विश्वास के लाइक नहीं है चीन की बातें

asiakhabar.com | June 2, 2020 | 5:38 pm IST
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अर्पित गुप्ता

सारी दुनिया कोरोना वायरस से त्रस्त है और अब यह बात शीशे की तरह साफ हो गई है कि यह वायरस चीन से
ही निकला है। अमेरिका और दुनिया के तमाम दूसरे देश बार-बार कह रहे हैं कि चीन उन्हें इजाजत दे कि वुहान
स्थित चीन की वायरोलोजी लैब में जांच कर पता लगाये कि यह वायरस कहां से आया है। परन्तु चीन किसी भी
हालत में यह अनुमति देने को तैयार नहीं है, क्योंकि उसे पता है कि जांच हुई तो उसकी पोल-पट्टी खुल जाएगी।
आज की तारीख में दुनिया के तीन चौथाई देश कोरोना वायरस के कारण चीन के खिलाफ हो गये हैं। लगता है कि
शायद इसी कारण दुनिया का ध्यान कोरोना वायरस से हटाने के लिये चीन ने लद्दाख में भारत से पंगा लेने की
कोशिश की थी। लद्दाख में नियंत्रण रेखा पर चीन ने भारी फौज का जमावड़ा बना लिया। उसे यह भ्रम हो गया है
कि 1962 की तरह ही वह भारत को आंख दिखाकर अपनी मनमानी कर लेगा। परन्तु 1962 के भारत और आज
के भारत में जमीन-आसमान का अन्तर है। नरेन्द्र मोदी की सरकार यह बर्दाश्त नहीं कर सकती कि कोई भारत को
आंख दिखाए।
चीन आज की तारीख में अनेक समस्याओं में उलझा हुआ है। हांगकांग, ताइवान और दक्षिण चीन सागर में चीन
बुरी तरह उलझ गया है। वह इस बात को अच्छी तरह समझता है कि यदि भारत से पंगा लिया गया तो यह बात
चीन के खिलाफ ही जाएगी। इसीलिये भारत में चीन के राजदूत ने कहा कि लद्दाख में जो सीमा विवाद उत्पन्न हो
गया है, वह जल्द ही बातचीत के जरिये सुलझा लिया जाएगा और ड्रैगन तथा हाथी मिलकर नाचंगे। छोटे-मोटे
मतभेद तो देशों के बीच होते ही रहते हैं। उनसे यह निष्कर्ष नहीं निकालना चाहिये कि चीन भारत के खिलाफ है।
परन्तु सच यह है कि चीन की नीयत शत-प्रतिशत भारत के खिलाफ है। भारत में चीन के राजदूत ने कहा कि कुछ

लोग चाहते हैं कि भारत और चीन के बीच कटुता बढ़ती जाए, परन्तु उनका सपना कभी सच नहीं हो सकता। दोनों
देश कुशल पड़ोसियों और अच्छे मित्रों की तरह रहेंगे।
अपनी आदत के अनुसार भारत को दबाव में लाने के लिये चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपनी सेना को आदेश
दिया कि लद्दाख में भारी संख्या में चीनी फौज तैनात कर दी जाए। यह सुनते ही भारत के प्रधानमंत्री ने चीनी
सेना से भी ज्यादा भारतीय फौज चीनी सेना के सामने तैनात कर दी। अब चीनी नेता समझ गये कि भारत
आसानी से झुकने वाला नहीं है। पीछे मुड़कर देखने से लगता है कि हमने चीन की बदनीयत को कभी अच्छी तरह
समझा ही नहीं। जवाहरलाल नेहरू इतिहास के ज्ञाता थे। परन्तु चीन के मामले में उन्होंने चीन का इतिहास ठीक से
नहीं पढ़ा और चीन से वे बुरी तरह गच्छा खा गये। चीन ने हमेशा यह प्रयास किया कि वह पड़ोसी देशों को या
उनके क्षेत्र को बेईमानी से हड़प ले।
भारत को आजादी 1947 में मिली थी और चीन पश्चिम के देशों से 1949 में आजाद हुआ था। उसके एक वर्ष
बाद ही उसने चालाकी से तिब्बत को हड़प लिया। वर्षों से तिब्बत भारत का ‘प्रोटैक्टोरेट’ था और वहां भारत की
मुद्रा का चलन था तथा भारत की पुलिस और सेनी की टुकड़ी भी तिब्बत में तैनात रहती थी। दोनों देशों के बीच
स्वतंत्र रूप से व्यापार होता था और यह समझा जाता था कि तिब्बत भारत का ही एक अंग है। परन्तु चीन की
नीयत में खोट था। जैसे ही उसने 1950 में तिब्बत को हड़पा तो जवाहरलाल नेहरू ने इसका विरोध किया। परन्तु
उनके मित्र और चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री चाउ-एन-लाई ने उन्हें समझाया कि चीन तिब्बत की स्वतंत्रता और
संस्कृति को अक्षुण्ण रखेगा। परन्तु चीन ने किया ठीक इसके उलटा ही। उसने तिब्बत के बौद्ध मठों को बेरहमी से
गिराना शुरू कर दिया और एक वक्त ऐसा आया कि चीन के नेता तिब्बत के धार्मिक नेता दलाई लामा को कैद कर
बीजिंग ले जाना चाहते थे।
जब तिब्बत के धर्मगुरू दलाई लामा के शिष्यों ने उन्हें यह बताया कि उन्हें कैद कर चीन के कम्युनिस्ट नेता
बीजिंग ले जाना चाहते हैं तो दलाई लामा रातो-रात अपने हजारों अनुयायियों के साथ खच्चर और घोड़ों पर सवार
होकर भारतीय सीमा में प्रवेश कर गये। भारत पहुंचने पर नेहरू ने उन्हें राजनीतिक शरण दे दी। इस पर चीन बहुत
खफा हो गया। चीनी नेताओं ने बार-बार भारत पर यह दबाव डाला कि दलाई लामा को चीन को सौंप दिया जाए।
परन्तु भारत सरकार इसके लिये तैयार नहीं हुई। अन्त में 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया। भारत
चीन के इस धोखे की कल्पना भी नहीं कर सकता था और भारत चीन से लड़ाई के तैयार भी नहीं था। परन्तु
दुर्भाग्यवश इस लड़ाई में भारत की हार हो गई। तभी से चीन बराबर यह सोचता रहा है कि वह डरा-धमका कर
भारत को नीचा दिखाता रहेगा। सच कहा जाए तो चीन के इस धोखे के कारण ही नेहरू की असामयिक मृत्यु हो
गई।
भारत अपने सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़कें और पुलों का निर्माण करता रहा है जिसका चीन धुर विरोधी रहा है। यही
नहीं, भारत के उत्तर-पूर्व के क्षेत्र को चीन समय-समय पर अपना बताता रहा है। भारत ने उसका हर बार कड़ा
विरोध किया है। कुल मिलाकर स्थिति यह है कि चीन भारत को अपना पक्का दुश्मन मानता है और आज की
तारीख में जब पाकिस्तान चीन के साथ हो गया तो भारत के खिलाफ उसकी कटुता और भी बढ़ गई है। अमेरिकी
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा है कि वह चीन और भारत के बीच उपजी तनातनी को खत्म करने के लिये

मध्यस्थता कर सकते हैं। परन्तु पहले भारत ने और बाद में चीन ने दो टूक कहा है कि हम किसी तीसरे देश की
मध्यस्थता के पक्ष में नहीं हैं।
लद्दाख से लेकर उत्तर-पूर्वी भारत तक अनेक जगहों पर चीन भारत के क्षेत्र को अपना क्षेत्र बताता रहा है। परन्तु
भारत भला ऐसे ही किसी दावे को स्वीकार क्यों करेगा? आज की तारीख में लद्दाख में दोनों ओर की सेना डटी
हुई है और सारा संसार इस बात की प्रतीक्षा कर रहा है कि क्या चीन भारत से भिड़ेगा? परन्तु सच यही है कि
उसके पुराने इतिहास को जानकर लगता है कि चीन धौंस दिखाता रहता है। वर्तमान हालात में यही लगता है कि
वह युद्ध करने की स्थिति में नहीं है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कि जब चीन ने अपने पड़ोसी देश वितयनाम
पर चढ़ाई की तो वियतनाम ने उसे बुरी तरह हरा दिया। उसके बाद वह कभी वियतनाम को आंख दिखाने की
हिम्मत नहीं कर सका। कुल मिलाकर स्थिति यह बनती दिख रही है कि चीन चाहे कितनी भी धौंस दिखाये, वह
भारत के साथ लड़ाई नहीं करेगा। लगता है कि कोरोना के मामले में दुनिया के तीन चैथाई देश भारत के साथ हैं
और चीन इस सच्चाई को अच्छी तरह समझता है। एक बात तो माननी ही चाहिये कि चीन कितना भी नाटक कर
ले कि भारतीय और चीनी ‘भाई-भाई’ हैं। परन्तु चीन की नीयत में खोट है और वह कभी भारत का हितैषी और
मित्र नहीं हो सकता।


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