विकास गुप्ता
ये सुखद एवं खुशी देने वाली खबरें हैं कि रोजाना सामने आ रहे केसों की संख्या में भी कमी देखी जा रही है।
भारत में हर सौ में से 88 मरीज ठीक हो रहे हैं यानी रिकवरी रेट 88.82 फीसदी तक जा पहुंचा है। लेकिन इन
उजालों के बीच फिर एक अंधेरा कम्युनिटी ट्रांसमीशन का छाया है, केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने भी इस
बात को स्वीकार किया है कि देश के कुछ राज्यों में कोरोना वायरस कम्युनिटी ट्रांसमीशन के फेज में पहुंच चुका है।
जून की शुरुआत में ही दिल्ली में यह बात सामने आ गई थी कि कोरोना के 50 प्रतिशत से ज्यादा मामलों में
स्रोत का पता नहीं चल रहा है। दिल्ली सरकार के बाद केरल और हाल ही में पश्चिम बंगाल सरकार ने भी
सामुदायिक संक्रमण को स्वीकारा है, शायद इसी दबाव में केंद्र सरकार को भी आंशिक रूप से मानना पड़ा है।
हालांकि इस सच को पूरी तरह से स्वीकार करने में दिक्कत क्यों है? एक और चिन्ता सामने दिख रही है कि
उपचार के बाद कोरोना से मुक्त हुए बड़ी संख्या में मरीज दूसरी बीमारियों के शिकार होकर मर रहे हैं या उनका
जीवन संकट में है। विशेषतः सांस लेने की दिक्क्त तो सामान्य है, वृद्धों के जीवन पर अनेक बीमारियां हावी हो
रही हैं, बच्चों एवं महिलाओं में भी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बढ़ी हैं।
यदि प्रधानमंत्री ने कोरोना मरीजों की घटती संख्या के बाद भी लोगों को संक्रमण से बचने के लिए आगाह करने
हेतु देश के नाम संबोधन की आवश्यकता समझी तो इसका मतलब है कि वह कहीं न कहीं इससे चिंतित हैं कि
लोग अपेक्षित सावधानी नहीं बरत रहे हैं। उन्होंने यह सही कहा कि बहुत से ऐसे वीडियो सामने आ रहे हैं, जिनमें
यह दिखता है कि लोगों ने सतर्कता बरतनी बंद कर दी है। इसका कारण यह मिथ्या धारणा है कि कोरोना चला
गया है या जाने वाला है। अभी ऐसे किसी नतीजे पर पहुंचना सही नहीं। इस नतीजे पर पहुंचने और उसके चलते
सावधानी का परिचय न देने के खतरनाक परिणाम हो सकते हैं- ठीक वैसे ही जैसे कई यूरोपीय देशों और अमेरिका
में देखने को मिल रहे हैं। वहां कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर ने सिर उठा लिया है और इसके चलते फिर से
प्रतिबंधात्मक उपाय लागू करने पड़ रहे हैं। यूरोप और अमेरिका में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर का एक कारण
तो लोगों की ओर से पर्याप्त सतर्कता न बरतना दिखता है और दूसरा, सर्दियों में इस वायरस की सक्रियता बढ़
जाना। भारत में भी सर्दी बढ़ रही है और इसी के साथ त्योहारों के आगमन के कारण सार्वजनिक स्थलों में भीड़
बढ़ती दिख रही है।
धार्मिक स्थलों में श्रद्धालुओं की बढ़ती भीड़ चिंता का कारण है- इसलिए और भी, क्योंकि लोग न तो शारीरिक दूरी
को लेकर सचेत दिख रहे हैं और न ही मास्क का सही तरह उपयोग कर रहे हैं। आखिर मास्क का उचित तरीके से
उपयोग करने में क्या कठिनाई है? जब यह साफ है कि शारीरिक दूरी और मास्क का इस्तेमाल ही कोरोना संक्रमण
से बचाव का प्रभावी उपाय है, तब फिर उसे लेकर लापरवाही बरतना खुद के साथ औरों और साथ ही देश को भी
मुश्किल में डालना है। लोगों की लापरवाही केवल स्वास्थ्य ढांचे की ही चुनौतियां नहीं बढ़ा रही, बल्कि आर्थिक-
व्यापारिक गतिविधियों को गति देने में भी बाधक बन रही है।
ठीक हुए कोरोना पीड़ितों में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं एक गंभीर एवं चिन्ताजनक स्थिति है, इस स्थिति को
गंभीरता से लेना होगा एवं सरकारों को संवेदनशील एवं सर्तक होना होगा। देश के अनेक इलाकों में संक्रमण थम
गया है और लोग खतरा महसूस नहीं कर रहे हैं, देखने में यह भी आ रहा है कि जिन इलाकों में आज भी कोरोना
कहर बरपा रहा है, वहां घोर लापरवाही बरती जा रही है, न शारीरिक दूरी की पालना हो रही है और न कोई मास्क
पहन रहा है। जिन इलाकों में ज्यादा मरीज हैं, वहां इस श्रृंखला की पड़ताल और उसे तोड़ने की कोशिश अब पहले
जैसी नहीं हो रही है। एक समय था, जब कहीं एक भी मामला सामने आता था, तब उसकी श्रृंखला खोजी जाती
थी। श्रृंखला खोजने की बाध्यता से हम शायद मई महीने में ही बाहर निकल आए हैं। अनेक मंत्रियों और नेताओं
की कोरोना की वजह से मौत हुई है या अनेक बीमार भी हुए हैं, पर शायद उनके मामले में भी कोरोना स्रोत या
श्रृंखला की खोज नहीं की गयी है। ऐसे में, सामुदायिक संक्रमण की आंशिक घोषणा औपचारिकता मात्र है, भले अब
इस विवाद में जाने की जरूरत न हो, लेकिन अभी कोरोना का संकट टला नहीं है, इसे स्वीकारने, सावधानी बरतने
एवं संवेदनशील होने में ही सबका हित है।कोरोना से बचने के दिशा-निर्देश एकदम स्पष्ट हैं। हर किसी को इतनी
सावधानी तो सुनिश्चित करनी ही चाहिए कि किसी भी सूरत में कोरोना न हो और यह मानकर अपना बचाव करना
चाहिए कि कोरोना कहीं भी हो सकता है। ठंड के कारण कोरोना की दूसरी लहर आ सकती है। इसलिए अब बहुत
ज्यादा सावधानी की जरूरत है।