के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का कार्यकाल अनिश्चिकाल तक बढ़ाने संबंधी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रस्ताव से शायद ही किसी को अचरज हुआ होगा। क्योंकि पिछले साल जब दूसरे कार्यकाल के लिए इन्हें चुना गया था, तब इनके उत्तराधिकारी की घोषणा नहीं की गई थी। शी के पहले जो दो राष्ट्रपति हुएहैं, उनके उत्तराधिकारियों की पूर्व घोषणा की गई थी। अर्थात जब इस परंपरा का पालन नहीं किया गया उसी समय यह कयास लगाया जाने लगा था कि आने वाले दिनों में शी जिनपिंग पार्टी और सरकार दोनों में सबसे शक्तिशाली नेता के रूप में उभर सकते हैं। राष्ट्रपति पद पर लगातार दो कार्यकाल की समयसीमा के संवैधानिक प्रावधान को खत्म करने के बाद वे आजीवन इस पद पर बने रह सकते हैं। इस तरह चीन के साम्यवादी शासन के इतिहास में उनको माओ जेदांग के बाद दूसरे सबसे कद्दावर नेता के रूप में याद किया जाएगा। दरअसल, शी ने अपने शासन के पहले कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचार विरोधी अभियान चलाकर पार्टी और सरकार दोनों में अपना वर्चस्व स्थापित किया। सच पूछिए तो इस अभियान की आड़ में उन्हें पार्टी में सक्रिय अपने विरोधियों को खत्म करने का अच्छा अवसर मिला। हालांकि उनकी लोकप्रियता की एक बड़ी वजह पड़ोसी देशों के साथ निरूपित की गई वर्चस्ववादी विदेश नीति भी है। उन्होंने ‘‘वन बेल्ट वन रोड’ संपर्क परियोजना शुरू करके पूरी दुनिया को चीन की ताकत का अहसास भी कराया। चीन की संसद द्वारा राष्ट्रपति के कार्यकाल की समयसीमा को समाप्त करने की औपचारिकता पूरी करने के बाद शी को अगली पीढ़ी की आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया को गति देने में मदद मिलेगी। वर्तमान समय में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने शी को चुनौती देने वाला कोई नहीं है। लेकिन उनके अनिश्चितकाल तक बने रहने के प्रस्ताव का विरोध भी शुरू हो गया है। हालांकि चीन में जिस तरह का जन लोकतंत्र है और कम्युनिस्ट पार्टी का जो ढांचा है, उसे देखते हुए विरोध प्रतीकात्मक ही है। इसलिए हाल-फिलहाल कोई शी की राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा को चुनौती देने की स्थिति में नहीं है। यह दीगर है कि किसी एक व्यक्ति में शक्ति का केंद्रीकरण कम्युनिस्ट पार्टी के सामूहिक नेतृत्व के सिद्धांत के विपरीत है, इसलिए देर-सबेर आंतरिक सत्ता संघर्ष की स्थिति से इनकार नहीं किया जा सकता।