श्रावणी मेला में साकार होता है शिव का मंगलकारी स्वरूप

asiakhabar.com | July 6, 2023 | 6:00 pm IST
View Details

-कुमार कृष्णन-
प्रत्येक वर्ष श्रावण के पावन महीने में लगनेवाले विश्व प्रसिद्ध श्रावणी मेला अवधि में सुलतानगंज की महिमामयी उत्तर वाहिनी गंगा तट पर स्थित अजगैबीनाथ धाम से लेकर देवघर के द्वादश ज्योतिर्लिंग बाबा बैद्यनाथ धाम के करीब 110 किमी के विस्तार में मानों शिव का विराट् लोक मंगलकारी स्वरूप साकार हो उठता है और समस्त वातावरण कावंरियां शिव भक्तों के जयकारे से गूंजायमान रहता है।
भगवान शंकर, जो देवों के देव महादेव कहलाते हैं, के बारे में धार्मिक मान्यता है कि श्रावण मास में जब समस्त देवी-देवतागण विश्राम पर चले जाते हैं, वहीं भगवान भूतनाथ गौरा पार्वती के साथ पृथ्वी-लोक पर विराजमान रहकर अपने भक्तों के कष्ट-कलेश हरते हैं और उनकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। ऐसी लोक-आस्था है कि श्रावण मास के दिनों में भगवान शंकर बैधनाथ धाम और अजगैबीनाथ धाम में साक्षात् विद्यमान रहते हैं जहां उनकी अर्चना द्वादश ज्योतिर्लिंग और अजगैबीनाथ महादेव के रूप में होती है। यही कारण है कि औघड़दानी शिव के पूजन हेतु लाखों भक्त सुलतानगंज अजगैबीनाथ धाम और देवधर बैद्यनाथ की ओर उमड़ पड़ते हैं। सुलतानगंज में गंगा उत्तरवाहिनी है, जिसका विशेष महात्म्य हैं। भगवान शंकर को गंगा का जल अत्यंत प्रिय है। और, यदि यह जल उत्तरवाहिनी का हुआ तो अति उत्तम। पौराणिक कथा के अनुसार यहां ऋषि जह्नु का आश्रम था। जब भगीरथ गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर ला रहे थे, तो कोलाहल से क्रोधित होकर ऋषि जहनु ने गंगा का आचमन कर पी लिया। किंतु बाद में भगीरथ के अनुनय विनय करने पर अपनी जंघा से गंगा को प्रवाहित किया जिसके कारण पतित पावनी गंगा जाह्ननवी कहलायी। आनंद रामायण में वर्णित है कि भगवान श्रीराम ने सुलतानगंज की उत्तरवाहिनी गंगा के जल से बैद्यनाथ महादेव का जलभिषेक किया था।
फिर भला भक्तगण कैसे चूकते। और, चल पड़ा परिपाटी सुलतानगंज से उत्तरवाहिनी गंगा का जल कांवर में लेकर बाबा बैद्यनाथ पर अर्पित करने की। श्रावण के महीने में सुलतानगंज से देवघर तक करीब 100 कि0 मी0 के विस्तार में कांवरियां तीर्थयात्रियों के कावंरों में लचकती मचलती गंगा मानों बहती-सी जाती हैं- जैसे दो -दो गंगा बहती है श्रावण में- एक कांवरों में सवार होकर देवघर की ओर, और दूसरी अविरल वहती हुई बंगाल की खाड़ी की ओर। ऐसा चमत्कार तो सिर्फ भगवान भोले शंकर ही कर सकते हैं। इतना ही नहीं, श्रावण मास में बारिश की रिम-झिम फुहारो के साथ-साथ बसंत ऋतु की अलौकित छंटा भी अजगैबीनाथ सुलतानगंज और सम्पूर्ण कावंरियां-पथ पर देखने को मिलती है। मेले में लगी दूकानों में सुलतानगंज में कावंरों में लगे प्लास्टिक के लाल, पीले, हरे, गुलाबी खिले-खिले फूल अनुपम दृश्य उपस्थित करते हैं- लगता है मानों सावन में बसंत का आगमन हो गया हैं। ऐसा तो सिर्फ शिव की कृपा से ही संभव है। श्रावण मास में सुलतानगंज से बैद्यानाथ की कांवर-यात्रा मात्र एक धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, वरन् इसके पीछे हमारी सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, सामाजिक और आर्थिक मान्यताएं भी छिपी हुई हैं। यदि हम पौराणिक संदर्भ लें तो वह कावंड़-यात्रा आर्य और अनार्य संस्कृतियों के मेल और संगम को दर्शाता है। कहां आर्य मान्यताओं की देवी गंगा और कहां अनार्यो के देव महादेव पर गंगा-जल का पर अर्पण आर्य और अनार्य संस्कृतियों के काल क्रम में हुए समागम को दर्शाता है। इसी तरह आर्यो के देव श्रीराम के द्वारा सुलतानगंज की उत्तरवाहिनी गंगा को कांवर में लेकर बैद्यनाथ महादेव का पूजन इसी भाव को इंगित करता हैं।
सुलतानगंज से देवघर की कांवर-यात्रा मात्र एक धार्मिक यात्रा ही नहीं वरन् शिव और प्रकृति के साहचर्य की यात्रा है। कांवर-मार्ग में हरे-भरे खेत, पर्वत, पहाड़, घने जंगल, नदी, झरना, विस्तृत मैदान-सभी कुछ पड़ते हैं। रास्ते में जब वारिश की बौछारें चलती हैं तो बोल बम का निनाद करते हुए कावंरिया भक्तगण मानों भगवान शंकर के साथ एकाकार हो उठते हैं। देवघर में जल अर्पण करके लौटते समय न सिर्फ धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से अपने को परिपूर्ण पाता है, वरन् प्रकृति के सीधे साहचर्य में रहने के कारण वह अपने अंदर एक नयी उर्जा और उत्फूल्लता महसूस करता है। आज के प्रदूषण के युग में अभी भी प्रकृति के पास मनुष्य को देने के लिये बहुत कुछ है- यह संदेश श्रावणी मेला की कावंर यात्रा देता है जो इसमें शामिल होकर ही महसूस किया जा सकता है। जल शांति, स्वच्छता और जीवन का प्रतीक है-शीतलता से भरा हुआ। भगवान शंकर पर जल का अर्पण हमें शांति और शीतलता का ही तो संदेश देता प्रतीत होता है। इस धार्मिक उन्माद के युग में आज निहित स्वार्थी तत्वों ने आडंबर और वृहत् अनुष्ठानों की आड़ लेकर धर्म को धन-बल प्रदर्शन का साधन बना लिया है। वहीं श्रावण में शिव यह संदेश देते हैं कि मुझपर सिर्फ गंगा जल और बेलपत्र चढ़ाओ, और वरदान में मुझसे जीवन की सारी खुशियां ले जाओ। आज के मार-काट के दौर में भी बैद्यनाथ-धाम मंदिर से सटी दूकानों में हमारे मुसलमान भाई सुहाग की चूड़िया बेचते हैं बाबा के रंग में रंगकर। आज के इस अपहरण-अपराध के दौर में भी देवघर के कैदी प्रतिदिन बाबा बैद्यनाथ पर अर्पित होनेवाले फूलों के श्रृगांर बनाते हैं और जेल से बाबा मंदिर तक बम भोले का जयकारा करते हुए प्रतिदिन आते हैं। कांवर-मार्ग पर कोई छोटा-बड़ा नहीं-सिर्फ बम है-बड़ा बम, छोटा बम, मोटा बम, माता बम! न अमीर-न गरीब, न उच-न नीच! बस बम शंकर के भक्त बम! बोल बम। शिव का स्वरूप विराट् है दृ इसका कोई आर-पार नहीं। और उनका यह विराट् स्वरूप मानों श्रावणी मेला में साकार हो जाता है।
श्रावणी मेले के दिन करीब आते ही शिवभक्तों के मन में बाबा के दर्शन की उमंगें हिलोरे लेने लगी हैं। आषाढ़ पूर्णिमा के अगले दिन से ही यह मेला प्रारंभ हो जाता है। जलाभिषेक के लिए देशभर से शिवभक्तों की भीड़ उमड़ती है। वैसे कुछ वर्ष पहले तक सोमवार को जल चढ़ाने की जो होड़ रहती थी, वह अब उतनी नहीं है। सवा महीने तक चलने वाले इस मेले में अब हर रोज कांबडियों की भीड़ लाख की संख्या पार कर जाती है। इस अर्थ में यह किसी महाकुंभ से कम नहीं है। झारखंड के देवघर में लगने वाले इस मेले का सीधा सरोकार बिहार के सुलतानगंज से है। यहीं गंगा नदी से जल लेने के बाद बोल बम के जयकारे के साथ कांवड़िये नंगे पांव देवघर की यात्रा आरंभ करते हैं।
आज के बदले परिवेश में संतोषम परम सुखम जैसी अवधारणा ध्वस्त हो गई है। सुख-सुविधा के प्रति सबकी लालसा बढ़ी है। इसे हासिल करने के उपायों में देवी-देवताओं की पूर्जा-अर्चना को भी महत्व प्राप्त हुआ है। आस्थावान लोगों की संख्या में जबर्दस्त बढ़ोत्तरी के पीछे मनोकामनापूर्ति की यही लिप्सा काम कर रही है। ऐसे में देवघर स्थित शिवलिंग का अपना खास महत्व है क्योंकि शास्त्रों में इसे मनोकामना लिंग कहा गया है। यह देश के 12 अतिविशिष्ट ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। यह वैद्यनाथ धाम के नाम से भी जाना जाता है। दरभंगा कमतौल के मूल निवासी अनिल ठाकुर पिछले 25 वर्षों से कांवड़ लेकर देवघर जाते हैं और इस बार भी वह अभी से तैयारी में जुट गए हैं और ऐसे शिवभक्तों की संख्या हजारों में है जो बीस-पचीस वर्षों से हर वर्ष कांवड़ लेकर बाबा के दरबार पहुँचते हैं। ऐसे शिवभक्त अपनी तमाम कामयाबी का श्रेय शिव को देते हैं।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *