सुरेंदर कुमार चोपड़ा
शिवपुराण के अनुसार जब तारकासुर के पराक्रम से सभी देवगण त्रस्त हो गये तो वे भगवान रूद्र के पास
अपनी दुर्दशा सुनाने तथा तारकासुर से त्राण पाने के लिये गये। भगवान शिव ने उनके दुख को दूर करने
के लिये दिव्यास्त्र (अधारे अस्त्र) तैयार करने के लिये सोचा और इस दिव्यास्त्र को तैयार करने में उन्हें
एक हजार वर्ष तक अपने नेत्रों को खुला रखना पड़ा। नेत्रों के खुल रहने के कारण जो अश्रु (आंसू) बूंद
नीचे गिरे, वे ही पृथ्वी पर आकर रुद्राक्ष के रूप में उत्पन्न हो गये। यूं तो रुद्राक्ष नक्षत्रों के अनुसार
सताइस मुखों वाला, कहीं-कहीं इक्कीस मुखों वाला तो कहीं पर सोलह मुखों तक का वर्णन मिलता है।
परन्तु चैदहमुखी तक का ही रुद्राक्ष अत्यन्त मुश्किल से प्राप्त होता है। इन सभी रुद्राक्षों की मुख के
आधार पर अलग-अलग विशेषताएं होती हैं। जिस प्रकार समस्त देवताओं में विष्णु नवग्रहों में सूर्य होते
हैं, उसी प्रकार वह मनुष्य जो कंठ या शरीर पर रुद्राक्ष धारण किए होता है अथवा घर में रुद्राक्ष को पूजा-
स्थल पर रखकर पूजन करता है, मानवों में श्रेष्ठ मानव होता है-
देवानांच यथा विष्णु, ग्रहाणां च रविः।
रुद्राक्षं यस्य कण्ठं वा, गेहे स्थितोपि वा।।
दो मुख वाला रुद्राक्ष, छह मुख वाला रुद्राक्ष तथा सात मुख वाले रुद्राक्ष को एक साथ मोतियों के साथ
जड़कर माला के रूप में पहनने से रुद्राक्ष कवच का रूप बन जाता है। यह कवच सभी अमंगल का नाश
करता है तथा इच्छानुसार फल प्रदान करने वाला होता है। दो मुख (द्विमुखी) रुद्राक्ष शिवपार्वती का
स्वरुप है। यह अर्ध्दनारीश्वर का प्रतीक है। इसको धारण करने से धन-धान्य, सुत आह्लाद आदि सभी
वैभव प्राप्त हो जाते हैं। कुंवारी कन्या प्रभुत्व वाली पति प्राप्त करती है तथा बच्चों में अच्छा संस्कार आ
जाता है। छह मुख (षड्मुखी) रुद्राक्ष को भगवान कार्तिकेय का स्वरूप माना जाता है। इसका संचालक
शुक्र ग्रह है। इस रुद्राक्ष को धारण करने से वैवाहिक समस्याएं, रोजगारपरक समस्याएं, भूत-प्रेतादिक
समस्याएं त्वरित नष्ट हो जाती हैं। किसी भी प्रकार के अमंगल की संभावना नहीं रहती। सात मुख वाला
(सप्तमुखी) रुद्राक्ष अनंगस्वरूप एवं अनंक के नाम से प्रसिध्द है। इस रुद्राक्ष का प्रतिनिधित्व शनिदेव
करते हैं। इस रुद्राक्ष को धारण करने से शनिदेव की वक्रदृष्टि समाप्त हो जाती है तथा पारिवारिक कलह,
दांपत्य जीवन में वैमनस्यता आदि दूर हो जाती है। एक माला में द्विमुखी रुद्राक्ष, षड्मुखी रुद्राक्ष तथा
सप्तमुखी रुद्राक्ष के एक-एक दाने के साथ ही बीच में मोती को गूंथ देने से रुद्राक्ष कवच का निर्माण हो
जाता है। इस माला को स्त्री-पुरुष, युवक-युवती कोई भी इसका अभिषेक करके गले में धारण कर सकता
है। जो व्यक्ति जिस किसी भी सात्विक भावना से इस रुद्राक्ष कवच को धारण करता है, उसकी कामना
अवश्य ही पूरी होती है। किसी भी सोमवार को मोती जड़ित रुद्राक्ष कवच को अपने पूजा स्थल पर रखकर
उसका दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल पंचामृत द्वारा अभिषेक कर दिया जाता है। अभिषेक करते समय
अभिषेक करने वाले को पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए। माला का अभिषेक करके
अभिषेककर्ता प्रार्थना की मुद्रा में नमः शिवाय पञ्चाक्षरी मंत्र का एक सौ आठ बार जाप कर लें।
अभिषेक करने से पहले भगवान शंकर का एवं कवच का धूप, दीप, पुष्पादि द्वारा षोडशोपचार विधि से
पूजा कर लेना भी त्वरित फलदायी होता है। बिल्वपत्र चढ़ाने से भगवन शिव अत्यन्त प्रसन्न होते हैं। पूरी
विधि समाप्त हो जाने पर रुद्राक्ष कवच को गले में धारण कर लें। विद्येश्वर संहिता के अनुसार रुद्राक्ष
कवच धारण करने वाले व्यक्ति की कोई भी ऐसी कामना नहीं होती जो पूरी न हो सके। आज के समय
में छात्र-छात्रा, गृहिणी, व्यवसायी नौकरीपेशा आदि सभी के लिये यह कवच अत्यंत ही प्रभावशाली सिध्द
हो सकता है। कन्या का विवाह, पुत्र की पढ़ाई, आर्थिक सम्पन्नता, निर्भयता आदि के लिए रुद्राक्ष कवच
को अवश्य ही धारण किया जाना चाहिये।