एक जिज्ञासु व्यक्ति एक प्रसिद्ध चित्रकार व शिल्पकार से मिलने गया। उसने शिल्पकार की कला की खूब सराहना
की और उससे पूछा, च्मैं जानने आया हूं कि इस कला में आप इतने निष्णात कैसे हैं? मैं यह रहस्य जानना
चाहता हूं। कोई तो ऐसा सिद्धांत या दर्शन होगा, जो आपको यह अनूठा काम करने के लिए प्रेरित करता होगा?
शिल्पकार ने कहा, अगर तुम सचमुच जानना चाहते हो, तो तुम्हें कुछ समय यहीं रुकना पड़ेगा और जो मैं कहूं
वह करना पड़ेगा। शिल्पकार ने उसे घर का काम करने में लगा दिया- सफाई करना, खाना बनाना, कपड़े धोना
इत्यादि काम वह चुपचाप हफ्ते भर तक करता रहा। एक हफ्ते बाद चित्रकार उसके पास आया और बोला, च्मुझे
लगता है, जो प्रश्न लेकर तुम आए थे, उसका उत्तर मिल गया होगा और शायद मेरा वह दर्शन भी तुम सीख गए
होगे।
वह व्यक्ति आश्चर्यचकित होकर बोला, च्महोदय, इतने दिनों तक मैं आपके कहने पर यहां रुका रहा और बिना
कुछ कहे सारा काम करता रहा, लेकिन मेरी इन कामों में रुचि नहीं है, मुझे तो आपकी कला के बारे में जानना
था, जो आपने अभी तक नहीं बताया। शिल्पकार ने कहा, च्तुमने हर काम एक शब्द बोले बिना दत्तचित्त होकर
किया न? यही तो मेरी कला और सफलता का रहस्य है। मैं तुम्हें यही बताना चाहता था।