वृक्षारोपण की संस्कृति विकसित हो

asiakhabar.com | June 4, 2020 | 4:15 pm IST
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जीवनदायी ऑक्सीजन का एक मात्र स्त्रोत वृक्ष हैं। मानव जीवन वृक्षों पर निर्भर है यदि वृक्ष नहीं रहेंगे तो किसी
का भी बचना मुमकिन नहीं फिर चाहे वह मानव हो या जीव-जन्तु। किसी भी समाज और संस्कृति की सम्पन्नता
वहां के निवासियों की भौतिक समृद्धि से ज्यादा वहां की जैव विविघता पर निर्भर होती है। भारतीय वन सम्पदा
दुनिया भर में अनूठी एवं विशिष्ट स्थान रखती है। हमारी संस्कृति, रीति-रिवाज, धर्म, तीज-त्योहार प्रकृति से
जन्मी विरासत हैं। जिसे हम विकास के नाम पर पिछले कुछ दशको से उजाड़ रहे हैं। जंगल जलवायु परिवर्तन को
कम करने की अद्भुत क्षमता के वाहक हैं। वनीकरण से जलवायु में सुधार संभव है। पेड़-पौधे प्रकाश संश्लेषण के
माध्यम से कार्बनडाई आक्साइड को कम कर सकते हैं, साथ ही मृदा पौधों एवं जीवों से निकलने वाले कार्बन को
रोकने में सहायक होती है। जिससे प्रकृति का संतुलन बना रहता है। माना जाता है कि वैश्विक स्तर पर 1.6
बिलियन लोग विश्व की जनसंख्या का लगभग 25 प्रतिशत अपने जीवन-यापन के लिए जंगल पर ही निर्भर है।
इनमें अधिकतर विश्व के सबसे गरीब लोग है। जंगल हमें स्वच्छ जल, स्वस्थ मृदा के अलावा प्रत्येक वर्ष लगभग
75-100 बिलियन डॉलर का लाभ भी पहुंचाते हैं। एक अध्ययन के अनुसार विश्व में यदि 0.9 बिलियन हेक्टेयर
क्षेत्र में पेड़ लगाये जाये तो यह विश्व की दो तिहाई ग्रीन हाउस गैस के उर्त्सजन को कम करने में सक्षम होगा।
इसके जरिये जलवायु परिवर्तन के गम्भीर परिणाम को टाला जा सकता है, लेकिन इसके लिए हमें वैश्विक स्तर पर
वृक्षारोपण की संस्कृति को विकसित करने की वकालत करनी होगी।
मौजूदा दौर में विश्व की 80 प्रतिशत जमीनी जैव-विविधता वनों में उपस्थित है। वनों के माध्यम से लगभग 2.6
बिलियन टन कार्बनडाई आक्साइड जो जीवाश्म ईधन से निकलने वाली कार्बनडाई आक्साइड का एक तिहाई हिस्सा
है, को प्रत्येक वर्ष वन अवशोषित कर लेते हैं। अमेरिका के विश्व संसाधन संस्थान ’वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टिटयूट’ की
शोध में आगाह किया है कि दुनिया भर के जंगल खतरे में हैं। 2018 में विश्व के उष्णकटिबंधीय वन आच्छादन
क्षेत्र के 12 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र को नुकसान हुआ जो चिन्ता का विषय है। ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच के नये ऑकड़े
बतलाते है कि जंगलों का यह नुकसान 2001 के बाद चौथा बडा नुकसान है। वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टिटयूट के आंकडे़
बतलाते है कि भारत में 2001 से 2018 के बीच 1.6 मिलियन हेक्टेयर वन क्षेत्रों के नुकसान होने से भारत में
लगभग 172 मीटिक टन कार्बन उर्त्सजन हुआ है। मानव ने अपनी सुविधा के लिए कृषि, भवन निर्माण, उघोगिक
विकास एवं टेक्नोलॉजी के नाम पर वनों का विनाश किया। जिसके दुष्प्रभाव से मानव भी अछूता नहीं रहा। मानव
ने जंगल नष्ट किये अब जंगल की कमी मानव को नष्ट करने में लगी है, परन्तु अभी भी मानव द्वारा अपनी
भूल को सुधारा जा सकता है। यदि समय रहते ही खुले वनो की सघनता को बढाया जाए, हरित गलियारों का
निर्माण किया जाए, रेलवे टृक,सड़क,नहर के किनारे, खाली पडी जगहों पर वृक्षारोपण करके उन्हें सुरक्षित रखा जाए
तो वृक्षारोपण संस्कृति का निर्माण एवं रोजगार के नये अवसरो को तलाश किया जा सकता है।
जंगल मानव अस्तित्व के लिए प्राणवायु हैं, विश्व के सभी देशो को मिलकर इस दिशा में युद्ध-स्तर पर काम करने
की जरूरत है। सितम्बर 2019 में आस्टृलिया के वनों में लगी आग ने डेनमार्क के बराबर क्षेत्रफल का बडा हिस्सा
जिसमें वन और राष्टृय उघान भी शामिल था राख में तबदील कर दिया। तबाही इतनी भयावाह थी कि उसकी चपेट

में कुछ विशिष्ट जीव-जन्तु भी जलकर मर गये। उनमें कोआला भी एक था, जो आस्टेलिया के जंगलो में पाया
जाता है उसकी लगभग आधी आबादी खत्म हो गयी क्योंकि यह विशेष रूप से पेडों पर ही रहता है। ब्राजील के
नेशनल इंस्टीटयूट फॉर स्पेस रिसर्च के आंकडे बताते हैं कि 2019 में ब्राजील के अमेजन के जंगल में कुल
74,155 बार आग लगी साथ ही आग की इन घटनाओं में 2018 से 85 प्रतिशत की वृद्धि भी देखी गयी है।
2018 में कैलिफोर्निया के जंगलों में आग 18 लाख हेक्टेयर एवं अमेजन के जंगलों में लगभग 9 लाख हेक्टेयर
के दायरे में फैल गई। वनों की आग से भारत भी अछूता नहीं है, हाल ही में अल्मोडा और नैनीताल के जंगलों में
बडे पैमाने में फैली आग ने पर्यावरण की सुरक्षा एवं प्रबंधन में प्रश्नचिन्ह लगाया है। ब्राजील के अंतरिक्ष अनुसंधान
केन्द्र का मानना है कि अमेजन जंगलों की विभीषिका 99 प्रतिशत मानव के बढते हस्तक्षेप या किसी विशेष
उददेश्य का ही परिणाम हैं।
यघपि हम इसके प्राकृतिक कारणों को भी नज़रअंदाज नहीं कर सकते, जिनमें बिजली गिरना, प्राकृतिक रूप से पेड
की पत्तियों के सूखने पर होने वाले घर्षण एवं तापमान की वृद्धि आदि शामिल हैं। प्र्रतिवर्ष ऐसी तमाम घटनाए
मानव एवं प्राकृति के आपसी तालमेल को खराब करती है, जिनसे भारी नुकसान होता है। भारतीय वन सर्वेक्षण के
अनुसार प्रतिवर्ष लगभग 440 करोड़ रूपये की हानि होती है। हजारों जानवर मारे जाते है और बेघर हो जाते हैं।
जिनसे उनका शहरी रूख करना मानव-पशु हिंसा का कारण बनता है। इन समस्याओं से निपटने के लिए ज्यादातर
देशो के पास पुख्ता बन्दोबस नहीं है, जिसके लिए दुनिया के तमाम देशों को वैश्विक स्तर पर नीति निर्धारण की
आवश्यकता है। मानव प्रकृति की नहीं बल्कि प्रकृति मानव की रक्षा करती है। अकेले अमेजन के वन पृथ्वी के
वायुमण्डल में लगभग 20 प्रतिशत ऑक्सीजन का योगदान देते हैं, ऐसे में हमारा प्रथम प्रयास पेड़ो को कटने से
रोकना होना चाहिए क्योंकि मानव जीवन वृक्षों पर निर्भर है, यदि वृक्ष नहीं रहेंगे तो हम भी नहीं बचेंगे। इसके
गभ्भीर परिणाम से बचाव के लिए हमें वृक्षारोपण की संस्कृति विकसित करनी ही होगी।


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