श्रीलंका में घोर आर्थिक संकट के साथ-साथ राजनीतिक संकट भी गहराने लगा है। गठबंधन के 41 सांसदों ने खुद
को स्वतंत्र घोषित कर दिया है, लिहाजा संसद में राजपक्षे सरकार अल्पमत में आ गई है, लेकिन राष्ट्रपति और
प्रधानमंत्री ने इस्तीफा देने से साफ इंकार कर दिया है। श्रीलंका जल रहा है। वहां के लोग आक्रोशित हैं और सड़कों
पर दहक रहे हैं। एक खूबसूरत और उच्च मध्यवर्गीय स्तर के देश को अचानक क्या हो गया है कि आर्थिक के
साथ-साथ स्वास्थ्य आपातकाल भी घोषित करना पड़ा है। करीब 55 फीसदी लोग दिहाड़ीदार की श्रेणी में आ गए हैं।
राजस्व 560 अरब डॉलर कम हो गया है। फरवरी 2022 तक श्रीलंका पर 12.55 अरब डॉलर का कर्ज़ था। इसमें
चीन का 2021-22 का कर्ज़ 2 अरब डॉलर का है। चीन करीब 50,000 करोड़ डॉलर के कर्ज़ का भुगतान करने को
‘लाल आंखें’ तरेर रहा है। कर्ज़ के जाल में भी चीन ने ही फंसाया है। कोलंबो पोर्ट सिटी में जिन बंदरगाहों का
निर्माण चीन कर रहा है, उस क्षेत्र पर चीन का ही कब्जा है। इस आपात स्थिति पर जन विद्रोह उग्र होता जा रहा
है। श्रीलंका के खजाने में आयात का बिल चुकाने को पर्याप्त राशि नहीं है।
रूस श्रीलंकाई चाय का सबसे बड़ा आयातक देश रहा है। अब युद्ध के कारण इस पर भी बंदिशें हैं। श्रीलंका अच्छी
मात्रा में चावल निर्यात करता था, आज खाने को चावल भी आयात करना पड़ रहा है। चावल 300-500 रुपए किलो
बिक रहा है। लहसुन का भाव 850 रुपए किलो है। एक संतरे की कीमत 500 रुपए और एक सेब 160 रुपए में
बेचा जा रहा है। टमाटर 200 रुपए किलो, आम 500 रुपए किलो, प्याज़ 240 रुपए किलो और आलू 240 रुपए
किलो बिक रहे हैं। मंहगाई और लूटमारी की पराकाष्ठा है। विपक्ष ने इन मुद्दों पर संसद में खूब हंगामा किया और
इन आपातकालों पर ‘श्वेत पत्र’ जारी करने की मांग की है। राष्ट्रपति गोतवाया राजपक्षे ने सर्वदलीय सरकार बनाने
का आह्वान किया था, उसे खारिज कर दिया गया। सड़कों पर उग्र भीड़ राजपक्षे परिवार को घर वापस चले जाने
की हुंकार भर रही है। श्रीलंकाई सत्ता पर राजपक्षे कुनबे का वर्चस्व रहा है। कहा जा रहा है कि उग्र और हिंसक
हालात के मद्देनजर राजपक्षे परिवार के 9 सदस्यों को विदेश में भेज दिया गया है, ताकि वे सुरक्षित रहें।
हैरत है कि 2020 तक अंतरराष्ट्रीय आर्थिक मानकों पर श्रीलंका को ‘उच्च मध्य वर्ग’ का देश आंका जाता था और
भारत ‘निम्न मध्य वर्ग’ का देश था। तो एकदम ऐसा देश डूब क्यों गया कि दिवालियापन के कगार पर है। विदेशी
पर्यटक श्रीलंका छोड़ रहे हैं। कोरोना महामारी श्रीलंका के लिए घोर अभिशाप साबित हुई। इस साल 5 लाख से
अधिक विदेशी पर्यटकों के आने की संभावना थी। पर्यटन का श्रीलंका की जीडीपी में लगभग 12 फीसदी का हिस्सा
है। इस आपातकाल में करीब 1.5 लाख पर्यटक श्रीलंका छोड़ कर जा चुके हैं। सरकार ने डायरेक्ट और वेल्थ टैक्स
कम किए। नतीजतन अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई। मुफ्तखोरी ने देश की आर्थिकी को कुचला। श्रीलंका में दवाएं,
इलाज, बिजली आदि के भी संकट हैं। करीब 13 घंटे एक दिन में बिजली नहीं आती। देश को नॉर्वे, इराक,
ऑस्ट्रेलिया के दूतावासों को बंद करना पड़ा है। आम आदमी दाने-दाने को मोहताज है। इन आपातकालों की परिणति
क्या होगी, फिलहाल कुछ नहीं कहा जा सकता। साथ ही कई अन्य देशों, जैसे पेरू व लेबनान में भी आर्थिक हालात
बदतर होने की खबरें हैं। ऐसी स्थिति में भारत को भी अपना आर्थिक प्रबंधन दुरुस्त कर लेना चाहिए।