवर बढ़ाने के लिए जो नग्नता परोसी जा रही है। क्या उसमें परोसने वाले ही दोषी हैं? क्या उसको लाइक और शेयर करने वाले दोषी नहीं हैं? मेरे हिसाब से तो वह ज़्यादा दोषी हैं। अगर हम ऐसी पोस्ट या वीडियो को लाइक शेयर करना ही बंद कर दें तो क्या ये बंद नहीं हो सकता? आज सामाजिक विकार अपने सफ़र के सफलतम पड़ाव में है। रोकथाम की कोई गुंजाइश नहीं है। अब तो प्रलय ही इसकी गति को रोक सकती है। सोशल मीडिया में रील्स पर नग्न और अश्लील नृत्य की नौटंकी करने वाली बेटियों से निवेदन है कि चंद काग़ज़ के टुकड़ों के लिए अपने परिवार और धर्म की इज़्ज़त तार-तार ना करो। पैसे आपको आज नृत्य के लिए नहीं अपितु नग्नता परोसने के लिए दिए जा रहे है ताकि पूरे समाज को एक दिन रसातल में धकेल कर नीचा दिखाया जा सके।
हमारी संस्कृति ही नहीं बचेगी तो-तो हमारे राष्ट्र का और आने वाली पीढ़ियों का दुर्गुणों से विनाश होने से कोई बचा नहीं सकता है। अभी समझे कि संस्कृति क्या है और इसे बचाना क्यों ज़रूरी है। यह हमारे राष्ट्र का स्वाभिमान है। हमें चाहिए अश्लीलता और नग्नता मुक्त समाज अपनी नष्ट हो रहे सभ्यता और संस्कृति की रक्षा करें। बॉलीवुड की अश्लीलता, नग्नता और गाली गलौज से भरी फ़िल्मों और वेब सीरीज का बहिष्कार करें। अश्लील गाना एवं अश्लील फ़िल्मों का बहिष्कार करें। सोशल मीडिया में ट्वीटर, फ़ेसबुक आदि ऐसे प्लेटफार्म हैं जिसके माध्यम से लोग अपने विचार, अभिव्यक्ति के साथ किसी महत्त्वपूर्ण जानकारी का प्रेषण करते हैं। किन्तु वर्तमान में इन प्लेटफार्मो में अश्लील, आपत्तिजनक व नग्नता पूर्ण मैसेज व विज्ञापन की भरभार होने के साथ जुए जैसे खेलों को खेलने के लिए प्रोत्साहित कर सामाजिक प्रदूषण फैलाया जा रहा है। हमारे नौनिहाल, बहन बेटी भी इन प्लेटफार्मो का बहुतायत उपयोग करते है। इस प्रदूषण पर अंकुश लगवाने के लिए सभी को सोचना होगा और ख़ुद पहल करनी होगी। आज चेतना चाहिए नहीं तो कल रास्तों में होगा नंगा नाच। आप देश का भविष्य हो, कठपुतली मत बनो। स्वच्छंदता के नाम पर फूहड़ता सोशल मीडिया के इस दौर में अपने चरम पर है। हमारी संस्कृति में स्त्री को धन की संज्ञा से नवाजा गया वह भी बहुमूल्य न कि टके बराबर। इसलिए राजदरबारो में होने वाले मुजरे भी चारदीवारो के अंदर ही होते थे। सत्य यह है कि अश्लीलता को किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं ठहराया जा सकता। ये कम उम्र के बच्चों को यौन अपराधों की तरफ़ ले जाने वाली एक नशे की दुकान है और इसका उत्पादन आज सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म स्त्री समुदाय के साथ मिलकर कर रहा है। मस्तिष्क विज्ञान के अनुसार 4 तरह के नशों में एक नशा अश्लीलता से भी है।
आचार्य कौटिल्य ने चाणक्य सूत्र में वासना’ को सबसे बड़ा नशा और बीमारी बताया है। यदि यह नग्नता आधुनिकता का प्रतीक है तो फिर पूरा नग्न होकर स्त्रियाँ पूर्ण आधुनिकता का परिचय क्यों नहीं देती? गली-गली और हर मोहल्ले में जिस तरह शराब की दुकान खोल देने पर बच्चों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है उसी तरह अश्लीलता समाज में यौन अपराधों को जन्म देती है। इसको किसी भी तरह उचित नहीं ठहराया जा सकता है। विचार करिए और चर्चा करिए या फिर मौन धारण कर लीजिए।