विनय गुप्ता
कोरोना वायरस महामारी के खात्मे को लेकर पूरी दुनिया इस समय वैक्सीन बनाने में लगी है। कई देशों ने उम्मीद
की किरण दिखाई है। भारत भी वैक्सीन बनाने के करीब है, तो रूस ने अपनी वैक्सीन जनता के लिए बाजार में
उतार दी है। टीके के वितरण और उत्पादन की जिम्मेदारी संभालने यूनेस्को भी आगे आ गया है। लेकिन इन सबके
बीच वैक्सीन को लेकर अमेरिका से आई एक खबर ने पूरी दुनिया की चिंता बढ़ा दी है। कहा जा रहा था कि
अमेरिका की एस्ट्राजेनेका कंपनी जल्द ही कोरोना वायरस की वैक्सीन को तैयार कर लेगी, लेकिन फिलहाल ऐसा
होता नजर नहीं आ रहा है। एस्ट्राजेनेका ने अपने अंतिम चरण के वैक्सीन ट्रायल पर रोक लगा दी है। कंपनी की
तरफ से बयान जारी कर कहा गया है कि परीक्षण के दौरान एक व्यक्ति बीमार पड़ गया, जिसके बाद परीक्षण पर
रोक लगाने का फैसला किया गया। अब अमेरिका में 9 दवा कंपनियों ने वादा किया है कि वे प्रीमैच्योर वैक्सीन
मार्केट में नहीं उतारेंगी। यह समझ नहीं आ रहा है कि यह वैक्सीन के शॉट का साइड इफेक्ट है या कुछ और।
एस्ट्राजेनेका ने इसकी जांच शुरू कर दी है। नतीजे आने तक वैक्सीन को लेकर किसी तरह का अनुमान गलत
होगा।
अब तक कहा जा रहा था कि भारत में कोरोना टीके 'कोविडशील्ड' के परीक्षण में जुटे भारतीय सीरम संस्थान
(एसआइआई) को अब दूसरे और तीसरे चरण के मानव परीक्षण की इजाजत मिल जाने के बाद यह उम्मीद और
बढ़ गई है कि इस वैश्विक महामारी से बचाव की दिशा में जल्द ही बड़ी कामयाबी हाथ लग सकती है। यह वही
टीका है जिसे ब्रिटेन के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने दवा कंपनी एस्ट्राजेनेका के साथ मिल कर तैयार किया है और
ब्रिटेन, अमेरिका, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका सहित कई देशों में परीक्षण किया जा रहा था। कहा यह भी जा रहा था
कि अब तक दुनिया में जितने टीकों का परीक्षण चल रहा है, उनमें कोविडशील्ड के ही सबसे ज्यादा कामयाब रहने
की उम्मीदें हैं। मगर अभी तो इस टीके के भविष्य पर ही सवाल उठ गए हैं।
यह तो साफ है कि जब तक कोरोना का टीका या दवा तैयार नहीं हो जाती, महामारी भयावह रूप में बनी रहेगी।
इसलिए हर देश, हर व्यक्ति इसी उम्मीद में है कि जल्दी ही टीका आए और इससे निजात मिले। पर जिस तरह से
पूरी दुनिया में कोरोना का कहर जारी है, उससे तो यही लग रहा है कि टीके या दवा आ जाने के बाद भी खतरा
आसानी से टलने वाला नहीं है। यह चिंता और आशंका फिजूल की इसलिए नहीं मानी जा सकती क्योंकि अब तो
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) भी स्पष्ट रूप से कह चुका है कि कोरोना की कारगर दवा कभी संभव नहीं है।
जब दुनिया के तमाम देशों के वैज्ञानिक और चिकित्सक टीका विकसित करने में जुटे हैं, तो ऐसे में डब्ल्यूएचओ
का आकलन कोवाशील्ड के फेल होने के बाद अनायास नहीं है। ऐसा इसलिए है कि डब्ल्यूएचओ वैश्विक संस्था है
और उसका काम ही बीमारियों और महामारियों से निपटने में सदस्य देशों की मदद करना है, उन्हें सही तथ्य और
जानकारी देना है। यह मान कर चला जाता है कि महामारियों और इनके टीके व दवाओं के बारे में डब्ल्यूएचओ से
ज्यादा सही सूचनाएं किसी के पास नहीं होंगी। इसलिए अगर खुद डब्ल्यूएचओ को यह लग रहा है कि कोरोना की
अचूक दवा कभी नहीं बन पाएगी, तो यह चिकित्सा विज्ञान को बड़ी चुनौती है।
पर डब्ल्यूएचओ के ऐसे अनुमान से निराश हो कर तो बैठा नहीं जा सकता। दुनिया भर में करीब 150 तरह के
टीकों पर काम चल रहा है। रूस जैसे देशों ने तो टीका बना लेने का दावा भी कर दिया है। अगर जल्दी ही टीका
आ जाता है, जैसी कि उम्मीद की जा रही है, तो इतना तो निश्चित है कि बड़ी संख्या में लोग महामारी की जद में
आने से बच सकते हैं, भले टीके की मियाद साल या दो साल हो। पर कोई न कोई रास्ता तो निकलेगा। अभी जो
हालात हैं, उनमें सिर्फ बचाव के उपाय ही हमें बचा सकते हैं।