लोरी तुम्हें सुनाता था

asiakhabar.com | May 23, 2023 | 11:16 am IST
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विजय कनौजिया
तुम भी जब रूठा करती थी
मैं भी तुम्हें मनाता था
जब कोई उलझन होती थी
मैं ही तो सुलझाता था..।।
तन्हाई में जब अक्सर तुम
छुप-छुप रोया करती थी
बनकर मीत तुम्हारा मैं ही
तुमको खूब हंसाता था..।।
बेबस और लाचारी लेकर
जब तुम गुमसुम रहती थी
भूलकर मैं अपने सारे ग़म
मन को मैं बहलाता था..।।
रात-रात भर करवट में जब
नींद तुम्हें न आती थी
नींद तुम्हें मैं अपनी देकर
लोरी तुम्हें सुनाता था..।।
तुम अवसरवादी बन बैठे
प्रेम रीति सब भूल गए
टूट गया वो प्रेम घरौंदा
जिस पर मैं इतराता था..।।
जिस पर मैं इतराता था..।।


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