-प्रमोद भार्गव-
एक के बाद एक एशियाई व पश्चिमी देशों की यात्राओं में मिली अप्रत्याशित सफलताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को
वैश्विक नेता के रूप में उभारकर प्रतिष्ठित कर दिया है।
इस परिप्रेक्ष्य में अप्रूवल रेटिंग एजेंसी के सर्वे में मोदी की हैसियत बढ़ी है। जबकि अन्य राष्ट्र प्रमुखों की प्रसिद्धि
में गिरावट आई है। मोदी ने विश्व के जिन नेताओं को पीछे छोड़ा है, उनमें अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, ब्रिटेन
के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन, जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल, कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन टूडो समेत कई
दिग्गज नेता शामिल हैं।
मोदी का प्रसिद्धि सूचकांक जहां 70 फीसदी रहा है, वहीं अन्य शीर्ष 13 वैश्विक नेताओं की प्रसिद्धि का ग्राफ 66
प्रतिशत से नीचे चला गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की लोकप्रियता बड़ी तेजी से घटी है। उन्हें 44 फीसदी
लोगों ने पसंद करके सातवां स्थान दिया है। जबकि मेक्सिको के राष्ट्रपति आंद्रे मैनुएल लोपेज दूसरे, इटली के
प्रधानमंत्री मारियो द्राघी तीसरे, जर्मनी की मर्केल चौथे, आस्ट्रेलिया के पीएम स्कॉट मॉरिसन, पांचवें और कनाडा के
प्रधानमंत्री टूडो छठे स्थान पर रहे हैं। यह सर्वे द मॉर्निंग कंसल्ट ने किया है। यह सर्वे देश के वयस्क लोगों से
साक्षात्कार के आधार पर किया जाता है।
कोरोना महामारी के कारण कई देशों और उनके नागरिकों की आर्थिक स्थिति बदहाल हुई है। दुनिया की सबसे बड़ी
अर्थव्यवस्था वाला समृद्ध देश अमेरिका भी इससे अछूता नहीं रहा। महामारी के चलते बड़े पैमाने पर लोगों ने
रोजगार गंवाया और इसका असर यह हुआ कि अमेरिका में भूख की समस्या भयावह हो गई। अमेरिका की सबसे
बड़ी भूख राहत संस्था 'फीडिंग अमेरिका' की रिपोर्ट के अनुसार दिसंबर-2021 के अंत में पांच करोड़ से ज्यादा लोग
खाद्य संकट से जूझ रहे थे। यानी अमेरिका का प्रत्येक छठा व्यक्ति भूखा था। यही नहीं बालकों के मामले में
स्थिति का और भी बुरा हाल था, प्रत्येक चौथा बच्चा भूखा रहने को मजबूर हुआ। फीडिंग अमेरिका नेटवर्क ने एक
महीने में 54.8 करोड़ आहार के पैकेट बांटे, जिन्हें प्राप्त करने के लिए अमेरिका के उटा में कारों में बैठकर लोग
लंबी कतारों में लगे रहे। अमेरिका से आया यह दृश्य अविश्वनीय जरूर लगता है, लेकिन हकीकत है। इधर भारत में
अनाज का उत्पादन और भंडारण इतना बढ़ता जा रहा है कि वित्तीय वर्ष 2019-20 में खाद्य मंत्रालय को विदेश
मंत्रालय से आग्रह करना पड़ा था कि दुनिया के कुछ ऐसे गरीब देश तलाशो, जिन्हें यह अनाज मुफ्त में बतौर मदद
दिया जा सके, वरना इसे फेंकना पड़ेगा। इसीलिए जानी-मानी अंतरराष्ट्रीय मूल्यांकन संस्था डालबर्ग को एक
अध्ययन के आधार पर कहना पड़ा था कि 97 प्रतिशत भारतीय मानते हैं कि चंद कमियों के बावजूद प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी की सरकार में भरोसा है।
कोरोना से जब दुनिया में हाहाकार मची हुई थी, तब नरेंद्र मोदी एकाग्रचित्त होकर भारत ही नहीं दुनिया के कोरोना
से मुक्ति के लिए संघर्षरत थे। कोविड-19 की पहली लहर में जब दुनिया उपचार के लिए दवा तय नहीं कर पा रही
थी, तब भारत ने हाइड्रोक्सी-क्लोरोक्वीन गोलियां अमेरिका समेत पूरी दुनिया को उपलब्ध कराई। नतीजतन दुनिया
में मोदी की लोकप्रियता में अप्रत्याशित वृद्धि हुई। इस कालखंड में अमेरिका की एजेंसी मॉर्निंग कंसल्ट ने एक सर्वे
किया। इस सर्वे में साफ हुआ कि मोदी की लोकप्रियता निरंतर न केवल बनी हुई है, बल्कि बढ़ी भी है। सर्वे में
मोदी की प्रसिद्धि की दर 55 प्रतिशत रही। इसे सभी प्रमुख वैश्विक नेताओं में सबसे अधिक अंक मिले। रेटिंग
एजेंसी फिच व एसबीआई ने कोरोना काल में आर्थिक गतिविधियां लंबे समय तक बंद रहने के बावजूद माना की
देश के आर्थिक हालात बेहतर हो रहे हैं। बिगड़ी आर्थिक व्यवस्था की चाल को सुधारने के लिए सरकार के स्तर पर
अनेक प्रयास हो रहे हैं। नतीजतन आर्थिक समृद्धि भविष्य में बनी रहना तय है। फिच ने माना की सरकार ने श्रम
और कृषि में जो कानूनी सुधार किए हैं। उससे बिचैलिए खत्म होंगे और देश खुशहाल होगा।
2014 में जब मोदी सरकार ने सत्ता संभाली थी, तब अर्थव्यवस्था बदहाल थी। महंगाई आसमान पर थी और
दूरसंचार, कोयला, राष्ट्रमंडल खेल एवं आदर्श सोसायटी के घोटालों के उजागर होने से देश शर्मसार था। विदेशी पूंजी
निवेश थम गया था। किंतु धीरे-धीरे संस्थागत सुधारों पर बल देते हुए सरकार ने बदतर हालात पर पूरी तरह काबू
पा लिया। यही वजह है कि पिछले तीन साल में 151 अरब डॉलर का पूंजी निवेश भारत में हुआ है। बीते वित्तीय
वर्ष में यह उछाल 36 प्रतिशत रहा है। कर कानूनों में सुधार की दृष्टि से जीएसटी विधेयक पारित कराना क्रांतिकारी
पहल रही। धन का लेन-देन पारदर्शी हो, इस नजरिए से डिजिटल आर्थिकी को बढ़ावा देने के लिए नोटबंदी करना
साहसिक पहल थी। जनधन और उज्ज्वला जैसी योजनाओं पर तकनीकी अमल से गरीब को वास्तव में लाभ मिला
है। नए कानून लाकर जमीन जायदाद के व्यापार और एनपीए पर जिस तरह से शिकंजा कसा है, उससे लगता है,
भाविष्य में अब रियल स्टेट कारोबार में हेराफेरी और बैंकों से कर्ज लेकर विजय माल्या, नीरव मोदी एवं मेहुल
चोकसी की तरह चंपत हो जाने वाले कारोबारियों की मुश्कें कसेंगी। इन उपायों से ऐसा लगता है कि देश का
ढांचागत कायांतरण हो रहा है। युवाओं को नए रोजगार सृजित करने की दृष्टि से स्टार्टअप और स्टेंडअप जैसी
योजनाएं भी लागू की गईं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिलना और देश को रेटिंग एजेंसियों द्वारा सम्मानजनक स्थान
देना, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय उपलब्धियों के बिना संभव नहीं है। इस हेतु नरेंद्र मोदी ने एक के बाद एक बिना
रुके, बिना थके एशियाई व पश्चिमी देशों की सैंकड़ों यात्राएं कीं। इन यात्राओंं में मिली अप्रत्याशित सफलताओं ने
प्रधानमंत्री को वैश्विक नेता के रूप में उभार दिया है। द्विपक्षीय रिश्तों में उन्होंने नए प्राण डाले। इन सभी यात्राओं
की खास बात यह रही कि हिंदी में भाषण देने के बावजूद राष्ट्रीय ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी मोदी का
जादू सिर चढ़कर बोलता रहा है। पिछले कुछ दशकों में ऐसा माहौल भारतीय प्रधानमंत्री तो क्या अन्य किसी देश के
मुखिया के विदेशी दौरों में दिखाई नहीं दिया। उनके इस जादू के असर का प्रमुख कारण स्पष्टवादिता, दृढ़ता और
वैश्विक आतंकवाद को खत्म करने का कठोर संदेश रहा। मोदी के इसी आचरण के कारण ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड
कैमरेन उनके प्रशंसकों की सूची में शामिल हो गए हैं। अपने पक्ष में मिले इस विश्वव्यापी समर्थन को देखते हुए ही,
मोदी ने फिजी में कहा भी था कि 'भारत विश्व गुरु की भूमिका निभाएगा और अपनी ज्ञानशक्ति से विश्व का
नेतृत्व करेगा।' दरअसल भविष्य का राजनीतिक नेतृत्व ज्ञान आधारित नेतृत्व पर ही टिका होगा, यह संभावना
अमेरिका और ब्रिटेन भी जता चुके हैं।
राष्ट्राध्यक्षों की विदेश यात्राओं के दौरान यह घटना विलक्षण ही होती है कि कोई मेजबान देश अतिथि प्रधानमंत्री या
राष्ट्रपति को अपने देश की सर्वोच्च संवैधानिक संस्था संसद में बोलने का अवसर दे। लेकिन मोदी ने नेपाल, भूटान
और फिजी की संसदों को तो संबोधित किया ही, विकसित देश आस्ट्रेलिया की संसद को संबोधित करने का मौका
उन्हें दिया गया। इस तरह किसी पश्चिमी देश की संसद को संबोधित करने वाले मोदी पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं।
आस्ट्रेलिया यात्रा के दौरान प्रवासी भारतीयों ने तो मोदी का गर्मजोशी से स्वागत अलफॉन्स एरीना स्टेडियम में
किया ही था, वहां के प्रधानमंत्री टोनी एबॉट भी रिश्तों को पुख्ता करने में अतिरिक्त उत्साहित में दिखे थे। मोदी के
नेतृत्व का लोहा ब्रिस्वेन में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन में भी दिखा था। विकसित और विकासशील देशों के इस
संयुक्त संगठन ने ब्रिस्वेन घोषणा-पत्र जारी किया था। इसमें कालाधन के मुद्दे को मोदी की मांग पर ही शामिल
किया गया था। यह कम बात नहीं है कि पहली बार दुनिया के प्रमुख शक्तिशाली नेताओं ने सीमा पार कर चोरी
को रोकने के उद्देश्य से सूचनाओं के स्वतः आदान-प्रदान पर सहमत हुए थे। इतने पुरजोर तरीके से न तो किसी
वैश्विक मंच पर कालेधन का मुद्दा उठाया गया और न ही इतने बड़े स्तर पर कालेधन पर प्रतिबंध की मांग को
स्वीकार्यता मिली। जाहिर है, विश्व स्तर पर मोदी कूटनीति के चतुर खिलाड़ी साबित होते रहे हैं।
मोदी की काबिलियत प्रवासी भारतीयों को लुभाने में भी पेश आती रही है। इससे पहले देश का कोई प्रधानमंत्री
अपने ही रक्त संबंधियों की भावनाओं को इस तरह सम्मोहित नहीं कर पाया ? आस्ट्रेलिया में 28 साल बाद तो
फिजी में 33 साल बाद भारत का कोई प्रधानमंत्री अपने रक्त-संबंधियों से दुख-दर्द बांटने पहुंचा था। मोदी के पहले
राजीव गांधी और इसके पहले इंदिरा गांधी फिजी गए थे। फिजी में 40 प्रतिशत भारतीय मूल के लोगों की आबादी
है। इनमें से ज्यादातर ब्रिटिश शासनकाल 1879 से 1916 के बीच गिरमिटिया मजदूरों के रूप में ले जाए गए थे।
फिजी की 83 फीसदी अर्थव्यवस्था वन संपदा, मछली और पर्यटन उद्योग पर टिकी है। लेकिन विडंबना है कि इस
उद्योग के बड़े भाग पर वर्चस्व महज दो फीसदी गोरी आबादी का है। बावजूद फिजी की राजनीति में भारतवंशियों
का दबदबा कायम है। 1997 में फिजी में जब लोकतांत्रिक सरकार का गठन हुआ तो उसके प्रधानमंत्री भारतवंशी
महेंन्द्र सिंह चौधरी बने। फिजी में भारतीयों की अब राजनीति के साथ-साथ आर्थिक हैसियत भी बढ़ रही है।
इसीलिए मोदी को फिजी की संसद को संबोधित करने का अवसर मिला था।
फिजी व भारत की निकटता अपनी ऐतिहासिक-सांस्कृतिक विरासत और हिंदी के कारण है। वहां हिंदी खूब पढ़ी व
बोली जाती है। फिजी विश्व हिंदी सम्मेलन भी आयोजित कर चुका है। इंदिरा गांधी ने भी फिजीवासियों के इस मर्म
को समझा था। इस कारण वे भी फिजी गई थीं और उन्होंने द्विपक्षीय वार्ता में फिजी को महत्व दिया था। मोदी ने
फिजी सरकार से कृषि व दुग्ध उद्योग के क्षेत्र में बढ़ावे का करार किया था। फिजी को डिजीटल क्षेत्र में भारत मदद
कर रहा है।
प्रवासी भारतीय हर साल अपने नाते-रिश्तेदारों को 70 अरब डॉलर भारत भेजते हैं। मोदी की निगाहें प्रवासी भारतीयों
के इस निवेश को और बढ़ाने पर भी टिकी रही हैं। इसलिए प्रवासी भारतीय निरंतर भारत में निवेश कर रहे हैं।
चूंकि ज्यादातर प्रवासी भारतीय गरीबी की हालत में अपने साथ धरोहर के रूप में गीता और रामायण साथ ले गए
थे। मोदी ने इसी सांस्कृतिक विरासत को लेकर दुनिया के देशों की अनेक यात्राएं कींं, इसलिए दुनिया में प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी भारतीयों के बीच लोकप्रिय हो रहे हैं। दूसरी तरफ वैश्विक आतंकवाद की खिलाफत और मोदी द्वारा
सैंकड़ों देशों से नए धरातल पर बनाए द्विपक्षीय संबंधों ने मोदी की लोकप्रियता तो बढ़ाई ही, उन्हें वैश्विक नेता के
रूप में स्थापित करने का काम भी किया है।