समाज को सार्थक संदेश देता है राजस्थान के दंपति का साहसिक कदम

asiakhabar.com | July 3, 2019 | 4:16 pm IST
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अपने लिए तो हर कोई व्यक्ति जीता है लेकिन जो व्यक्ति दूसरों के लिए जीता है और अपना जीवन
मानवता की सेवा में लगाते है, ऐसे व्यक्ति समाज के लिए मार्गदर्शक और प्रेरणादायी होते है। सेवा भाव
के जरिए हम समाज को नई दिशा दे सकते हैं। 1893 में शिकागो (अमेरिका) में विश्वधर्म सम्मेलन में
भारत की अतुल्य विरासत और ज्ञान का डंका बजाने वाले स्वामी विवेकानन्द ने भी सेवा के लिए लिखा
है कि “धन्य हैं वो लोग जिनके शरीर दूसरों की सेवा करने में नष्ट हो जाते हैं”। स्वामी विवेकानन्द के
अनुसार भारत का राष्ट्रीय आदर्श त्याग और सेवा है, इसी के माध्यम से परम लक्ष्य की प्राप्ति की जा
सकती है। भारत के महान लेखक मुंशी प्रेमचंद ने कहा था कि ‘जीवन का वास्तविक सुख, दूसरों को सुख
देने में है, उनका सुख लूटने में नहीं’।
समाज सेवा से बड़ा पुण्य कार्य कोई नहीं। सेवा की भावना इंसान में न हो तो माना जाता है कि वह पशु
प्रवृत्ति वाला है। समाज सेवा अगर नि:स्वार्थ भाव से की जाए तो मानवता का कर्तव्य सही मायनों में
निभाया जा सकता है। संत कवि कबीर दास जी ने ठीक ही कहा है— 'वृक्ष कबहुँ न फल भखै, नदी न
संचै नीर, परमारथ के कारने साधुन धरा शरीर’ भावार्थ: वृक्ष कभी भी अपना फल खुद नहीं खाता, न ही
नदी कभी अपना जल पीती है| उसी प्रकार साधू संतों का जीवन दूसरों के परमार्थ और परोपकार के लिए
ही होता है| इसलिए संत कवि कबीर दास जी कहते है कि इंसान को नदी व वृक्ष के समान अपने आप
को बनाना चाहिए, ताकि दूसरों की सेवा और सहायता कर सकें।
कविवर रहीम के दोहे जीवन में सेवा भाव की शिक्षा देते हैं जैसे ‘तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि
न पान। कहि रहीम पर काज हित, संपति संचहि सुजान’ अर्थ: कविवर रहीम कहते हैं कि जिसत तर पेड़
कभी स्वयं अपने फल नहीं खाते और सरोवर कभी अपना पानी नहीं पीते उसी तरह सज्जन लोग दूसरे
के हित के लिये संपत्ति का संचय करते हैं। धर्मशास्त्रों के अनुसार हाथ का महत्व हीरे और पन्ने की
अंगूठियां पहनने में नहीं बल्कि हाथ से दान करने और सेवा करने में है। स्वामी विवेकानन्द ने कहा है
कि ‘अगर धन दूसरों की भलाई करने में मदद करे, तो इसका कुछ मूल्य है, अन्यथा, ये सिर्फ बुराई का
एक ढेर है, और इससे जितना जल्दी छुटकारा मिल जाये उतना बेहतर है’।
राजस्थान के जयपुर के कोटपूतली में शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. रामेश्वर यादव एक दिन अपनी पत्नी के
साथ अपने गांव चुरी जा रहे थे जब उन्होंने रास्ते में बारिश में भीगती 4 लड़कियों को सड़क किनारे
देखा। उनकी पत्नी तारावती ने उन लड़कियों को लिफ्ट ऑफर की। रास्ते में बातचीत में लड़कियों ने कहा

कि परिवहन सेवा के अभाव में छात्राओं को हर रोज पैदल ही आना पड़ता है। कई बार रास्ते में छेड़छाड़
की घटनाएं होती है। यह बातें डॉ.दंपती के दिल को छू गई।
कोटपूतली में शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. रामेश्वर यादव अवकाश प्राप्ति डॉक्टर रामेश्वर यादव ने अपने
सामान्य भविष्य निधि (पीएफ) से 17 लाख रुपये निकाल लिया जोकि उनके कुल पीएफ सेविंग का 75
फीसदी हिस्सा था।बाद में उन्होंने अपनी सेविंग अकाउंट से 2 लाख रुपये जोड़कर 19 लाख रुपये की एक
बस खरीदी।
कोटपूतली में शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. रामेश्वर यादव ने गाँव की स्कूल जाने वाली बेटियों की रोजमर्रा की
परेशानी को देखते हुए एक जुलाई 2017 को 19 लाख में 52 सीटर नई सफेद टाटा स्टार बस खरीदकर
लड़कियों के लिए गांव से कोटपूतली पढ़ाई के लिए निशुल्क शुरू की। यह बस चूरी, पवाना, रामनगर,
कायमपुरा बास व भोपतपुरा करीब 54 बालिकाओं को प्रतिदिन कॉलेज लेकर आती है और कॉलेज के बाद
घर छोड़ती है। उनसे कोई खर्चा नहीं लिया गया। डीजल और चालक का वेतन भी डॉक्टर दंपती चुकाते
हैं। सरकारी सेवा से रिटायर होने के बाद शिशुरोग विशेषज्ञ डॉ. रामेश्वर प्रसाद यादव नीम का थाना से
करीब 50 किमी दूर एक प्राइवेट क्लीनिक चलाते हैं। डॉ. रामेश्वर प्रसाद यादव खुद 12 साल पुरानी
मारुति 800 चलाते हैं।
निशुल्क बेटी वाहिनी सेवा की वजह से फायदा यह हुआ कि अब वे लोग भी अपनी बेटियों को कॉलेज
भेजने के लिए आगे आ रहे हैं, जिनके परिवार लड़कियों को परिवहन सुविधा का अभाव व निजी वाहनों
में छेड़छाड़ की बढ़ती घटनाओं से परेशान होने की वजह से उच्च शिक्षा के लिए बाहर भेजने में संकोच
करते थे।
किसी ने शायद ठीक ही कहा है कि बेटियां हर अंधेरे में उजाले को लाने का हौसला रखती हैं। अगर
बेटियां शिक्षित होंगी तो हर ओर उजियारा फैलेगा। समाज में बेटियों का पढ़ा लिखा होना जरूरी है। यदि
बेटी पढ़ी लिखी होगी तो समाज सशक्त होगा। समृद्ध समाज से ही भारत विकसित राष्ट्र बन सकता है।
शिक्षा के संबंध मे भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्‍न' से सम्मानित दक्षिण अफ्रीका के
भूतपूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला ने कहा था ‘शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है जिसे आप दुनिया को
बदलने के लिए उपयोग कर सकते हैं’।
डॉ. रामेश्वर यादव के निशुल्क बेटी वाहिनी सेवा के साहसिक कदम की जमकर तारीफ हो रही है। कहा
जाता है कि एक शिक्षित बेटी का मतलब शिक्षित परिवार और शिक्षित राष्ट्र होता है। शिक्षित बेटियां देश
की उन्नति का आधार है। और बालिकाएं शिक्षित होने से समाज व देश का विकास होगा। निशुल्क बेटी
वाहिनी सेवा की वजह से बेटियों आज शिक्षा ग्रहण करके उज्जवल भविष्य को साकार करने के लिए
प्रयत्नशील है।

हर कोई आज की इस आज की इस भागदौड़ वाली जिंदगी में एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में
लगा हुआ है, किसी की मदद करने का वक्त किसी के पास नहीं है। मगर आज भी हमारे समाज में कुछ
ऐसे व्यक्ति भी होते हैं जो महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा के लिए सचमुच चिंतित भी होते है और
उनके लिए बहुत कुछ करते भी हैं। इसकी एक शानदार और बढ़िया मिसाल हैं डॉ. आर.पी. यादव,
जिन्होंने अपने जीवनभर की बचत 19 लाख रुपए जुटाकर छात्राओं के लिए एक कॉलेज बस का इंतजाम
किया जो अपने आप में अनुकरणीय है।


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