यह तो दुनिया जानती है कि जो इस दुनिया में आया है उसे एक दिन जाना ही जाना है, लेकिन कुछ लोगों का जाना वाकई दु:खदायी होता है। ऐसे वो लोग होते हैं जो अपने लिए कम और देश व समाज के लिए ज्यादा जीते हैं। ऐसी ही महान हस्तियों में मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर का नाम भी शुमार किया जाता है। दरअसल कैंसर जैसी बीमारी से जूझते हुए भी जिस जिम्मेदारी और निष्ठा के साथ गोवा के मुख्यमंत्री पद को उन्होंने संभाला वह वाकई उन्हें क्रांतिकारी योद्धा के तौर पर स्थापित करता है। इसी के साथ देश के पूर्व रक्षामंत्री पर्रिकर को अंतिम विदाई देने लोगों का जो हुजूम उमड़ा उसने बतला दिया कि वो वाकई जननेता थे, जिन्हें सभी का आशीर्वाद मिला हुआ था। संघ से जुड़े होने के साथ वो सिद्धांतवादी तो थे ही, इसके साथ ही उनकी सादगी उन्हें अन्य राजनीतिज्ञों से जुदा करने वाली थी। भ्रष्टाचार के खिलाफ सदा खड़े रहने वाले पर्रिकर बौद्धिक प्रतिभा के धनी थे। उनके विचार और कार्य अन्य राजनीतिज्ञों से उन्हें जुदा करता था। कुल मिलाकर मनोहर पर्रिकर एक ऐसी शख्सियत थे जो उन्हें राजनीतिक गलियारे में कुशल रणनीतिकार के तौर पर भी स्थापित करती थी। दूसरे राजनीतिज्ञों की चालों को पहले ही भांप लेने का माददा उनमें जबरदस्त था। ऐसे में चाहकर भी उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था।
उनका समर्पण भाव पार्टी के प्रति कुछ इस कदर था कि उन्हें भाजपा का पर्यायवाची भी कहा जाता था। इसे यूं कह लें कि गोवा में जैसे-जैसे पर्रिकर का कद बढ़ा वैसे-वैसे भाजपा का दायरा भी बढ़ता चला गया। भारतीय राजनीतिक इतिहास के पन्नों में पर्रिकर इसलिए भी अमिट छाप छोड़ते हैं क्योंकि उन्होंने अपने दम से भाजपा को गोवा में स्थापित करने जैसा अहम कार्य किया। आखिर यह कैसे भुलाया जा सकता है कि गोवा में 1989 में जब भाजपा ने शुरुआत की तो उस समय पार्टी के महज 4,000 सदस्य थे, लेकिन पर्रिकर की सक्रियता ने उसी भाजपा को करीब 4.2 लाख सदस्य दिए। यह इसलिए बड़ी बात है क्योंकि गोवा की कुल आबादी का यह चौथाई हिस्सा ठहरता है। यह काम साधारण राजनीतिज्ञ तो कतई नहीं कर सकता था और न ही कोई अतिवादी ही ऐसा करके दिखला सकता था। यह पर्रिकर जैसे आमजन के चहेते नेता से ही संभव हो सकता था।
सोशल इंजिनियरिंग के माहिर पर्रिकर ने यह काम चुटकी बजाने वाले जादू के जरिए पूर्ण कर दिया हो ऐसा नहीं है, बल्कि जाति और धर्म से ऊपर उठकर विकास की जो गाथा उन्होंने लिखी उसके सभी कायल रहे हैं। इस प्रकार राजनीतिक समीकरण बैठाते हुए भी पर्रिकर सदा व्यावहारिक बने रहे। उन्होंने न तो कोई चीज जबरन थोपने का काम किया और न ही अनावश्यक किसी वर्ग या संप्रदाय विशेष को परेशानी में ही पड़ने दिया। बदलते समीकरण और परिस्थितियों के अनुकूल निर्णय लेने की क्षमता ने उन्हें जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई। यही वजह थी कि पिछले विधानसभा चुनाव में जहां कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी वहीं उनके इरादों को पहले से भांप चुके पर्रिकर ने अन्य दलों व निर्दलीय विधायकों को मिलाकर अपने नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनाकर सियासी धुरंधरों को पटखनी देने का जो अनूठा उदाहरण पेश किया वह भारतीय राजनीति में मील का पत्थर साबित हो गया है।
अद्भुत प्रतिभा के धनी पर्रिकर ने अपनी राजनीतिक जमावट के बल पर समाज को लाभांवित करने का जो उदाहरण पेश किया उससे पूरे राज्य में भाजपा स्थापित हुई। उन्होंने अपने ही ढंग से अल्पसंख्यकों, जनजातीय समुदाय के लोगों और अन्य पिछड़ा वर्ग को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने का काम किया। यहां वर्ष 2012 के राज्य विधानसभा चुनाव याद आते हैं जबकि पार्टी को अपने दम पर 40 सदस्यों वाली विधानसभा में 21 सीटों के साथ बहुमत मिला था और इसमें करीब एक तिहाई विधायक अल्पसंख्यक समुदाय से थे। यह पर्रिकर जैसा नेता ही कर सकता था। यह किसी अन्य के बूते की बात भी नहीं थी।
बहरहाल ऐसे महान नेता पर्रिकर का जन्म आजादी बाद 13 दिसंबर 1955 को हुआ, लेकिन उनकी सोच और विचारधारा वाकई क्रांतिकारियों जैसे ही रहे। उन्होंने सन् १९७८ में आईआईटी मुम्बई से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की। भारतीय राजनीति में किसी राज्य के मुख्यमंत्री बनने वाले वह पहले नेता हैं जिन्होंने आईआईटी से स्नातक किया। भाजपा से गोवा के मुख्यमंत्री बनने वाले पहले नेता भी वही हैं। दरअसल 1994 में उन्हें गोवा की द्वितीय व्यवस्थापिका के लिए चुना गया था। भारत के रक्षा मंत्री रहते हुए उन्होंने देश की सीमाओं और सुरक्षा के बारे में बारीकी से जाना। वे उत्तर प्रदेश से राज्य सभा सांसद भी रहे। सही मायने में वो तो ‘सबका साथ, सबका विकास’ के असल हामी थे, जिनके जाने के बाद राजनीतिक क्षितिज में जो शून्यता आई है वह भर पाना किसी के बूते की बात नहीं। उनके जनहित वाले कार्य और लोगों को जोड़े रखने वाली कार्यशैली हमेशा उनकी याद दिलाएगी।