हम तो चाहते थे कि अतीत को अतीत ही रहने दें, उसे मत कुरेदें। पुराने ढांचे मंदिर थे अथवा मस्जिद हैं, ऐसे
सर्वेक्षणों की सियासत बंद की जाए। इतिहास को खंगालने से हमारा समय, समाज और देश विभाजित हो रहे हैं।
सुखद लक्षण नहीं हैं। हिंदू और मुसलमान दोनों ही भारत के नागरिक हैं। संविधान और कानून दोनों को समान रूप
से संरक्षण देते हैं। यदि अदालतें ऐतिहासिक अतीत की पुष्टि नहीं कर सकतीं, तो सिर्फ सर्वे से क्या हासिल होगा?
सर्वे के बाद क्या कार्रवाई की जाएगी? क्या विवादित ढांचे ढहाए जाएंगे और फिर नवनिर्माण किए जाएंगे? इन पर
फिजूल में देश के संसाधन बर्बाद नहीं किए जा सकते। विडंबना और दुर्भाग्य यह है कि औसत मुसलमान मुग़ल
बादशाहों की प्रजा बने हैं और कुछ चेहरे स्कॉलर का बिल्ला लगाकर प्रवक्ता की भूमिका में हैं। दोनों ही सरकार-
विरोधी, संविधान-विरोधी और अदालत के निर्णय के खिलाफ बोल रहे हैं। दोनों ही हंगामा बरपाने के अंदाज़ में हैं।
तो हिंदू पक्षकारों को अपने देवी-देवता, भित्ति-चित्र, प्रतीक-चिह्नों में ही आस्था प्रतिबिंबित हो रही है। उनकी भक्ति
इसी दौर में उमड़-घुमड़ रही है। दोनों पक्षों का मध्यकालीन अतीत से आज कोई सरोकार नहीं है, लेकिन वे मंदिर-
मस्जिद को लेकर उबल रहे हैं। अपने कपड़े फाड़ रहे हैं।
इतना ही नहीं, काशी में ज्ञानवापी ढांचे, मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि और ईदगाह तथा ताजमहल के ऐतिहासिक
सच आदि मुद्दों को बेवजह अयोध्या के राम मंदिर-कथित बाबरी मस्जिद और 1991 के धार्मिक स्थल अधिनियम
से जोड़ कर आकलन किए जा रहे हैं। धर्म और मज़हब की ऐसी फेहरिस्त बहुत लंबी है। हजारों मंदिर और मस्जिदें
विवादास्पद हैं। ताजमहल के संदर्भ में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों ने साफ कर दिया है कि इतिहास
की पुष्टि करने या कोई न्यायिक आदेश देने का अधिकार संविधान ने उन्हें नहीं दिया, नतीजतन याचिका खारिज
कर दी गई। अदालत ने याचिकाकर्ता से जानना चाहा कि ताजमहल के मौजूदा स्वरूप से उसके किन संवैधानिक,
मौलिक, नागरिक अधिकारों का हनन हो रहा है? तब अदालत को टिप्पणी कर फटकार लगानी पड़ी कि पहले
विश्वविद्यालय जाओ, पीएचडी करो, शोध करो, फिर ताजमहल के विषय पर अदालत के सामने आना। बहरहाल
काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की बग़ल के विवादित ढांचे और मथुरा विवाद पर अदालतों के महत्त्वपूर्ण फैसले आए हैं,
लिहाजा हमें विश्लेषण करना पड़ रहा है।
अदालत ने ज्ञानवापी ढांचे के कोने-कोने की वीडियोग्राफी कर सर्वे करने का फैसला सुनाया है। सर्वे की रपट
वाराणसी अदालत में 17 मई को सौंपनी है। यदि मुस्लिम पक्षकार सर्वे में रोड़ा बनते हैं, तो उनके खिलाफ
आपराधिक मुकदमे दर्ज किए जाएंगे। यदि तहखाने का ताला न खोला जाए, तो सर्वे टीम ताला तोड़ सकती है।
अदालत ने जिला मजिस्टे्रट की भी भूमिका तय कर दी है। मथुरा विवाद पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदेश दिया है
कि निचली अदालत आगामी 4 माह की अवधि के दौरान सभी पक्षों की याचिकाओं का निपटारा करे, ताकि आगे
की सुनवाई की जा सके। अब तनाव मथुरा में भी पसर सकता है। टकराव मंदिर-मस्जिद को लेकर ही है। यदि
अदालत किसी भी प्राचीन इमारत, ढांचे की ऐतिहासिकता पर फैसला नहीं दे सकती, तो फिर सर्वे या सुनवाई के
हासिल क्या होंगे? अयोध्या में विवादित ढांचे का एक हिस्सा ढहा दिया गया था, कई मौतें हुई थीं, लिहाजा मामला
आपराधिक बन गया था। सर्वोच्च अदालत की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने सुनवाई की और ऐतिहासिक फैसला
सुनाया। उसे सभी पक्षों ने स्वीकार भी किया। यदि ज्ञानवापी ढांचे के भीतर हिंदू मूर्तियों, कलाकृतियों, प्रतीक-चिह्नों
आदि के आधार पर ‘मंदिर मान लिया गया, तो क्या मंदिर की प्राचीन गरिमा और स्वरूप बहाल किए जाएंगे? यदि
मामले सुप्रीम अदालत तक गए, तो एक और अयोध्या विवाद खुल जाएगा। अंतिम समाधान और सौहाद्र्र कहां
स्थापित होगा? अतीत को कुरेदने से हासिल कुछ नहीं होगा।