वोट बैंक बन चुकी है आरक्षण नीति

asiakhabar.com | August 17, 2021 | 4:55 pm IST
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-डॉ. भरत मिश्र प्राची-
देश में जनकल्याण एवं आर्थिक , सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग अनुसूचित जाति जनजाति को प्रारम्भ में सामाजिक
स्तर पर संरक्षण देने एवं संम्बल बनाने के उदेश्य से शुरू की गई आरक्षण नीति वोट की राजनीति से इस तरह
जुड़ती चली गई, जहां राजनीति में इसका विरोध कर पाना किसी भी राजनीतिक दल के लिये संभव नहीं तभी तो
वर्तमान केन्द्र सरकार द्वारा पांच राज्यों के विधानसभा पूर्व जहां हर राज्य में ओवीसी की प्रमुखता है, ओबीसी 127
वां संशोधन बिल बिना विरोध का लोकसभा में 385 मत एवं राज्य सभा में पारित हो गया जिसमें राज्यों को
ओबीसी चुनने का अधिकार शामिल है। इस संशोधन बिल से राज्य अपनी इच्छानुसार जाति को ओबीसी में शामिल
कर आरक्षण का लाभ दे सक्रेगे। महाराष्ट्र में मराठा को आरक्षण देने एवं पाटीदारों को ओबीसी में शामिल किये
जाने की मांग को मान लिये जान का भी रास्ता इस संशोधन से मिल गया जिससे इस वर्ग के वोट को समय आने
पर भुनाया जा सके। इस तरह आरक्षण का मुद्दा संरक्षण का नहीं बल्कि राजनीतिक लाभ लेने का बन चुका है।
इसी प्रक्रिया के तहत पूर्व में मंडल आयोग ने देश की राजनीति ही बदल डाली। ओबीसी में जाट वर्ग को शामिल

करने का मुद्दा राजनीतिक लाभ दे गया जहां देश में जाट वर्ग के वोट का विकेन्द्रीयकरण इस नीति के तहत देखा
गया।
आरक्षण राजनीतिक लाभ लेने का प्रमुख मुद्दा बन चुका है। जहां इसका वास्तविक उदेश्य समाप्त हो चला है।
आरक्षण अब जाति की तरह जहर बन चुका है। जिस तरह सामाजिक परिवेश में जिस जाति में जो जन्म लेता है
उसी जाति का जिस तरह बन रहता है आज उसी तरह जिसको आरक्षण एक बार मिल गया उसे हमेशा मिलता ही
रहेगा चाहे वह आर्थिक रूप से कितना ही सम्पन्न न हो जाय। इस तरह का परिवेश आरक्षण के उदेश्य को नकारता
नजर आ रहा है। इस दिशा में किसी भी तरह का सैद्धांतिक रूप से परिवर्तन हो पाना राजनीति में संभव नहीं है।
हर राजनीति दल को वोट चाहिए। इसलिये इस दिशा में उससे किसी भी तरह के परिवर्तन की आश करना निरर्थक
है। जिससे इस नीति का हर मामले में सदुपयोग की जगह दुरूपयोग ही होता नजर आ रहा है।
आरक्षण का स्वरुप स्वतंत्रता उपरान्त कुछ काल के लिये देश में पिछड़ेपन एवं गरीबी को दूर करने के उद्देश्य से
वास्तव में गरीब एवं पिछड़ी जातियों से शुरू किया गया। जिसे उद्देश्य पूरा होने की स्थिति में समाप्त कर देना
चाहिए। पर ऐसा राजनीतिक कारणों से आज तक नहीं हो पाया। देश की सम्पन्न कई और जातियां राजनीतिक
प्रभाव एवं दबाव से इस क्रम में जुड़ती ही चली गई। जो बची है वह भी इस दिशा में प्रयत्नशील है। आरक्षण आज
गरीबी एवं पिछड़ेपन से न होकर पावर एवं सुविधा बटोरने का एक मात्र संसाधन बन चुका है। जहां तक गरीबी एवं
पिछड़ेपन का सवाल है, आज प्रायः सभी जातियां इससे प्रभावित है। इस तरह के हालात में आरक्षण की सुविधा
सभी जातियों को जनसंख्या के आधार पर प्रदान कर देनी चाहिए ताकि जड़ से इस संक्रामक रोग को मिटाया जा
सके। आज देश को स्वतंत्र हुये 75 दर्ष होने जर रहे है। देश अपनी स्वतंत्रता की हीरक जंयती मनाने जा रहा है।
पर आज तक आरक्षण का सही निदान नहीं हो पाया। वोट से जुड़ा आरक्षण संक्रमक रोग बनता जा रहा है। जिसका
इलाज आज की स्वार्थ भरी राजनीति में हो पाना संभव नहीं। वोट बैंक बनी राजनीति में वोट कट न जाय इस डर
से कोई भी राजनीतिक दल सही आरक्षण की बात कर ही नहीं पाता।


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