अर्पित गुप्ता
सम्पूर्ण विश्व में फैले कोरोना महामारी ने यहाँ भी अपने पांव पसारना शुरू कर दिया है। हमारे देश में भी अब तक
पांच लोगों की जान जा चुकी है और धीरे-धीरे इस दक्षिण भारत के राज्य केरल से देश में प्रवेश करने वाला यह
वायरस कर्नाटक, महाराष्ट्र, दिल्ली, हरियाणा और पंजाब होता हुआ उत्तर भारत के केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख तक
पहुंच गया है। पहले से ही आर्थिक मंदी झेल रहे भारत समेत अधिकतर देशों में कोरोना के बेकाबू होते संक्रमण से
बचने के चलते शट डाउन जारी है। यानी सिनेमा हॉल, मॉल, बाजार, स्कूल, कॉलेज बंद कर दिए गए हैं। भारत में
तो बोर्ड और विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाएँ तक अगले आदेश तक स्थगित कर दी गई हैं। विभिन्न मल्टीनेशनल
कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को घर से काम करने को कहा है।
स्थिति को भापते हुए स्वयं प्रधानमंत्री को मैदान में उतरना पड़ा। उन्होंने जनता को सीधे सादे शब्दों में इस
महामारी के बारे में बताया। सच कहे तो प्रधानमंत्री के संबोधन के बाद ही जनता ने इस महामारी को गंभीरता से
लिया। प्रधानमंत्री ने अन्य सावधानियों के साथ 22 मार्च को एक दिन जनता कर्फ्यू का दिन घोषित किया। जनता
कर्फ्यू के दौरान वैसे तो काफी जरूरी काम पड़ने पर कोई भी बाहर निकल सकता है, लेकिन इस दौरान कुछ लोगों
को खुद पीएम मोदी ने अपनी सेवाओं में बने रहने की अपील की है। जनता कर्फ्यू को हम कुछ इस तरह समझ
सकते हैं कि ये कर्फ्यू जनता का खुद पर लगाया गया एक प्रतिबंध है। यानी इसके लिए पुलिस या सुरक्षाबलों की
तरफ से कोई भी पाबंदी नहीं लगाई जाएगी। लोग खुद ही अपने काम टालेंगे और बाहर निकलने से बचेंगे।
सोसाइटी में भी निकलने से बचेंगे। हालांकि जो लोक आवश्यक सेवाओं में हैं वो घर से काम के लिए निकल सकते
हैं। पब्लिक ट्रांसपोर्ट पूरी तरह से बहाल रहेगा। जनता कर्फ्यू के दौरान वैसे तो काफी जरूरी काम पड़ने पर कोई भी
बाहर निकल सकता है, लेकिन इस दौरान कुछ लोगों को खुद पीएम मोदी ने अपनी सेवाओं में बने रहने की अपील
की है। पीएम मोदी ने खासतौर पर डॉक्टरों, सफाईकर्मियों और मीडियाकर्मियों का जिक्र किया। मतलब जनता
कर्फ्यू के दौरान ऐसी सेवाएं देने वाले लोगों को घर से निकलना होगा।पक्ष विपक्ष ने प्रधानमंत्री मोदी जी को इस
महामारी से बचने के लिए हर प्रकार का सहयोग देने का वायदा किया है।
सरकार की ओर से भी एडवाइजरी जारी की गई है जिसमें वो लोगों से एक जगह एकत्र होने से बचने के लिए कह
रहे हैं और उन्हें आइसोलेशन यानी कुछ समय के लिए एक दूसरे से मेलजोल कम करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
यह बात सही है कि भारत सरकार ने शुरू से ही कोरोना वायरस के रोकथाम के लिए गंभीर प्रयास आरम्भ कर दिए
थे। विदेशों में फंसे भारतीयों को वापस लाने में भी इस सरकार ने ना सिर्फ तत्परता दिखाई बल्कि भारत आने के
बाद उनकी जांच और उनके क्वारंटाइन के भी इतने बेहतरीन उपाय किए कि ना सिर्फ विदेशों से लौटे भारतीय ही
भारत सरकार के इंतज़ाम को अमेरिका और ब्रिटेन जैसे विकसित देशों से बेहतर बता रहे हैं अपितु विश्व स्वास्थ्य
संगठन भी भारत सरकार के इन प्रयासों की तारीफ किए बिना नहीं रह सका। विश्व स्वास्थ्य संगठन के भारत के
प्रतिनिधि हेंक बेकडम ने कहा है कि कोरोना के खिलाफ पीएमओ समेत पूरी भारत सरकार के प्रयास प्रभावशाली
हैं।
लेकिन दिक्कत यह है कि हालांकि इस प्रकार की आइसोलेशन से बीमारी से तो बचा जा सकता है लेकिन इससे
होने वाले आर्थिक प्रभाव से नहीं। यह विषय इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इस बात का अंदेशा है कि आने वाले
महीनों में बढ़ते तापमान के साथ हालांकि इस बीमारी का प्रकोप धीरे-धीरे कम होकर समाप्त हो जाएगा लेकिन
स्वाइन फ्लू की ही तरह तापमान कम होते ही हर साल यह फिर से सिर उठाएगी। इसलिए इस बीमारी से लड़ने के
लिए हमें लघु अवधि या तात्कालिक उपाय ही नहीं दूरगामी परिणाम वाले उपाय भी करने होंगे। आंकड़ों पर गौर
करें तो कोरोना से मृत्यु प्रतिशत केवल 4% है। अर्थात् कोरोना से पीड़ित 100 में से केवल चार प्रतिशत लोगों की
मृत्यु होती है वो भी उनकी जो बूढ़े हैं या जिनकी किसी कारणवश रोग प्रतिरोधक क्षमता कम है। बस हमें काबू
पाना है इसके संक्रमण पर। देश के एक जिम्मेदार नागरिक के तौर पर हम में से हरेक को सावधानी बरतनी है कि
यह देश में हमसे किसी दूसरे को न फैले। क्योंकि पंजाब में एक मामला सामने आया जिसमें विदेश से लाए गए
लगभग 134 लोग स्वास्थ्य जांच कराए बिना एयरपोर्ट से भाग गए। अब प्रशासन उन्हें ढूंढ़ने में लगा है। सोचने
वाली बात है कि अगर इनमें से कोई कोरोना जांच में पॉजिटिव पाया जाता है तो वह देश के लोगों के स्वास्थ्य के
लिए कितना बड़ा खतरा है। इसलिए सरकार तो अपना काम कर ही रही है, हमें भी इस कठिन घड़ी में अपनी
जिम्मेदारी निभानी होगी।