श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष : गाय की सेवा से ही प्रसन्न होते हैं भगवान श्री कृष्ण

asiakhabar.com | August 11, 2020 | 1:47 pm IST

राजीव गोयल

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार देशभर में धूमधाम से मनाया जाता है। हिंदू धर्म में इस पर्व का विशेष महत्व है
और इसे हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक माना जाता है। देशभर में इस साल श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 11 अगस्त
को मनाई जाएगी या 12 अगस्त को, इसको लेकर उलझन की स्थिति है। कहीं जन्माष्टमी 11 अगस्त की बताई
जा रही है तो कहीं इसे 12 अगस्त को बताया जा रहा है। पंडितों के अनुसार 12 अगस्त को जन्माष्टमी मानना
श्रेष्ठ है। मथुरा, वृंदावन और द्वारका में भी 12 अगस्त को श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया जा रहा है।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद यानी कि भादो महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी
को हुआ था। भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिन श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। हिन्दू धर्म के अनुसार
जन्माष्टमी का त्योहार बड़ा महत्वूर्ण है। शास्त्रों के अनुसार जन्माष्टमी के दिन भगवान विष्णु ने कंस का वध
करने के लिए देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान के रूप में धरती पर भगवान श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लिया
था। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु के आठवें अवतार भगवान श्रीकृष्ण 16 कलाओं से युक्त माने
जाते हैं।
जब गाय नहीं होगी, गोपाल कहाँ होंगे,
हम सब इस दुनिया में, खुशहाल कहाँ होंगे॥

भगवान श्रीकृष्ण का पूरा जीवन गाय की सेवा में व्यतीत हुआ। भारतीय संस्कृति में गाय केवल एक पशु ही नहीं है
बल्कि उसे माता का दर्जा दिया गया है। ऐसा माना जाता है कि गाय में सभी देवी-देवता निवास करते हैं। हिन्दू
धर्म में मान्यता है कि जो मनुष्य प्रात: स्नान करके गौ स्पर्श करता है, वह पापों से मुक्त हो जाता है। गौसेवा
करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। धर्म शास्त्रों के अनुसार गौ माता ही जीव को वैतरणी नदी से पार
उतार कर दुर्लभ मोक्ष की प्राप्ति कराती है। गोस्वामी तुलसीदास ने भगवान राम के अवतार का एक कारण गौरक्षा
को बताया है।
गाय की सेवा करने मात्र से ही श्रीकृष्ण भगवान प्रसन्न हो जाते हैं। जन्माष्टमी के अवसर पर भगवान श्रीकृष्ण के
साथ ही गाय की भी पूजा की जाती है। हिन्दू धर्म में गाय की पूजा सुख-समृद्धि देने वाला धार्मिक कर्म माना गया
है। भारतीय संस्कृति में गाय का बेहद उच्च स्थान है। वेद पुराणों के अनुसार ‘जो व्यक्ति गाय माता की सेवा
करता है, उस पर आने वाली विपदाएं समाप्त हो जाती हैं’। पद्म पुराण में कहा गया है कि ‘गाय के मुख में चारों
वेद बसते हैं’।
आज देश की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि देश में कुत्ते बिस्किट खा रहे है और पेट की आग बुझाने के लिए
सैंकड़ों गाय प्लास्टिक बैग खाकर प्रतिदिन अकाल मौत का शिकार बन रही हैं। आखिर क्या वजह है कि भारतीय
संस्कृति में बेहद उच्च स्थान रखने वाली गाय इस समय दर-दर की ठोकरें खा रही हैं ? क्यों प्राचीन काल से ही
भारत में समृद्धि का प्रतीक मानी जाने वाली गायें आज भूखी प्यासी हैं और कचरे के ढेर पर पॉलीथिन और कूड़ा
खाने को मजबूर हैं ?
पॉलीथिन खाने से गायों व अन्य जानवरों के मरने की घटनाएं तो अब आम हो गई हैं। पिछले कुछ समय से आए
दिन समाचार पढ़ते आ रहे हैं कि डॉक्टरों ने ऑपरेशन करके गाय के पेट से 60 किलो पॉलिथीन निकाली है, तो
कहीं गाय के पेट का ऑपरेशन करके 20 – 30 किलो पॉलीथिन निकाला गया।
कोर्ट के पॉलीथिन पर प्रतिबंध के निर्देश के बावजूद शहरों में अब तक पॉलीथिन पर रोक नहीं लग सकी है, बाजार
में सरेआम दुकानदारों द्वारा फेंकी जा रही प्रतिबंधित पॉलीथिनों को चारा नहीं मिलने की वजह से खाकर गाय मर
रही हैं। गाय द्वारा इसको खा लेने पर वह अंदर जाकर अमाशय में जमा हो जाता है जिससे पाचन क्रिया बिल्कुल
बिगड़ जाती है। गैस की शिकायत बढ़ने से पेट फूलता है जिसके कारण गाय तड़प तड़प कर दम तोड़ देती है।
हिन्दू धर्म में तो गाय के महान और अनमोल गुणों को देखते हुए उसे मां, देवी और भगवान का दर्जा दिया गया
है। गाय वैदिक काल से ही भारतीय धर्म, संस्कृति, सभ्यता और अर्थव्यवस्था का प्रतीक रही है। परंतु क्यों आज
गाय सड़कों पर आवारा घूमती दिखती हैं और भूखी गाय कचरे से गंदगी व पॉलिथीन खाने को मजबूर हैं। सुख-
समृद्धि की प्रतीक रही भारतीय गायें आज कूड़े में प्लास्टिक की थैलियां खाती दिखती हैं। कैसी विडंबना है कि
आज के समय में गायें घोर उपेक्षा और बदहाली की जिंदगी जी रही हैं और भूख से दम तोड़ रही हैं। सड़कों के

किनारे फेंकी गई खाद्य वस्तुओं के साथ-साथ प्लास्टिक खाने से गाय की दर्दनाक मौत होने की घटनाएं आम हो
गई हैं।
पिछले कुछ समय से तो भारत में गाय को राष्ट्रीय पशु बनाने तक मांग उठने लगी है। प्रसिद्ध धर्मगुरु जय गुरुदेव
के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी बाबा उमाकांत (उज्जैन) ने गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने की मांग की है। बता दें
कि फिलहाल रॉयल बेंगाल टाइगर भारत का राष्ट्रीय पशु है। 2017 में छत्तीसगढ़ की नगर निगम ने एक चौंकाने
वाला निर्णय लिया था। रायपुर नगर निगम के मेयर प्रमोद दुबे ने गाय को नगर माता घोषित कर दिया था।
रायपुर नगर निगम ने बाकायदा प्रस्ताव पारित कर गाय को नगर माता घोषित किया था।
भूखी प्यासी गाय करे करुणामयी पुकार,
हे मानव कर मेरी सेवा और ले ले मंगल दुआएं हज़ार।
मेरा (युद्धवीर सिंह लांबा, धारौली, झज्जर ) मानना है कि हमें यथा संभव गाय की सेवा करनी चाहिए ताकि गौ
सेवा करके हम अपने जीवन को धन धान्य और खुशियों से भर सकें क्योंकि अथर्ववेद में गाय को धेनु: सदनम्
रमीणाम कहा गया है। आजकल भारत में जहां गौरक्षा, गौसुरक्षा और गौ संवर्धन को लेकर कवायदे हो रही हैं वहीं
भगवान श्रीकृष्ण के देश में पवित्र गाय अपनी प्राण रक्षा के लिए कूड़े के ढेर में कचरा और प्लास्टिक खाने पर
मजबूर हैं।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *