विजय के भाव: भावों से परिपूर्ण

asiakhabar.com | August 3, 2023 | 5:04 pm IST

डॉक्टर आशा रावत
कहते हैं कि हृदय से हर व्यक्ति कवि होता है, किंतु वास्तव में कवि वही होता है, जो अपने मन के भावों तथा विचारों को काव्यात्मक शब्दों में पिरो कर दूसरों को रसानुभूति से भर दे। ‘ वाक्यम् रसात्मकम् काव्यम्’ अर्थात् रसयुक्त वाक्य ही काव्य है। यदि शब्दों में रस नहीं और उन्हें हृदयंगम करते समय रस की अनुभूति न हो तो वह कैसी कविता !प्रतिभावान, संवेदनशील युवा कवि श्री विजय कनौजिया की प्रथम पुस्तक ‘ विजय के भाव ‘ की हर कविता अपनी सशक्त शैली में भावनाओं तथा संवेदनाओं से इस तरह ओतप्रोत है कि उन्हें पढ़कर कोई भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकेगा।
मन के झरने से स्वतः स्फूर्त ये कविताएँ एकरस न होकर विभिन्न भावों तथा अनुभावों से भरी हुई हैं। प्रेम , सपने, विरह और सौंदर्य से लेकर समाज, प्रकृति, परिवेश आदि को अपने आप में समेटा हुआ है इन कविताओं ने। इनकी शैली आत्मकथात्मक है और प्रेम का फलक पूरे संसार तक विस्तृत और सीमातीत। सहज प्रीत के रंग में रंगे इतने विविध तथा सूक्ष्म भावों को देखकर आश्चर्य होता है कि एक ही विषय पर इतने अलग-अलग प्रकार से कैसे लिखा जा सकता है!
संग्रह की पहली कविता ‘ सावन मैं तेरे नाम लिखूँ ‘ में ही प्रेम की जिस मासूमियत के दर्शन होते हैं, वह विरल है, ” गीत लिखूँ या प्रीति लिखूँ, तुमको भाए तो मीत लिखूँ। बस जाओ यदि मेरे मन में, फिर तुमको मैं मनमीत लिखूँ।।”
और कविता की अन्तिम पंक्तियां देखें, “बारिश की रिमझिम बूँदों का, सौंदर्य अलंकृत कर दूंगा। तुम खुशियों के आँसू दे दो, सावन मैं तेरे नाम लिखूँ।।”
यह सच है कि प्रेम लेने का नहीं देने का नाम हैं और बिना समर्पण के वह अधूरा होता है।इस अहसास को कवि ने कुछ इस तरह अभिव्यक्त किया है, ” त्याग समर्पण सब कुछ मैंने, तुमको अर्पण कर डाला है।वीराने इस प्रेम भवन में, तुम बिन मैं कैसे रह लूँगा।”
विजय की कविताएं सपनों के बिना अधूरी हैं। जीवन में सपने न हों तो कुछ न हो। विजय ने सपनों की अभिव्यक्तियाँ बहुत खूबसूरत तरीके से व्यक्त की हैं। उदाहरण देखिये, ” चलो चलें सपने बुनते हैं, महफिल में अपने चुनते हैं। रिश्तो में जो कड़वाहट है, उसका समाधान करते हैं। चलो चलें सपने बुनते हैं।।”
प्रेम में विश्वास ही नहीं, बल्कि आशावादिता भी जरूरी है, इस भाव को व्यक्त करते हुए कवि ने लिखा है, ” आज चाहतों के पन्नों पर, जज़्बातों की बात लिखूंगा, दिल में जो अरमान बसे हैं, मैं तो उनकी चाह लिखूंगा।।”
ऐसा नहीं है कि काव्य संग्रह में सिर्फ प्रेम की बातें अभिव्यक्त हुई हों, आज के समय की अनेक उलझनें भी कवि ने उजागर की हैं। आज के दौर में रिश्तों ने कैसा रूप ले लिया है, यह विजय ने बड़ी तल्खी से प्रकट किया है, “दूरियों से सिमटते जा रहे, रिश्ते सभी अपने। मुलाकातों से बचते हैं, ललक रिश्तों की फीकी है।”
कोई भी संवेदनशील मनुष्य अपना बचपन नहीं भूलता।फिर कवि हृदय की तो बात ही निराली है। विजय ने ‘ फिर से वो बचपन लौटा दो’ कविता में कितनी सहजता से बचपन की यादों को उकेरा है, ” छुपन छुपाई फिर खेलेंगे, पेड़ों से अमिया तोड़ेंगे। उछल कूद वाली डाली की, फिर से वो खुशियां लौटा दो। फिर से वो बचपन लौटा दो।।”
विजय जी की कविताओं में हमें न सिर्फ अनेक प्रकार की भावनाओं तथा संवेदनाओं के दर्शन होते हैं, बल्कि कहीं-कहीं मन की उलझनें भी स्पष्ट दिखाई देती हैं।’ कोई और उपाय नहीं’ की ये पंक्तियां दृष्टव्य हैं, ” सपनों के सब बाग- बगीचे, मुरझाए से दिखते हैं। हरा – भरा जो कर दे इनको, ऐसा अब बागवान नहीं।। आगे देखिये, “अरमानों के बिस्तर पर, अब नींद बड़ी मुश्किल से है। जिस तकिए पर सिर रखता था, अब वो मेरे साथ नहीं।।
इस संग्रह का भाव पक्ष ही नहीं, वरन् कला पक्ष भी बहुत सशक्त और स्तरीय है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बहुत सहजता व सरलता से कवि ने अपनी बात दूसरों तक पहुंचाई है। इनमें कोई क्लिष्टता या जटिलता नहीं है, इसीलिए ये बोझिल या उबाऊ होने से बच गई हैं।इनका छंदबद्ध होना इन्हें आकर्षक लय, ताल से सजा देता है।
निःसंदेह विजय जी का काव्यात्मक भविष्य बहुत उज्जवल है।मैंने उनके कुछ आलेख भी पढ़े हैं।आशा है, शीघ्र ही हम उनके नवीन संग्रह से रूबरू होंगे।
अंत में मैं यही कामना करना चाहूंगी, जो स्वयं कवि ने इन पंक्तियों में प्रकट की है-
” मैं भी काव्य पथिक बन जाऊं,
थोड़ी- सी कविता लिख पाऊं।
भावों की लड़ियाँ मैं गूथूँ
माँ मुझको ऐसा वर दे दो।।”


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *