प्रीम कोर्ट ने 2012 में यह आदेश दिया था कि मुसलमानों को हज यात्रा में दी जाने वाली सब्सिडी को 2022 तक पूरी तरह समाप्त कर दिया जाए। मोदी सरकार ने इस 2018 से ही समाप्त कर दिया। यह निर्णय एकाएक नहीं हुआ है, बल्कि पिछले साल ही यह बता दिया गया था, इस साल से हज यात्रा के लिए दी जाने वाली सब्सिडी पूरी तरह समाप्त कर दी जाएगी। सरकार का दावा है कि सब्सिडी समाप्त करने से 700 करोड़ रुपये की बचत होगी और उसे मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा पर खर्च किया जाएगा।सब्सिडी खत्म किए जाने के फैसले का चौतरफा समर्थन किया जा रहा है। मुस्लिम समुदाय के नेतागण भी खुश हैं, क्योंकि उनका कहना है कि सब्सिडी हाजियों को नहीं बल्कि एअर इंडिया के खाते में जा रही थी, क्योंकि सब्सिडी के अर्थशास्त्र के तहत हाजी सिर्फ एयर इंडिया से ही यात्रा कर सकते थे और एयर इंडिया उनकी हजयात्रा के लिए किराया बहुत बढ़ा दिया करता था। गौरतलब है कि सब्सिडी का करीबी 90 फीसद हिस्सा उन्हें हवाई यात्रा के खर्च को कम करने के लिए ही दिया जाता था। पर यह आधा सच है। पूरा सच यह है कि भारत के एयर इंडिया के साथ-साथ सऊदी अरब के सरकारी एयरलाइंस का इस्तेमाल भी उनकी हवाई यात्रा के लिए होता था और यात्रा कराने की आय का एक हिस्सा सऊदी को भी जाता होगा। मुस्लिम नेताओं की मानें तो सब्सिडाइज्ड रेट से एयर इंडिया का मिला टिकट अन्य प्रतिस्पर्धी एयरलाइंस के टिकटों से महंगा पड़ता था। लेकिन क्या यह वाकई सच है? दरअसल, हज यात्रियों की संख्या बहुत ज्यादा होती है। इस बार पौने दो लाख लोग भारत से मक्का की हज यात्रा पर जा रहे हैं। पिछले कई साल से लाख से ज्यादा लोग वहां हज के लिए जा रहे हैं। जब ज्यादा लोग यात्रा करें, तो अर्थशास्त्र के सामान्य सिद्धांत के अनुसार किराया कम हो जाना चाहिए, क्योंकि सीटें भर भर कर जहाज उड़ते हैं। पर हज यात्रा के मामले में अर्थशास्त्र का यह सिद्धांत फेल हो जाता है। उसका कारण यह है कि हज पर जाने के और वहां से आने के समय के बीच लंबा अंतराल होता है। यदि हज यात्रियों के एक खेप को लेकर कोई हवाई जहाज मुंबई से जेद्दाह की ओर उड़े, तो वहां उन यात्रियों को छोड़कर उसे बिना किसी यात्री के या बहुत कम यात्री लिये ही वापस आना पड़ता है। यानी एक तरफ से जहाज यात्रियों से भरकर जाता है, तो दूसरी ओर से खाली वापस आता है। पर खाली वापस आने में भी तो तेल की खपत होती है। उसी तरह जब हज करके यात्री भारत वापस आने लगते हैं, तो फिर अन्य यात्रियों को वहां से वापस लाने के लिए जहाज को मुंबई से जेद्दा खाली ही जाना पड़ता है। जाहिर है, आम दिनों में एयरलाइंस को एक यात्री को मुंबई से जेद्दा ले जाने में जितना खर्च होता है, उससे लगभग दोगुना खर्च हज के दिनों मे एयरलाइंस को करना पड़ जाता है। और उस खर्च की भरपाई करने के लिए उसे टिकटों को महंगा करना पड़ता है और हज यात्रियों को लगता है कि उनसे टिकट महंगा कर सब्सिडी की राशि को एअर इंडिया हड़प रहा है। लेकिन जिस तरह वापसी की यात्रा बिना किसी यात्री के करनी पड़ती है, वैसी परिस्थिति में कोई भी एयरलाइंस वैसा ही करेगा, जैसा एयर इंडिया करता है।पर सवाल उठता है कि एयर इंडिया का एकाधिकार क्यों? क्या बीमार एयर लाइंस को घाटे से उबारने के लिए उसे एकाधिकार दे दिया गया था या सरकार हज यात्रियों को सुरक्षित यात्रा करवाना अपना फर्ज समझ रही थी, जिसके कारण ही इस सरकारी वाहक को एकाधिकार दिया गया? पहला कारण तो हो नहीं सकता, क्योंकि एक तरफ यात्रा करने से एयरलाइंस का खर्च तो बढ़ ही जाता था। अब जब सब्सिडी समाप्त कर दी गई है, तो इसके साथ समुद्री यात्रा भी हाजियों के लिए उपलब्ध हो गई है। पहले वे समुद्र के रास्ते से ही आमतौर पर हज करते थे, लेकिन एक बार हाजियों से भरा एक पानी का जहाज दुर्घटनाग्रस्त हो गया था, उसके कारण सरकार ने हाजियों की समुद्री यात्रा पर रोक लगा दी थी। हालांकि समुद्री यात्रा समाप्त करने पर सब्सिडी का खर्च भी एकाएक बढ़ गया था। अब जहाज की यात्रा सुगम हो गई है और इसका निम्न आय वर्ग वाले मुसलमान स्वागत करेंगे। जाहिर है, अब एयर इंडिया का एकाधिकार भी खत्म होगा। पर सवाल यह कि ज्यादा-से-ज्यादा यात्रियों को ढोने के लिए प्रतिस्पर्धा करने वाले एयरलाइंस जब एक तरफ से खाली उड़ान लाएंगे, तो उन्हें भी अपना किराया बढ़ाना पड़ेगा और हज यात्रा महंगी हो जाएगी।