विकास गुप्ता
कोरोना वायरस संक्रमण के कारण पिछले साल लगाए गए लॉकडाउन के दौरान समूचे विश्व के लोगों की
आमदनी में कमी आई है। आमदनी में कमी आने का मुख्य कारण नौकरियां जाना और कार्य की अनुपलब्धता
ही थी। हर पांचवें व्यक्ति को भोजन खरीदने के लिए पैसा नहीं होने के कारण भूखे रहने पर मजबूर होना पड़ा
था।
बहरहाल केंद्र ने देश में कोविड-19 महामारी के कारण पिछले साल मार्च में राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की घोषणा
की थी, जिसके कुछ महीने बाद प्रतिबंधों में धीरे-धीरे ढील दी गई थी लेकिन लॉकडाउन हटने के पांच महीने
बाद तक उनकी स्थिति ऐसी ही रही और अब एक बार फिर से कोविड़-19 के मामलों में इज़ाफा हो रहा है।
आलम तो यह है कि अब फिर से कई राज्यों में लॉकड़ाउन का ऐलान भी किया जा चुका है परन्तु चिंताजनक
स्थिति यह है कि लॉकडाउन से पहले ही करीब 70 प्रतिशत लोगों की मासिक आय सात हजार रुपए थी और
शेष लोगों की मासिक आय तीन हजार रुपए थी। पहले से ही इतनी कम आय में भी गिरावट इस बात को
रेखांकित करती है कि संक्रमण का इन लोगों पर कितना बुरा असर पड़ा है।गौरतलब है कि अप्रैल और मई में
43 प्रतिशत लोगों की कोई आय ही नहीं थी। केवल 10 प्रतिशत लोग ही ऐसे हैं, जिनकी आय लॉकडाउन से
पहले वाले स्तर पर पहुंची है। वहीं जिन लोगों की अप्रैल और मई में कोई आय नहीं थी, उनमें से 34 प्रतिशत
लोगों की स्थिति सितंबर-अक्टूबर में भी ऐसी ही रही व भोजन खरीदने के लिए 12 प्रतिशत लोगों ने गहने
और तीन प्रतिशत लोगों ने अपनी जमीन बेची एंव अब अगर एक बार फिर देश में लॉकड़ाउन लग गया तो
अवश्य ही स्थिति और भयावह हो जाएगी जिससे उभरने में अवश्य ही अधिक समय लगेगा जिसमें एक बार
फिर देश की अर्थव्यवस्था नीचे गिर जाएगी।