-सनत जैन-
केंद्र सरकार दिन और रात में बिजली का उपयोग करने के लिए अलग-अलग टैरिफ लागू करने की तैयारी कर रही है। बिजली की दरें तय करने के लिए सरकार टाइम आफ डे का अलग रेट निर्धारित करेगी। पीक टाइम पर बिजली की दरें ज्यादा होंगी। और जब पीक अवर्स नहीं होगा, उस समय बिजली की दरें कम की जाएंगी। सरकार का कहना है कि पीक अवर मैं बिजली के रेट ज्यादा होने के कारण लोग बिजली खपत में नियंत्रण करेंगे। जब बिजली की उपलब्धता ज्यादा होगी। और खपत कम होगी, उस समय बिजली उपभोक्ताओं को 20 फ़ीसदी कम दर पर बिजली देने का प्रावधान किया जा रहा है। केंद्रीय बिजली मंत्री आरके सिंह ने यह जानकारी देते हुए बताया कि टीओडी उपक्ताओं के लिए नवीन बिजली प्रणाली फायदे का सौदा होगा। उन्होंने कहा कि पीक आवर, सोलर पावर और सामान्य घंटों के लिए अलग-अलग बिजली के टैरिफ की दरें तैयार की जाएंगी। उन्होंने यह भी कहा कि नए टैरिफ की जागरूकता और प्रभावी बिजली उपयोग के लिए उपभोक्ताओं के बीच में जागरूकता अभियान चलाया जाएगा। 01 अप्रैल 2024 से 1 अप्रैल 2025 के बीच के सभी आम उपभोक्ताओं के लिए पीक अवर्स को छोड़कर अन्य घंटों में लगभग 20 फ़ीसदी की रियायत दी जाएगी। केंद्र सरकार ने बिजली उपभोक्ता अधिकार अधिनियम 2020 में संशोधन कर, बिजली शुल्क प्रणाली में दो बदलाव किए हैं। जिसके अनुसार दिन के समय के शुल्क प्रणाली की शुरुआत और स्मार्ट मीटर से जुड़े प्रावधानों को युक्तिसंगत बनाने के लिए व्यापक स्तर पर बदलाव किए जाएंगे।
पिछले 3 दशक में बिजली सुधार के जो भी कार्यक्रम सरकार ने तैयार किए हैं। वह सभी जमीनी स्तर पर फेल हुए हैं। बिजली चोरी रोकने के लिए इलेक्ट्रॉनिक और स्मार्ट मीटर लगाए गए। इलेक्ट्रॉनिक मीटर लगाए गए, लेकिन बिजली चोरी रुकने के स्थान पर और बढ़ती चली गई। लाइन लास खत्म करने के लिए खुले वायर के स्थान पर प्लास्टिक कोटेड वायर लगाए गए। जिसमें करोड़ों रुपए खर्च हर साल किए गए। इसके बाद भी लाइन लास कम नहीं हुआ। साल दर साल वह बढ़ता ही जा रहा है। अब सरकार दिन और रात में बिजली की दरें अलग-अलग तय करने जा रही है। इसके लिए अलग-अलग मीटर और अलग-अलग टैरिफ के बिल उपभोक्ताओं को देने के लिए बिजली कंपनियां, करोड़ों रुपए अतिरिक्त खर्च करेंगी। बिजली कंपनियों का खर्च इससे काफी बढ़ेगा। जिस तरह के नियम बनाए जा रहे हैं। विद्युत नियामक आयोग, बिजली कंपनियों के द्वारा प्रस्तुत खर्च के आधार पर बिजली की दरें लगातार बढ़ाती जा रही हैं। बिजली कंपनियों को तो नियामक आयोग से लाभ मिल जाता है। लेकिन आम उपभोक्ताओं की कोई भी सुनवाई नियामक आयोग में नहीं होती है। दोहरे टैरिफ का लाभ उपभोक्ताओं को मिलेगा या नहीं। यह तो पता नहीं है, लेकिन बिजली कंपनियां और सरकारी अधिकारी इसके लिए जो प्रावधान करेंगे। उसमें करोड़ों अरबों रुपए जरूर खर्च होंगे। यह अभी तक का अनुभव देखने को मिला है। सरकार जो भी नियम कानून संशोधन करती है। उसके पीछे जो कारण बताए जाते हैं। उसको देखते हुए ऐसा लगता है, कि यह बहुत जरूरी है। लेकिन सरकार ने आज तक यह जानने की कोशिश नहीं की। कि जिन कार्यों के लिए करोड़ों अरबों रुपए खर्च किए गए हैं। उनके परिणाम सार्थक रहे हैं, या नहीं। इलेक्ट्रॉनिक मीटर, स्मार्ट मीटर, एवं विद्युत व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए के नाम पर बिजली कंपनियों द्वारा अरबों रुपए खर्च किए गए। इसकी वसूली उपभोक्ताओं से की गई। बिजली आपूर्ति के लिए समय-समय पर जो भी कार्य किए गए हैं। उनका लाभ उपभोक्ताओं तक नहीं पहुंचा है। उपभोक्ताओं का बिजली का खर्च लगातार बढ़ता ही जा रहा है। समय पर बिजली मिलती नहीं है, बार-बार बिजली ट्रिप हो रही है। लोगों के उपकरण खराब हो रहे हैं। जिसको लेकर बिजली उपभोक्ताओं में लगातार नाराजगी बढ़ रही है। बिजली कंपनियों की कोई जिम्मेदारी नहीं है। केंद्र एवं राज्य सरकारों को फ्री बिजली या विभिन्न समुदायों के लिए बिजली में रियायत देने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। अभी तक का अनुभव यही है। बिजली कंपनियों के खर्चे लगातार बढ़ते जा रहे हैं। उपभोक्ताओं को महंगी बिजली खरीदना पड़ रही है। बिजली कंपनियों द्वारा जो नए नए प्रयोग किए जा रहे है। उसका खामियाजा बिजली उपभोक्ताओं को साल दर साल भुगतना पड़ रहा है। सरकार यदि कोई कानून और नियम बनाती है। तो उसका क्रियान्वयन सही तरीके से हुआ या नहीं। इसकी जिम्मेदारी भी तय की जाने की जरूरत है।