शर्म : बलात्कार पर राजनीति…..?

asiakhabar.com | October 7, 2020 | 3:28 pm IST

विनय गुप्ता

बहुत पुरानी एक कहावत की पँक्ति है- ”जब आबे संतोष धन, सब धन घूरि समान“, किंतु आज की राजनीति ने
इस कहावत को बदल दिया है, अब सत्ता की राजनीति में यह कहावत हो गई है- ”जब आबे असंतोष लहर सब धन
(यश-कीर्ति) घूरि समान“। इसका साक्षात ताजा उदाहरण उत्तरप्रदेश का ’हाथरस काण्ड‘ है, पिछले तीन साल से योगी
आदित्यनाथ वहां बड़ी अच्छी सरकार चला रहे थे, कहीं कोई शिकायत नहीं थी, किंतु हाथरस में एक दलित बेटी के
साथ हुए सामुहिक बलात्कार और पीड़ित की हत्या ने न सिर्फ उत्तरप्रदेश बल्कि पूरे देश की राजनीति को चरम पर
ला दिया, तीन साल पहले दिल्ली में घटे ’निर्भया काण्ड‘ के बाद उत्तरप्रदेश के ’हाथरस काण्ड‘ ने देश की राजनीति
को गहराया। ऐसा कतई नहीं है कि देश के अन्य राज्य ऐसी घटनाओं से अछूते है, हाल ही में मध्यप्रदेश,
राजस्थान तथा अन्य कई प्रदेशों में ऐसी शर्मनाक घटनाएँ हुई है, हाल ही में आई एक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार
पिछले आठ सालों में देश मे दुष्कर्म के दो लाख छियासठ हजार मामले सामने आए, किंतु हमारी न्याय व
प्रशासनिक व्यवस्था का यह हाल है कि 2018 तक सिर्फ इनमें से सत्ताईस फीसदी को ही सजा से दण्डित किया
जा सका और 73 फीसदी बलात्कारी आज भी नए काण्ड करने की तलाश में घूम रहे है।
जहाँ तक उत्तरप्रदेश के हाथरस का यह ताजा मामला है, इसमें भी यदि स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हस्तक्षेप कर
मुख्यमंत्री योगी जी से बात नहीं करते और मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा की वरिष्ठ नैत्री उमाश्री भारती
दु:खी होकर इस काण्ड को भाजपा के लिए अभिशॉप निरूपित नहीं करती तो एक दलित बेटी के साथ घटी यह
घटना भी दबा दी गई होती। आज इस घटना के संदर्भ में घटे अन्य घटनाक्रमों को लेकर ये सवाल उठाए जा रहे है
कि क्या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के राज में जिलास्तर के प्रशासनिक व पुलिस अधिकारियों को इतनी छूट दी

गई है कि वे बलात्कार पीड़ित मृत बेटी का बिना उसके परिवार को बताए रात्रि में दाह संस्कार कर दे, माँ-बाप को
उनकी बेटी के अंतिम दर्शन का भी मौका न दें? और बिना सरकार को संज्ञान में लाए बलात्कार पीड़ित के गाँव
को ऐसा सुरक्षा कवच पहना दें कि वहां पँछी भी पर नहीं मार सकता और इस प्रजातंत्री देश के प्रतिपक्ष के साथ
चौथे स्तंभ मीडिया पर लाठी चार्ज करें? क्या योगी आदित्यनाथ ने अपने अधिकारियों को इस कदर छूट दे रखी
है? निष्क्रिय मुख्यमंत्री ने ’विशेष जाँच दल‘ (एसआईटी) के गठन की भी घोषणा तब कि जब उन्हें प्रधानमंत्री जी
ने निर्देश दिये, देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश का संत मुख्यमंत्री आपराधिक घटनाओं के प्रति इतना ’उदारमना‘
होगा इसकी कल्पना तो किसी ने भी नहीं की थी? फिर अन्तत: जब चारों ओर से घेराव हुआ तब मजबूर होकर
मुख्यमंत्री को इस अमानवीय घटना की सीबीआई से जाँच कराने के निर्देश देने पड़े, किंतु तब तक तो पूरे देश में
मुख्यमंत्री व उनके प्रशासनिक अधिकारियों की काफी थू… थू… हो चुकी थी, दिखावे के लिए मुख्यमंत्री ने पुलिस
विभाग के अधिकारियों को तो निलम्बित कर दिए पर कलेक्टर आदि आज भी राजनीतिक छत्रछाया में ’महफूज‘ है।
किंतु इस पूरे घटनाक्रम को लेकर यदि समग्र रूप से देखा जाए तो योगी आदित्यनाथ पर प्रधानमंत्री की समझाईश
का उतना असर नहीं हुआ, जितना कि उमा भारती जी के कड़े वचनों का, वह तो कोरोना पीड़ित होकर उत्तराखण्ड
के एक अस्पताल (आश्रम) में भर्ती है। यदि ऐस नहीं होता तो वे स्वयं अब तक हाथरस आ गई होती और पीड़ित
परिवार से मिलकर अपनी ही पार्टी की सरकार व निर्मम अधिकारियों को खरी-खोटी सुना चुकी होती, फिर भी
उन्होंने ठीक होने के बाद हाथरस जाने की घोषणा अवश्य की है, वे इस पूरे घटनाक्रम से काफी व्यथित व दु:खी
है।
वैसे अब तो योगी जी ने पूरा मामला सीबीआई को सौंप दिया है, वह कब जांच करेगी, कब रिपोर्ट आएगी, कब
दोषी दण्डित होंगे? यह तो भविष्य के गर्भ में है, किंतु इस आलेख का जो प्रश्नवाचक शीर्षक है, उसका उत्तर आना
अभी भी शेष है, जब आज के प्रजातंत्री युग में ऐसी दुर्दान्त घटनाओं पर भी राजनीति हो जाती है और उस
राजनीति के कारण असल दोषी दण्डित होने से बच जाते है और पीड़ित परिवार को न्याय नहीं मिल पाता तो फिर
प्रजातंत्र में इस चलन पर देश द्वारा शर्मिंदगी ही व्यक्त की जा सकती है। अब इसके लिए किसे दोष दिया जाए?
इस सवाल का जवाब पाठकों पर ही छोड़ता हूँ।


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