हरी राम यादव
समय लिख रहा है रोज,
हमारा और तुम्हारा इतिहास।
पता चलेगा तब सब कुछ,
जब वह करेगा अट्टहास।
तुम अभी पद के मद में हो चूर,
तुम्हें सही ग़लत नहीं रहा दीख।
जो दर्दों के ग़म से गुजर रहे,
उनसे जनमानस ले रहा सीख।
आते हैं कितने फरियादी,
लेकर फरियाद पास तुम्हारे।
बिना दर्दे गम को समझे हुए,
कर देते हो तुम उन्हें किनारे।
बस तुम्हें तो हमेशा ही ‘हरी’,
अपना ही हित रहा दीख।
दूसरों के हित को सोचकर,
कुछ तो बदलो अपनी लीक।।