-निर्मल रानी-
भारतीय संसद का नवनिर्मित भवन पिछले दिनों स्वतंत्र भारत के इतिहास के उस सबसे दुर्भाग्यशाली क्षण से रूबरू हुआ जब भारतीय जनता पार्टी के एक ‘माननीय’ परन्तु ‘ज़हरीले’ सांसद ने मुस्लिम समुदाय के एक विपक्षी सांसद कुंवर के दानिश अली के विरुद्ध कुछ ऐसे आपत्तिजनक व साम्प्रदायिकतावादी शब्द बोल डाले जिसकी किसी सांसद से तो दूर की बात है किसी गंभीर, संवेदनशील व सभ्य व्यक्ति से भी उम्मीद नहीं की जा सकती। उस ‘माननीय ‘ने केवल अपमानजनक टिप्पणी ही नहीं की बल्कि उसने अमरोहा के सांसद कुंवर दानिश अली को सदन के बाहर देख लेने की धमकी भी दी। यानी गुंडागर्दी के पूरे ‘दर्शन’ भी उस सांसद के ज़हरीले बोल में सुनाई दिये। इस तरह की अति आपत्तिजनक टिप्पणी करने वाले रमेश विधुड़ी नामक दक्षिण दिल्ली के इस सांसद की न केवल विपक्ष बल्कि उसकी अपनी पार्टी के लोगों द्वारा भी आलोचना की गयी।
यहां तक कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को उसके इस घोर आपत्तिजनक बयान के लिये गोल मोल शब्दों में ही सही परन्तु उन्हें खेद व्यक्त करना पड़ा? भाजपा ने भी बिधूड़ी को इस आपत्तिजनक बयान के लिये नोटिस जारी की और 15 दिनों में इसका जवाब देने को कहा। पार्टी ने बिधूड़ी से पुछा कि क्यों न संसद में उसके इस आचरण के ख़िलाफ़ उसके विरुद्ध कार्रवाई की जाए? यहाँ तक कि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने भी इस भाजपा सांसद को “गंभीर कार्रवाई” की चेतावनी दी। परन्तु उस सांसद के ज़हरीले विचारों से मेल खाने वाले कुछ नेता और साम्प्रदायिकतावादी स्वयंभू पत्रकार ऐसे भी हैं जो उसकी पैरवी भी कर रहे हैं और उसके इस विषवमन को सही ठहरा रहे हैं। इस घटना ने पूरे देश के गंभीर, शांतिप्रिय व राष्ट्रवादी लोगों को झकझोर कर रख दिया है। विधुड़ी के उस आपत्ति जनक बयान के बाद जिसका उल्लेख करना तक यहाँ मुनासिब नहीं, कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं।
पहला तो यह कि क्या यह घटना देश की संसद में ऐसे अभद्र, अशिष्ट, संसद व लोकतंत्र के मंदिर का घोर अपमान करने वाले और अपराधी प्रवृत्ति के लोगों की पनाहगाह बनने का ही परिणाम है? जिस सदन में पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर, लाल बहादुर शास्त्री, अटल बिहारी वाजपेयी व मनमोहन सिंह जैसे अनेकानेक सभ्य, सुशील, सज्जन, शिष्ट व विनीत लोग सदस्य हुआ करते थे, जिनकी बोल वाणी के विपक्षी लोग भी क़ायल हुआ करते थे क्या आज वही सदन ज़हरीले बोल बोलने व साम्प्रदायिक घृणा फैलाने व धमकाने व गुंडागर्दी करने वाली टिप्पणियां करने का केंद्र बन गया है? यह सवाल भी पूछा जा रहा है कि कोई सांसद दुर्व्यवहार की सभी सीमायें पार कर जाने का ऐसा साहस आख़िर लाता कहाँ से है? क्या उसे उसकी पार्टी या शीर्ष नेताओं से शह मिली हुई है? क्या यह उसके दलीय राजनैतिक व सामाजिक संस्कारों का परिणाम है? क्या वह समझता है कि ऐसे बोल बोलने से उसकी ‘पदोन्नति ‘ हो सकती है? क्या वह ऐसे बयान देकर अपने समुदाय का हीरो बनना चाहता है? और इससे भी बड़ी चिंता की बात यह भी है कि जिस समय यह सांसद लोकसभा में ज़हरीले बोल बोल रहा था उस समय उसी की पार्टी के कई बड़े नेता इतनी घोर आपत्तिजनक बातों पर आपत्ति करने या चिंतित होने के बजाये उसकी बातों पर खिलखिला कर हंस रहे थे?
पहले इस तरह के अपशब्द तथा साम्प्रदायिक व जातिसूचक गालियां गलियों व चौराहों पर होने वाले लड़ाई झगड़ों तक ही सीमित हुआ करती थीं। परन्तु धीरे धीरे यह साम्प्रदायिकतावादियों की भीड़ और उनकी स्टेज तक पहुंचीं। यहाँ तक कि संसद के कुछ ही दूर जंतर मंतर पर होने वाली तथाकथित धार्मिक सभाओं में खुले आम एक समुदाय को गलियां और धमकियाँ दी जाने लगीं। चाक़ू की धार तेज़ कर रखने की अपील की जाने लगी। बंदूक़ें व तलवारें रखने की सरे आम अपील की जाने लगी। देश का सर्वोच्च न्यायालय अनेक बार इसतरह की ज़हरीली भाषणबाज़ियों पर रोक लगाने के निर्देश देता रहा। परन्तु सरकार व पुलिस द्वारा इन तत्वों के विरुद्ध न तो कोई कार्रवाई की गयी न ही इन्हें रोकने के लिये सत्ता प्रतिष्ठनों की तरफ़ से कोई सख़्त निर्देश जारी किये गये। बजाये इसके जब एक केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने दिल्ली में भीड़ से ‘गोली मारो …को’ जैसे नारे लगावाये तो कुछ ही समय बाद उनकी पदोन्नति कर दी गयी। इसी तरह बंगलौर के सांसद ने जब समुदाय विशेष के विरुद्ध कई बार आपत्तिजनक बातें कीं। यहाँ तक कि खाड़ी के कई देशों की ओर से भी उसके ज़हरीले बयानों पर भारत सरकार को अपनी आपत्ति दर्ज कराई गयी। उसके बावजूद उसके विरुद्ध कार्रवाई करनी तो दूर उसे भाजपा की युवा शाखा का राष्ट्रीय प्रमुख बना दिया गया।
इस तरह के और भी कई उदाहरण हैं। और विषवमन करने वाला यही वर्ग अब तो सरे आम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को भी गालियां देता फिरता है। और उनके हत्यारे गोडसे का महिमामंडन करता रहता है। इसमें क्या संदेह है कि ऐसे तत्वों पर सरकार द्वारा नकेल न कसना और उल्टे उन्हें पदोन्नत करना ही आज इस देश को उस स्थान पर ले आया है जहाँ स्वयं को ‘माननीय’ कहलाने वाला एक सांसद खुले आम संसद के नये भवन में खड़ा होकर इतनी अपमान जनक भाषा का इस्तेमाल कर रहा है? क्या उसका यह बयान नये संसद भवन के भविष्य के ख़तरनाक इरादों को परिलक्षित करता है? अक्सर सुनने में आता है कि इसी ‘विषाक्त’ जमाअत के लोग ख़ासकर राहुल गाँधी पर यह कहते हुये हमलावर रहते हैं कि वे विदेशों में बैठकर ऐसे बयान देते हैं जिससे देश की बदनामी होती है। क्या वह बता सकते हैं कि संसद में ऐसी घटिया व साम्प्रदायिकतावादी टिप्पणी करने वाले उनके सांसद के इस घोर आपत्तिजनक साम्प्रदायिकतावादी बयान से देश का नाम रोशन हुआ है? क्या इससे संसद के नए भवन की गरिमा में चार चाँद लगे हैं?