वादा था राम राज का लठ्ठ राज दे दिया?

asiakhabar.com | October 6, 2021 | 3:56 pm IST
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-निर्मल रानी-
तीन दशकों से भारतीय जनता पार्टी व उसके सभी सहयोगी व संरक्षक संगठन जब जनता के पास राम जन्मभूमि
के नाम पर वोट मांगने जाते तो यही कहते सुनाई देते कि हमें बहुमत से सत्ता में लाओ तो हम देश में 'राम राज'
स्थापित करेंगे। यह उस भगवान राम की बातें करते जिन्हें 'मर्यादा पुरुषोत्तम' कहा जाता है। ऐसे में यह जानना तो
ज़रूरी है कि आख़िर उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम क्यों कहा जाता है और क्या होता है राम राज ? वैसे तो भगवान श्री
राम के जीवन से जुड़े सैकड़ों ऐसे प्रसंग हैं परन्तु सबसे बहुचर्चित प्रसंग ही यह जानने के लिये पर्याप्त है, जिसमें
मात्र 'एक' धोबी ने सीता माता के चरित्र पर संदेह करते हुए उनपर भरी सभा में लांछन लगाया था। धोबी के प्रजा
का सदस्य होने के नाते भगवान राम ने उसके संदेहपूर्ण आरोप को भी गम्भीरता से लिया। मर्यादा पुरषोत्तम श्री
राम इस संदेह को लेकर चिंतित हुए कि कहीं हमारी प्रजा अपनी ही रानी को संदेह की नज़रों से न देखने लगे और
जनता का मुझसे विश्वास उठ जाये ? इसके बाद माता सीता को अग्नि परीक्षा और ऋषि बाल्मीकि आश्रम में
दीर्घकालिक वास जैसी कठिन परीक्षाओं के दौर से गुज़रना पड़ा। यह कथायें अनेक शास्त्रों में वर्णित हैं। हालाँकि
कुछ आलोचक भगवान श्री राम द्वारा लिये गये इस कठोर निर्णय की आलोचना भी करते हैं कि 'मात्र एक' धोबी
के कहने पर उन्होंने अपनी सीता जैसी पवित्र पत्नी की इतनी बड़ी परीक्षा क्यों ली ? परन्तु यही तो राम राज्य था
जिसमें यह सोचा गया कि उस राज्य के एक भी व्यक्ति को किसी प्रकार के शक व संदेह का मौक़ा ही क्यों मिले?
क्या उसी मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का नाम लेकर सत्ता हासिल करने व देश में राम राज लाने का वादा करने वालों
में इस तरह के गुण दिखाई दे रहे हैं ? वर्तमान समय में देश में चल रहा किसान आंदोलन ही इसका सबसे बड़ा
सुबूत है। देश का लाखों किसान सड़कों पर उतर कर तीन नये कृषि क़ानूनों का विरोध कर रहा है। वह कह रहा है
कि मुझे नहीं चाहिए यह कृषि क़ानून। सैकड़ों किसान इन्हीं क़ानूनों का विरोध करते हुये अपनी जानें गंवा बैठे,कई
लोगों ने इसी आंदोलन के दौरान आत्म हत्या कर डाली। परन्तु 'राम राज ' लाने का ढोंग करने वाली सरकार के
प्रतिनिधि इन्हें 'मुट्ठी भर ' 'मवाली' बताते रहे। अराजक व राष्ट्रविरोधी बताते रहे हैं । क्या इन्होंने राम राज्य के '
इकलौते धोबी' के प्रकरण से कोई सबक़ लिया ? पिछले दिनों राम भक्त राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती के
अवसर पर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें वह अपने चंद पार्टी

समर्थकों को खुले तौर पर हिंसा के लिये प्रोत्साहित कर रहे हैं। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की पृष्ठभूमि रखने और
राम राज्य की बातें करने वाले इस मुख्यमंत्री की शब्दावली देखिये और स्वयं निर्णय कीजिये कि क्या यह देश के
किसी ऐसे लोकतान्त्रिक मुख्यमंत्री की भाषा प्रतीत होती है जो राम भक्त भी हो ? खट्टर ने कहा कि – कुछ नए
किसानों के जो संगठन नए उभर रहे हैं उनको प्रोत्साहन देना पड़ेगा,उनको आगे चलना पड़ेगा और हर ज़िले में
ख़ास तौर पर उत्तर व पश्चिम हरियाणा के अपने किसानों के 500-700-हज़ार लोग आप लोग अपने खड़े करो।
उनको वालंटियर बनाओ और फिर जगह जगह 'शठे शाठ्यम समाचरेत'(यह कहते हुए बेशर्मी भरी हंसी ) यानी हिंदी
में जैसे को तैसा। उठा लो डण्डे , हायें? ठीक है ?(चार छः लोगों की तालियां ) वह भी देख लेंगे। और दूसरी बात
यह है कि जब उठावेंगे डण्डे तो ज़मानत की परवाह न करो,महीना छः महीना दो महीना रह (जेल में ) आवेंगे ना
तो इतनी पढ़ाई इस मीटिंगों में नहीं होगी अगर दो चार महीने (जेल में ) वहां रह आओगे तो बड़े लीडर अपने आप
बन जाओगे। दो चार महीनों में बड़े नेता अपने आप बन जाओगे,यह इतिहास में नाम लिखा जाता है।' यह शिक्षा दे
रहे हैं राम भक्त एवं संघ प्रचारक तथा प्रधानमंत्री के संघ सखा रहे खट्टर साहब। क्या इस भड़काऊ सीख देने व
हिंसा के लिये उकसाने वाले व्यक्ति पर आपराधिक मामला नहीं बनता?
इसका जवाब संयुक्त किसान मोर्चा के नेता गुरनाम सिंह चढूनी द्वारा खट्टर की ही भाषा में दिया गया। चढूनी ने
कहा कि -'एक बात और सुनलो खट्टर साहब,दूसरे बच्चों को मरवाने की ज़रुरत नहीं है,लोगों को मरवाने की ज़रूरत
नहीं है,एक तरफ़ से आप लठ्ठ उठा के आइये एक तरफ़ से मैं लठ्ठ उठा के आता हूँ -अगर आपने मेरे को हरा
दिया तो मैं यूनियन छोड़ जाऊँगा ,आपका ग़ुलाम रहूंगा और अगर आप हार गये तो आप मुख्यमंत्री का पद छोड़
देना हमारी बातें मान लेना बस फ़ैसला यहीं पर हो जाये। क्यों लोगों से आप लठ्ठ उठवाते हो क्यों हमारे से
उठवाते हो। यहीं पर निपट जायेगा फ़ैसला सीधा,आप और हम टकरा लेते हैं और मैसेज भेज देना,मेरा नंबर आपके
पास होगा,जब आप का दिल करे आ जाना स्टेज लगवा देना, सबके सामने डण्डा बजायेंगे,खुल्ले मैदान में बजायेंगे।
चैलेन्ज है मेरा आपको।' ज़रा सोचिये भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश में जिसे प्रधानमंत्री पिछले दिनों अमेरिका में
विश्व के लोकतंत्र की मां ' की संज्ञा देकर आये हैं वहां किस तरह के 'तालिबानी ' अंदाज़ के अफ़सोसनाक संवाद
जनता और सत्ता प्रमुखों के बीच सुनाई दे रहे हैं ? क्या हिंसा से किसी भी समस्या का समाधान हो सकता है ?
आख़िर यह राम राज है या लट्ठ राज ?
उधर उत्तर प्रदेश में भी विकास की चाहे जितनी बातें की जा रही हों परन्तु हिंसा,अराजकता,फ़र्ज़ी मुठभेड़ों का जो
दृश्य इस राज्य में दिखाई दे रहा है उसे भी राम राज तो हरगिज़ नहीं 'लठ्ठ राज' ज़रूर कहा जा सकता है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ क़ानूनी प्रक्रियाओं व अदालतों को नज़रअंदाज़ करते हुए सीधे 'ठोक देने ' की बातें
विधानसभा तक में करते सुने गये हैं। वे कह चुके हैं कि 'अपराधी या तो सुधर जाएं, नहीं तो ठोंक दिए जाएंगे.'
उनकी इस चेतावनी के बावजूद प्रदेश में अपराध बढ़ रहे हैं। लखीमपुर की दुःखद व अफ़सोसनाक घटना ने और
साबित कर दिया कि किसानों के आंदोलन से निपटने के लिये सरकार क्या करना चाह रही है ? अभी कुछ दिन
पहले ही उत्तर प्रदेश भाजपा द्वारा किसानों को डराने धमकाने वाला एक कार्टून ट्वीटर के माध्यम से जारी किया
गया था जिसकी भाषा इस तरह थी – 'सुना लखनऊ जा रहे तम, किमें पंगा न लिये भाई…,योगी बैठ्या है बक्कल
उतार दिया करै,और पोस्टर भी लगवा दिया करै'। गोया उत्तर प्रदेश हो या हरियाणा इन सभी राज्यों के निर्वाचित
मुख्यमंत्रियों व सत्तारूढ़ दल की भाषा सुनकर यह नहीं कहा जा सकता कि यह गाँधी के महान लोकतंत्र की
राजनैतिक विरासत संभालने वाले लोग या राम राज लाने वाले लोग हैं। बल्कि यह ज़रूर कहा जा सकता है कि
जनता से इनका -'वादा था राम राज का लठ्ठ राज दे दिया'?


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