-विनोद कुमार सिंह-
आदिकाल से जब श्रृष्टि की रचना हुई तो इस श्रृजन के लिए दो किरदार की जरूरत हुई होगी। नर-मादा। धरती प्रकृत्ति के संग मिलकर कई जीव जन्तु व पेड़ पौधे का निर्माण किया है। इस संसार मे कोई ऐसा नहीं जो अकेला ही श्रृजन नही कर सकता है। संसार के देवी देवता, मानव जीवन का उल्लेख तो हमारे वेद उपनिषद पुरान में भी उल्लेख मिलता है। जैसे-विष्णु-लक्ष्मी, राम-सीता, शिव-शक्ति, आदि। इससे स्पष्ट है कि नर-नारी के मिलन से मानव जाति के यात्रा क्रम में अंहम भुमिका रही है। इसमें कोई शक या शंका नही है। तभी तो इस श्रृष्टि में धरती -प्रकृति का अनोखा सहयोग व सामंजस्य है। इसी श्रंखला मे नर-नारी, पुरुष-औरत के सहयोग से परिवार, समाज व राष्ट्र का र्निमाण हुआ है। लेकिन आज के इस माॅर्डन वैज्ञानिक युग में नर-नारी के जीवन यात्रा में एक लम्बी खाई है, भले ही आज की नारी पुरुषो से कन्धे-कन्धे से मिला कर चल रही है। कुछ क्षेत्रो में नारी ने पुरुषो को पीछे छोड दिया है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण हमे आयें दिनो देखने, सुनने व पढ़ने को अक्सर मिलता रहता है। आज के पुरुष प्रधान समाज में कितना मुश्किल है, औरत के लिए एक अच्छे पुरुष से दोस्ती करना, उसे अपने दिल की बात कहना, इस समाज मे अगर औरत किसी एक पुरूष पर विश्वास करती है ये सोचकर कि शायद ये मेरे अंतर्मन की बात सुनेगा। वह उससे निश्चल प्रेम करेगा, उनका वह सम्मान करेगा, किन्तु बार-बार औरत का फैंसला गलत भी साबित हो जाता है। वह छलिया पुरुष के हाथ छली जाती है। क्यूंकि आज के इस भौतिक युग में हजारों में से किसी नारी को कोई एक पुरुष सच्चा प्रेमी साबित होता है। जो सच्चे अर्थो में औरत के मर्म को दिल से समझ पाता है, उसे सम्मान व अधिकार देता है। अधिकतर पुरुष तो औरत में अपने जीवन के खालीपन को भरना चाहते हैं, बिल्कुल इस तरह की विचारधारा के नर नारी मधुर मिलन का मिलना मुश्किल ही नही बल्कि नाम्मुकिन हो जाता है, इस पक्ष दुसरा पहलू यह है कि वही कुछ पुरुष भी एक स्त्री में अच्छे सच्चे मित्र की तलाश करते हैं जो उनके अर्न्तमन को भी समझे, परन्तु स्थिति सभी जगह लगभग एक जैसी होती है। इसका एक ही उपाय है कि हम ख़ुशी अपने अंदर ही खोजे, बाहर खुशी तलाशने के भरोसे में न रहे। यही जीवन का मूल मंत्र है। जहाँ तक स्त्री-पुरुष के सच्चे प्रेम की बात है तो स्त्रियों का प्रेम पुरूषों के लिए हमेशा से एक रहस्य रहा है। कोई स्त्री प्रेम में आपसे क्या चाहती है, स्त्री प्रेम यह जान पाना किसी भी पुरुष केलिए बहुत मुश्किल और कई बार तो नाम्मुकिन हो जाता है….इस रहस्य को जानने की कोशिश आप ना ही करें क्योकि ना जानें, कितने प्रेमी दार्शनिक, कवि और कलाकार, लेखक, कथा बाचक बन गए। आप के मन मे प्रशन उठना स्वाभाविक है कि ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए। आप की इस जटिल सम्मस्या के लिए एक सलाहकार को दुढ़ते है। क्योकि किसी सफल व्यक्ति के उन्नति के पीछे किसी न किसी का योग्य दान होता है। एक सफल व्यक्ति की विकाश गाथा में सच्चे सलाहकार की अंहम भुमिका होती है। एकअच्छा व सच्चा सलाहकार ही आपकी जीवन की दशा और दिशा तय करता है। जहाँ तक स्त्री की बात है तो कई पत्नी(स्त्रिया)आँख मुंद कर अपने पति(पुरुष) की हर गलत बातों में हां में हां मिलाती रहती हैं ताकि उनकी स्वार्थ की पूर्ति होती रहे इसके उल्ट कई पुरूष भी अपनी पत्नी’ दोस्त(स्त्री) की हर उल्टी सलाह को बगैरअपने बुद्धि-विवेक को लगातार मानते चले जाते हैं। परिणाम स्वरूप उनकी जिन्दगी काठ के कोल्हू की बैल की तरह गोल-गोल घुमती रहती है। जो कहीं नहीं पहुंचती सुबह उठे खायें पियें और काम पर गये फिर सुबह——–ऐसे ही जिन्दगी पूरी हो जाती है और अंत समय जब मृत्यू पास खड़ी होती है। हम जिन्दगी का विश्लेषण करते हुए हाथ मलते नजर आते हैं। कितना अच्छा हो हम अपने एक अच्छे सलाहकार के रूप एक सच्चे सलाहकार, जीवन शाथी, हम सफर को चुने ताकि हमारे जीवन में संसारिक विकाश के साथ- साथ आन्तरिक विकाश भी हो। अर्न्तराष्ट्रीय महिला दिवस पर नारी शक्ति को नमन, वंदन व अभिनन्दन’ इस साथ ही प्रेम भाई चारे का रंगो का त्योहार होली है। इसमे गंगा यमुना की विरासत के रूप इसी दिन सवे बारात भी है। इस त्रिवेणी संगम विशेष तिथि को विशेष रूप मनाये। आप सभी से यह कहते हुए विदा लेते है-ना ही काहुँ से दोस्ती, ना ही काहुँ से बैर। खबरीलाल तो माँगे, सबकी खैर। फिर मिलेगे तिरक्षी नजर से तीखी खबर के रंग, अलविदा।