-राजेश माहेश्वरी-
सेठ बनवारीलाल नगर के एक प्रसिद्ध उद्योगपति थे। उनकी एकमात्र संतान मुकुंदीचंद शिक्षा, सामाजिक गतिविधि एवं साहित्य के क्षेत्र में काफी प्रतिभावान समझे जाते थे। उनके स्वभाव में एक बहुत बडी कमजोरी थी कि उन्हें धन का घमंड होने के साथ साथ वे वाचाल थे। उन्हें गुस्सा बहुत जल्दी आ जाता था। इस अवस्था में वे कब किसे क्या कह दें, इसका उन्हें खुद भी ध्यान नहीं रहता था।
एक दिन उन्होंने कारखाने में श्रमिक नेता को बुलाकर पूछा कि कारखाने में समुचित उत्पादन और गुणवत्ता क्यों नहीं आ रही है ? इस विषय पर बातचीत होते होते मुकुंदीचंद नाराज हो गये और श्रमिक नेता एवं श्रमिकों के प्रति अपशब्दों का प्रयोग करने लगे। यह सुनकर श्रमिक नेता भड़क उठा और दोनों के बीच तनातनी एवं बहस होने लगी। यह जानकर सारे कर्मचारी अपनी ड्यूटी छोड़कर मुकुंदीचंद के कमरे के बाहर खडे हो गये। उनमें से तीन लोग वार्तालाप हेतु मुकुंदीचंद के पास गये। वहाँ पर बातचीत के दौरान मुकुंदीचंद इतने गुस्से में आ गये कि उन्होंने तीनों को थप्पड़ मार दिया। यह देखकर श्रमिक नेता ने बाहर आकर सभी मजदूरों को इस घटना से अवगत कराया। वे यह सुनते ही भड़क उठे और सब के सब एक साथ कमरे के अंदर घुस गये और मुकुंदीचंद से हाथापाई करने लगे।
जैसे ही इस घटना की सूचना सेठ बनवारीलाल को मिली वे दौडे दौडे कारखाने आये। वहाँ के माहौल को देखकर हतप्रभ रह गये उन्होंने तुरंत पुलिस बुलाकर बड़ी मुश्किल से कर्मचारियों पर नियंत्रण करके मुकुंदी की जान बचायी। इसके बाद बनवारीलाल जी ने मुकंदी को कहा कि मैंने कई बार तुम्हें समझाया था कि हमें अपनी वाणी पर नियंत्रण रखना चाहिए परंतु तुम्हारी वाणी हमेशा अनियंत्रित होकर ऐसे शब्दों में उलझ जाती है जिससे सामने वाला अपने को अपमानित महसूस करता है।
आज के घटनाक्रम से परिवार का कितना नाम खराब हुआ है,जिस संस्थान में सभी कर्मचारी मेरे प्रति सम्मान रखते है वहाँ पर मेरा ही बेटा पिटकर घर आ रहा है। तुम्हारी क्या प्रतिष्ठा बची है और अब किस मुँह से तुम कार्यालय आओगे। यह सुनकर और आत्मचिंतन करके मुकुंदीचंद ने अपनी गलती महसूस की और भविष्य में अपनी वाणी पर लगाम रखने की कसम खाई। इसलिए कहा जाता है कि:-
“ ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोए।
औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होए।। “