अर्पित गुप्ता
आज जब देश की आधी आबादी को बराबर का दर्ज़ा मिलने की बात की जाती यह केवल भ्रम की बातें बन कर रह
गई है और इस भ्रम को तोडा है बार – बार कोरोना वायरस के कारण लगने वाले लॉकडाउन ने । लॉकडाउन के
करण कई कंपनियों ने पिछले एक साल से कर्मचारियों को रिमोट वर्क की सुविधा दे दी खासकर महिला कर्मचारियों
को। जिसका साइड इफेक्ट हम सभी की जिंदगी पर हुआ लेकिन सबसे ज्यादा प्रभावित हुई हैं औरतें | महिलाओं के
लिए लॉकडाउन का उनके लिए मुसीबत बन गया |इस एक साल के वर्क फ्रॉम होम करने के दौरान महिलाओं के
लिए जहां घर और ऑफिस के काम में संतुलन बैठाना मुश्किल हुआ, वहीं महिलाओं और अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों
को शोषण और हिंसा का सामना भी पहले से कई गुना ज्यादा करना पड़ा। टेक इंडस्ट्री का विश्वेलषण करने वाले
एक प्रोजेक्ट ने 3000 महिलाओं पर सर्वे किया और ये जाना कि रिमोट कल्चर से महिलाओं की स्थिति पर क्या
प्रभाव पड़ा है। सर्वे से ये पता चला कि काम के बढ़ते घंटों और दबाव से जहां चिंता बढ़ी, वहीं उनके साथ होने वाले
उत्पीड़न और हिंसा के मामलों में भी बढ़ोतरी हुई।
ये केवल भारत में ही नहीं दुनिया भर में रिमोट वर्क की वजह से ये बदलाव छोटे से लेकर बड़े हर सेक्टर में देखने
को मिल रहे हैं । वैसे भी रिमोर्ट वर्क के चलते महिलाओं को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इसके
बावजूद महिलाओं की दिक्कतें उनके साथ होने वाले शोषण ने दोगुनी की हैं। रिमोर्ट वर्क करने से यह नुकसान
एशियन, ब्लैक और 50 साल से अधिक उम्र की महिलाओं को ज्यादा हुआ है। इस सर्वे में एक तिहाई से ज्यादा
महिलाओं ने ये माना कि लैंगिक समानता को लेकर उनके अनुभव जितने खराब महामारी के दौरान रहे, उतने पहले
कभी नहीं थे। यहां अल्पसंख्यक वर्ग में ऐसी महिलाओं की भी कमी नहीं रही जिन्हें रिमोट वर्क के साथ ही घर की
जिम्मेदारी निभाने और बच्चों की देखभाल के चलते नौकरी छोड़नी पड़ी।
घरेलू महिलाओं पर तो दबाव बना ही, लेकिन कामकाजी महिलाओं परेशानी और बढ़ गई । घर से काम करने की
वजह से ऑफिस आने जाने का समय बचा तो कंपनियों ने वर्किंग ऑवर्स बढ़ा दिए । वर्किंग वुमेन के ऊपर एक
साथ घर और ऑफिस के काम का प्रेशर बढ़ गया । महिलाओं को घरवालों का ख्याल रखने से लेकर खाना बनाने,
घर की साफ-सफाई और ऑफिस का काम, सब एक साथ मैनेज करना पड़ रहा है ।
हालत यह है कि वर्किंग वुमेन अपना ख्याल नहीं रख पा रहीं. खाना-पीना और सेल्फ केयर को महिलाओं ने
दरकिनार कर दिया है, जिससे उनकी सेहत पर असर पड़ रहा है. हफ्ते में एक दिन की छुट्टी भी घर के कामों में
ही निकल जाती है ।ऐसा इसलिए क्योंकि पुरुष घर के काम में हाथ नहीं बटाते. उनको लगता है यह मेरा काम
थोड़ी है? महिला घर पर ही तो है मैनेज कर लेगी ।वे खुद लैपटॉप खोलकर बैठ जाते हैं जैसे सिर्फ उनकी जॉब ही
महत्वपूर्ण है । घर की औरत का क्या है, किचन और ऑफिस एक साथ संभालती है तो ठीक है वरना छोड़ दे
नौकरी, क्या फर्क पड़ जाएगा ।कई महिलाओं ने इन परेशानियों और मेंटल प्रेशर के चलते जॉब छोड़ भी दी । उसके
बाद उनको आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा। आखिर उनकी भी अपनी व्यक्तिगत जरूरतें होती है जिनके लिए
नौकरी करते हुए वह अपने घर वालों के सामने हाथ नहीं फैलाती रही है । एक सर्वे के अनुसार, एक तरफ वर्किंग
ऑवर्स बढ़ने और प्रेशर की वजह से महिलाओं की टेंशन बढ़ी. वहीं दूसरी ओर उनके साथ होने वाले उत्पीड़न और
घरेलु हिंसा के मामलों में भी बढ़ोतरी हुई ।तो अब महिलाओं की ऐसी हालत पर समाज के ठिकेदार क्या कहेंगे?
एक महिला को अपने स्त्रीत्व भाव को बचाना चाहिए? वह पुरुषों से आगे निकलना ही क्यों चाहती है? पूरे मन से
दिन-रात सबकी सेवा करना और सिर झुकाकर हां में हां मिलाना?