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विकास गुप्ता
हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा नए सहकारिता मंत्रालय का गठन किया गया है, जिससे न केवल सहकारिता
आंदोलन के सफल होने की आशा की जा रही है, बल्कि 'सहकार से समृद्धि' की परिकल्पना के साकार होने की
उम्मीद भी की है। देश में आज 55 किस्मों की और 8.5 लाख से अधिक सहकारी साख समितियां कार्यरत हैं,
जिनमें कुल सदस्य संख्या 28 करोड़ है। जैसे, डेढ़ लाख प्राथमिक दुग्ध सहकारी समितियां कार्यरत हैं, तो 93,000
प्राथमिक कृषि सहकारी साख समितियां कार्यरत हैं, जो ग्रामीण इलाकों में कार्य करती हैं।
देश में सहकारी साख समितियां भी कार्यरत हैं, जो तीन प्रकार की हैं। एक वे, जो अपनी सेवाएं शहरी इलाकों में
प्रदान करती हैं। दूसरी वे, जो ग्रामीण इलाकों में तो सेवाएं देती हैं, पर कृषि क्षेत्र में ऋण प्रदान नहीं करतीं। और
तीसरी वे, जो उद्योगों में कार्यरत श्रमिकों एवं कर्मचारियों की वित्तीय जरूरतें पूरी करने का प्रयास करती हैं। देश में
करीब एक लाख महिला सहकारी साख समितियां भी हैं। ऐसे ही मछली पालन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मछली
सहकारी साख समितियां हैं, तो बुनकर सहकारी साख समितियां भी हैं और हाउसिंग सहकारी समितियां भी।
सहकारी समितियों में सामान्यतः निर्णय सभी सदस्यों द्वारा मिलकर लिए जाते हैं। यह क्षेत्र देश के आर्थिक
विकास में अहम भूमिका निभा सकता है। पर इस क्षेत्र में बहुत सारी चुनौतियां भी रही हैं। जैसे सहकारी बैंकों की
कार्य प्रणाली को दिशा देने एवं इनके कार्यों को प्रभावशाली तरीके से नियंत्रित करने के लिए शीर्ष स्तर पर कोई
संस्थान नहीं है। इसीलिए सहकारी क्षेत्र के बैंकों की कार्य पद्धति पर हमेशा से ही सवाल उठते रहे हैं। नए
सहकारिता मंत्रालय के गठन के बाद उम्मीद करनी चाहिए कि सहकारी क्षेत्र के संस्थानों का प्रबंधन भी पेशेवर
बनेगा।
सहकारी क्षेत्र पर आधरित आर्थिक मॉडल की मुख्य चुनौतियां ग्रामीण इलाकों में कार्य कर रही जिला केंद्रीय सहकारी
बैकों की शाखाओं के सामने हैं। इन बैंकों द्वारा ऋण प्रदान करने की योजना में समय के साथ परिवर्तन नहीं किया
गया, जबकि अब ग्रामीण क्षेत्रों में आय का स्वरूप बदल गया है। ग्रामीण इलाकों में अब केवल 35 प्रतिशत आय
कृषि आधारित कार्य से होती है, शेष 65 प्रतिशत आय गैर कृषि आधारित कार्यों से होती है। अतः ग्रामीण इलाकों
में कार्य कर रहे इन बैकों को अब नए व्यवसाय मॉडल खड़े करने होंगे।
भारत विश्व में सबसे अधिक दूध उत्पादन करने वाले देशों में शामिल हो गया है। पर देश के सभी भागों में डेयरी
उद्योग को बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है। केवल दुग्ध सहकारी समितियां स्थापित करने से इस क्षेत्र की
समस्याओं का हल नहीं होगा। किसानों की आय दोगुना करने के लिए सहकारी क्षेत्र में खाद्य प्रसंस्करण इकाइयां
गठित करनी होगी। शहरी क्षेत्रों में गृह निर्माण सहकारी समितियों का गठन किया जाना भी जरूरी है, क्योंकि वहां
मकान के अभाव में बड़ी आबादी झुग्गी-झोपड़ियों में रहने को विवश है। आवश्यक वस्तुओं को उचित दामों पर
उपलब्ध कराने के उद्देश्य से उपभोक्ता सहकारी समितियों का भी अभाव है। जबकि पहले इस तरह के संस्थानों ने
अच्छा काम किया था। ईज ऑफ डुइंग बिजनेस को सहकारी संस्थानों पर भी लागू किया जाना चाहिए। इन
संस्थानों को पूंजी की कमी न हो, इस दिशा में भी प्रयास होने चाहिए। ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए, जिससे
सहकारी क्षेत्र के संस्थान भी पूंजी बाजार से पूंजी जुटा सकें।
विभिन्न राज्यों के सहकारी क्षेत्र में लागू किए गए कानून बहुत पुराने हैं। इन कानूनों में परिवर्तन करने का समय
आ गया है। इस क्षेत्र में पेशेवर लोगों की भी कमी है। डेयरी क्षेत्र इसका एक जीता-जागता प्रमाण है। पर नए
मंत्रालय के गठन के बाद आशा की जानी चाहिए कि सहकारी क्षेत्र में भी पेशेवर लोग आकर्षित होने लगेंगे। साथ
ही, जो सहकारी समितियां निष्क्रिय होकर बंद होने के कगार पर पहुंच गई हैं, उन्हें अब पुनः चालू हालत में लाया
जा सकेगा। आशा की जानी चाहिए कि अमूल की तर्ज पर अन्य क्षेत्रों में भी सहकारी समितियों द्वारा सफलता की
कहानियां लिखी जाएंगी।