राजीव गोयल
भारतीय समाज में दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही हिंसक गतिविधियां अत्यंत चिंता का विषय हैं। इन पर
नियंत्रण पाने के लिए समाज के ही ज़िम्मेदार लोगों विशेषकर हमारे मार्गदर्शकों का सक्रिय व गंभीर होना
ज़रूरी है। परन्तु जब इसी वर्ग के कुछ ज़िम्मेदार लोग हिंसा को बढ़ावा देते सुनाई देने लगें या हिंसा
फैलाने वालों को संरक्षण देते या उन्हें उकसाते दिखाई देने लगें फिर आख़िर देश के युवाओं से हिंसक
प्रवृतियों से दूर रहने की उम्मीद कैसे की जाए ? देश में एक दो नहीं बल्कि सैकड़ों उदाहरण ऐसे मिलेंगे
जिनसे पता चलेगा कि नेताओं द्वारा आए दिन किसी न किसी सरकारी कर्मचारी को मारा पीटा जाता है
या गलियां दी जाती हैं।अपने समर्थकों को अपना झूठा रुतबा दिखने के लिए देश के किसी न किसी कोने
में नेतागण ऐसी घटनाओं को अंजाम देते रहते हैं। विधायक और सांसद तो क्या मंत्री स्तर के कई लोग
इस तरह का दुस्साहस करते रहते हैं। आख़िर जिस तरह विधायिका लोकतंत्र का एक स्तंभ है उसी तरह
कार्यपालिका भी तो लोकतंत्र का ही स्तंभ है? बल्कि सही मायने में कार्यपालिका से संबद्ध सरकारी
कर्मचारी विधायिका के लोगों से भी ज़्यादा महत्वपूर्ण होते हैं।क्योंकि एक तो अपनी भर्ती से लेकर
अवकाश प्राप्ति तक यह शिक्षित लोग निरंतर देश की सेवा करते रहते है।जबकि विधायिका के लोगों का
कोई भरोसा नहीं कि कौन आज किसी सदन का सदस्य है तो कौन कब जनता द्वारा नकार दिया जाता
है। दूसरे यह की सरकार चाहे अस्तित्व में हो या न हो परन्तु कार्यपालिका ही है जो कि व्यवस्था के
सञ्चालन में दिन रात सक्रिय रहती है। सरकार द्वारा बनाए गए किसी भी क़ानून को कार्यान्वित कराना
निश्चित रूप से कार्यपालिका की ही ज़िम्मेदारी है। परन्तु विधायिका के लोग दुर्भाग्यवश स्वयं को
सर्वोपरि समझ कर आए दिन न केवल अधिकारियों बल्कि कभी कभी तो आई ए एस व आई पी एस रैंक
के लोगों को भी अपमानित करने या उन्हें धौंस दिखाने से भी बाज़ नहीं आते।
केंद्रीय मंत्री और बेगूसराय सांसद गिरिराज सिंह ने पिछले दिनों अपने निर्वाचन क्षेत्र के सिहमा गांव में
आयोजित एक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए यह कहा कि यदि अधिकारी आपकी बात नहीं सुनते हैं तो
उन्हें बांस से मारो। उन्होंने 'फ़रमाया' कि हम किसी अधिकारी के नाजायज़ नंगे नृत्य को बर्दाश्त नहीं कर
सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि 'डी एम, एसपी, बी डी ओ और डीडीसी, आदि सब आपके अधीन हैं।
आपके अधिकार का हनन होगा तो गिरिराज आपके साथ खड़ा रहेगा क्योंकि आपने मुझे सांसद बनाया
है। आपने किसी को एमएलए और किसी को ज़िला पार्षद बनाया है। आपके बल पर कोई मुखिया है।
आप मुखिया, एमएलए या एमपी के बल पर नहीं हैं। इसलिए अधिकारी नहीं सुन रहे हैं… यह मैं सुनना
नहीं चाहता। ना हम नाजायज़ करेंगे और ना नाजायज़ बर्दाश्त करेंगे। ना हम किसी अधिकारी को
नाजायज़ काम करने के लिए कहते हैं और ना हम किसी अधिकारी के नाजायज़ नंगा नृत्य को बर्दाश्त
कर सकते हैं। यदि अधिकारी आपकी नहीं सुनते हैं तो उन्हें बांस से मारो'। क्या केंद्रीय मंत्री जैसे पद पर
बैठे व्यक्ति के मुंह से इस तरह कि तानाशाहीपूर्ण व हिंसा को बढ़ावा देने वाली बातें शोभा देती हैं?
जून 2019 में भाजपा सांसद कैलाश विजयवर्गीय के 'होनहार ' विधायक पुत्र आकाश विजयवर्गीय ने
अतिक्रमण तोड़ने आए इंदौर निगम के एक अधिकारी की बैट से पिटाई करडाली। निगम का अतिक्रमण
विरोधी दल सरकारी कार्रवाई करते हुए एक ख़तरनाक मकान को तोड़ने के लिए पहुंचा तो निगम की
टीम को देखकर स्थानीय लोगों ने विरोध शुरू कर दिया। लोगों ने फ़ौरन विधायक आकाश विजयवर्गीय
को सूचना देकर बुला लिया। विधायक के आते ही जोश में आए पार्टी कार्यकर्ताओं ने जेसीबी की चाबी
निकाल ली। विधायक विजयवर्गीय ने उस समय जनता का पक्ष लेते हुए निगम कर्मियों काे चेतावनी देते
हुए कहा,कि “10 मिनट में यहां से निकल जाना, वर्ना जो भी होगा उसके ज़िम्मेदार आप ही लोग होंगे.”
उसके बाद गुस्से में विधायक ने आपा खो दिया और क्रिकेट बैट लेकर अधिकारी पर धावा बोल दिया।
उन्होंने इस घटना पर खेद क्या प्रकट करना तो दूर उल्टे यह कहा कि “यह तो सिर्फ़ शुरुआत है, हम
इसी तरह भ्रष्टाचार और गुंडई को खत्म करेंगे. ‘आवेदन, निवेदन और फिर दना दन’ के तहत हम अब
कार्रवाई करेंगे'। समझा जा सकता है कि गुंडई करने वाला यहां कौन था।
यह तो हैं प्रदूषित राजनीति के वर्तमान दौर के नेताओं के 'बोल अनमोल ' के चंद उदाहरण। इसी तरह
कलयुग के इसी दौर में शिक्षकों के मुंह से भी कभी कभी कुछ ऐसी बातें निकल आती हैं जो शायद किसी
अनपढ़ व्यक्ति के मुंह से भी न निकलें। जून 2018 में उत्तर प्रदेश में जौनपुर के वीर बहादुर सिंह
पूर्वांचल विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति राजाराम यादव ने एक सेमिनार में विश्वविद्यालय के
छात्रों को संबोधित करते हुए उन्हें यह शिक्षा दी कि किसी से लड़ाई हो जाए तो कभी पिटकर नहीं आना
बल्कि पीटकर आना और यदि तुम्हारा बस चले तो मर्डर तक कर देना। हिंसा के लिए स्पष्ट रूप से
छात्रों को उकसाते हुए उन्होंने कहा कि अगर आप पूर्वांचल विश्वविद्यालय के छात्र हो तो रोते हुए कभी
मेरे पास मत आना एक बात बता देता हूं। अगर किसी से झगड़ा हो जाए तो उसकी पिटाई करके आना
और तुम्हारा बस चले तो उसका मर्डर करके आना, जिसके बाद हम देख लेंगे। यह वही गुरु हैं जिनकी
तुलना कबीरदास जी ने 'गोविन्द ' अर्थात परमेश्वर से की है। क्या इन्हीं कलयुगी गुरुओं की शान में संत
कबीर ने कहा था कि 'गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय। बलिहारी गुरू आपने गोविन्द दियो
बताय।। ?
कल्पना की जा सकती है कि समाज के जिस ज़िम्मेदार वर्ग से देश के युवा प्रेरणा पाते हों जब वही
मार्गदर्शक व प्रेरणास्रोत सरे आम हिंसा में संलिप्त होते या हिंसा के लिए युवाओं को उकसाते व प्रेरित
करते दिखाई दें ऐसे में हमारे देश के युवाओं का भविष्य कैसा होगा? और यह भी कि भारतीय समाज को
ऐसी हिंसक सोच आख़िर कहां ले जाएगी ?