-आर.के. सिन्हा-
जरा सोचिए कि लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल के बारे में अब यह कहा जा रहा है कि 'उनके मोहम्मद अली
जिन्ना से संबंध थे। वे जम्मू-कश्मीर पाकिस्तान को सौंपना चाहते थे।’ यह दावा विगत दिनों कांग्रेस वर्किंग कमेटी
की मीटिंग में तारिक हामिद कारा ने किया। वे अभी जम्मू-कश्मीर कांग्रेस के नेता हैं। वे पहले पीडीपी में थे। जिस
बैठक में सिर्फ सोनिया गांधी और राहुल गांधी का उम्मीद के मुताबिक स्तुतिगान हुआ, वहीं पर एक नेता सरदार
पटेल पर ओछे व तथ्यों से परे आरोप लगाता रहा।
क्या जब देश अपनी आजादी की 75 वीं वर्षगांठ मना रहा है तब स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाने वाले
सरदार पटेल को जिन्ना का साथी बताने की हिमाकत की जाएगी ? क्या यह किसी को बताने की जरूरत है कि
सरदार पटेल का देश की आजादी की लड़ाई और फिर देश को एकता के सूत्र में पिरोने में अहम योगदान था ?
जिस सरदार पटेल को सारा देश आदरणीय मानता है उसे कांग्रेस की सबसे शक्तिशाली कमेटी में सोनिया-प्रियंका-
राहुल की उपस्थिति में अपमानित किया गया और सोनिया परिवार चुपचाप सुनता रहा। यह उनकी सहमति का
प्रमाण नहीं तो और क्या है ? यह अक्षम्य है। इसके लिए कांग्रेस को देश से माफी मांगनी चाहिए।
इतिहास के हर विद्यार्थी को पता है कि सरदार वल्लभ भाई पटेल ही देश के पहले प्रधानमंत्री होते। वे महात्मा
गांधी की इच्छा का सम्मान करते हुए पूर्ण कार्यसमिति के समर्थन के बाद भी इस पद से पीछे हट गए थे और
नेहरू जी देश के पहले प्रधानमंत्री बने थे। देश की स्वतंत्रता के पश्चात सरदार पटेल उपप्रधानमंत्री के साथ प्रथम
गृह, सूचना तथा रियासत विभाग के मंत्री भी थे। सरदार पटेल को उनके निधन के दशकों बाद 1991 में भारत के
सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया था। कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में जो कुछ हुआ वह
बताता है कि कांग्रेस ने अपने ही नेता का शुरू से अनादर किया है। वह सिलसिला अब भी जारी है। उन्हें भारत
रत्न देने में आखिर इतने साल क्यों लगे ? क्या कोई कांग्रेस का नेता बताएगा ?
क्या आज के कांग्रेस नेताओं को यह पता नहीं कि सरदार पटेल महान देशभक्त, दूरदर्शी एवं देश के अति लोकप्रिय
नेता थे ? उन्होंने किसानों के हितों के लिए जीवन भर संघर्ष किया। वे अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवाओं के
जनक भी थे। सरदार पटेल ने बारदौली में किसानों के आंदोलन का नेतृत्व किया तथा अंग्रेजों को झुकने पर मजबूर
कर दिया था।
अंग्रेजों ने वर्ष 1947 में भारत को स्वतंत्र तो कर दिया परंतु 562 से अधिक रियासतों को उनकी मर्जी पर छोड़
दिया। सरदार पटेल ने देश के उपप्रधानमंत्री के साथ-साथ गृहमंत्री का कार्यभार संभाला और अपनी सूझबूझ से सभी
रियासतों को भारत के तिरंगे के नीचे विलय करवा दिया तथा अखंड भारत का निर्माण किया। उन्होंने जिस प्रकार
से आजादी के बाद देश में मौजूद चुनौतियों का सामना करके राष्ट्र की एकता में अहम भूमिका निभाई उसके लिए
देश हमेशा उनका कृतज्ञ रहेगा। दुख की बात तो यह है कि अब उन्हें गलत तरीके से पेश किया जा रहा है और
कश्मीरी होने का दावा करके।
सरदार पटेल ने बंटे हुए देश को एकता के सूत्र में पिरोने का अतुलनीय कार्य किया। कश्मीर का फैसला अपने हाथों
में लेने वाले नेहरू के वंशज ही पटेल को अपमानित करवा रहे हैं। कौन नहीं जानता कि आज की कश्मीर समस्या
के एकमात्र जिम्मेवार नेहरू ही हैं। गृहमंत्री के रूप में उनकी पहली प्राथमिकता देसी रियासतों को भारत में मिलाना
ही था। इस काम को उन्होंने बिना खून बहाए करके दिखाया। केवल हैदराबाद के 'ऑपरेशन पोलो' के लिए उन्हें सेना
भेजनी पड़ी। ऑपरेशन पोलो सितम्बर 1948 को भारतीय सेना के गुप्त ऑपरेशन का नाम था, जिसमें हैदराबाद के
आखिरी निजाम को सत्ता से अपदस्थ कर दिया गया और हैदराबाद को भारत का हिस्सा बना लिया गया था। भारत
की स्वतंत्रता के बाद जब भारतीय संघ का गठन हो रहा था, हैदराबाद के निजाम ने भारत के बीच में होते हुए भी
स्वतंत्र देश बने रहने की ही कोशिश शुरू कर दी थी।
दरअसल, देश के विभाजन के दौरान हैदराबाद भी उन शाही घरानों में से था जिन्हें पूर्ण आजादी दी गई थी।
हालांकि, उनके पास दो ही विकल्प बचे थे- भारत या पाकिस्तान में शामिल होना। ज्यादातर हिन्दू आबादी वाले
राज्य के मुसलमान शासक और आखिरी निजाम ओस्मान अली खान ने आजाद भारत में रहने फैसला किया और
अपने साधारण सेना के बल पर राज करने का फैसला किया। निजाम ने ज्यादातर मुस्लिम सैनिकों वाली रजाकारों
की सेना बनाई।
सरदार पटेल चाहते थे कि हैदराबाद के निजाम खुद भारत संघ में सम्मिलित हो जायें। लेकिन, निजाम के अड़ियल
रवैये के कारण सरदार पटेल ने हैदराबाद में पुलिस एक्शन का फैसला किया। इस काम को पूरा करने में सिर्फ पांच
दिन लगे। इस अभियान में 27 से 40 हजार जानें गईं। हालांकि जानकार ये आंकड़ा दो लाख से भी ज्यादा बताते
हैं। सरदार पटेल सदैव देश हित में फैसले लेते थे।
सरदार पटेल की महानतम देन थी 562 छोटी-बड़ी रियासतों का भारतीय संघ में विलय करके भारतीय एकता का
निर्माण करना। विश्व के इतिहास में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं हुआ जिसने इतनी बड़ी संख्या में राज्यों का
एकीकरण करने का साहस भी किया हो। दरअसल तीन रियासतों का विलय अधूरा रह गया था, जिसमें दो
रियासतों-हैदराबाद व जूनागढ़ का विलय सरदार पटेल ने दृढ़-निश्चय दिखाते हुए किया। जम्मू-कश्मीर के विलय का
मसला प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु स्वयं देख रहे थे। वह मामला लंबे समय तक उलझा रहा, आज भी
उलझा ही हुआ है। हालांकि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने धारा 370 को निष्प्रभावी करते हुए जम्मू-कश्मीर को सही
मायने में भारत का अभिन्न अंग बनाकर सरदार पटेल के ‘एक राष्ट्र’ के स्वप्न को साकार किया है। फिर भी
पीओके और बालिस्तान को भारत के शासन क्षेत्र में लाना अभी भी बाकी है।
जैसा मैंने पहले कहा है कि सरदार पटेल भारत की भारतीय प्रशासनिक सेवाओं के जनक भी थे। राजधानी के
सिविल लाइंस पर स्थित मेटकाफ हाउस का लौह पुरुष सरदार पटेल से बेहद करीब का नाता रहा है। यहीं पर
सरदार पटेल ने 21 अप्रैल, 1947 स्वतंत्र होने जा रहे भारत के नौकरशाहों को सुराज के महत्व पर संबोधित किया
था। अपने भाषण में उन्होंने सिविल सेवकों को भारत का स्टील फ्रेम कहा। इसलिए वर्ष 2006 से 21 अप्रैल को
राष्ट्रीय नागरिक सेवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोक प्रशासन में विशिष्टता के लिए प्रधानमंत्री
पुरस्कार भी देते हैं।
सरदार पटेल ईमानदारी की साक्षात् मिसाल थे। उनके पास खुद का मकान भी नहीं था। 15 दिसंबर 1950 को जब
उनका निधन हुआ, तब उनके बैंक खाते में सिर्फ 260 रुपए मौजूद थे। जिस सरदार पटेल ने देश को सिर्फ दिया ही
दिया उसे अब जिन्ना का साथी कहा जा रहा है। लानत है, उन सब पर जो सरदार पटेल का अपमान कर रहे हैं।
देश के समझदार युवा उनका हिसाब जरूर करेंगे।