शिशिर गुप्ता
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया को आगाह किया था कि कोरोना वायरस स्थायी तौर पर हमारे बीच मौजूद रहेगा।
अन्य वायरस की तरह इससे भी लड़ना हम सीख जाएंगे, लिहाजा कोरोना के मुताबिक जीवन-शैली को ढालना ही
पड़ेगा। लेकिन लॉकडाउन में ढील देना या उसे खोलना अभी ठीक नहीं होगा, उसके नतीजे खतरनाक हो सकते हैं,
क्योंकि उससे वायरस फैल सकता है। शायद इसी आगाह के मद्देनजर ही भारत सरकार ने 31 मई तक लॉकडाउन
जारी रखने का फैसला लिया है। कमोबेश लॉकडाउन-4 पहले जैसा ही है। अलबत्ता कुछ रियायतें भी देनी पड़ी हैं,
क्योंकि आर्थिक गतिविधियां भी बेहद जरूरी थीं। देश की अर्थव्यवस्था को जड़ और ध्वस्त भी नहीं किया जा
सकता, लिहाजा लॉकडाउन-4 शुरू होने से पहले ही फैक्टरियों और उद्योगों के चक्र घूमने लगे थे। आयात-निर्यात
भी शुरू हो चुका है। विदेशी निवेश संबंधी संवाद भी होने लगे हैं। बैंकों ने कर्ज देना शुरू कर दिया है। लॉकडाउन के
पहले तीन संस्करणों की तरह ही विमान, रेल, मेट्रो सेवाएं बंद रखी गई हैं। घरेलू और अंतरराष्ट्रीय उड़ानों को
अनुमति नहीं दी गई है। यदि दो गज दूरी, मास्क और ठोस अर्थव्यवस्था की बात करें, तो विमान सेवाओं को शर्तों
के साथ खोला जा सकता था। उनमें बैठने वाली जमात को कमोबेश इतना एहसास जरूर होगा कि संक्रमण से कैसे
बचना है। बसों को अंतरराज्यीय सहमति पर छोड़ दिया गया है। हर राज्य की अपनी बसें, सीमित संख्या में ही,
लॉकडाउन के साथ-साथ जारी रही हैं और शारीरिक दूरी का सबसे ज्यादा मजाक उन्हीं ने उड़ाया है। यदि बाजार,
कल-कारखाने, दफ्तर और उद्योगों को खोलने की अनुमति दी गई है, तो कमोबेश महानगर या बड़े शहर
सार्वजनिक परिवहन के बिना गतिमय कैसे हो सकते हैं? केंद्र सरकार ने लॉकडाउन के पूर्वाग्रहों और भय के
मद्देनजर ही सार्वजनिक परिवहन की प्रमुख सेवाओं पर पाबंदी जारी रखी है। हम अकसर कोरोना वायरस के
आंकड़ों की चर्चा करते रहे हैं। जब यह आलेख पढ़ा जाएगा, तो कोरोना से संक्रमित लोगों की संख्या एक लाख या
उसके इर्द-गिर्द हो सकती है। सोमवार सुबह ही आंकड़े 96,169 तक पहुंच चुके थे। पहली बार 24 घंटे में 5242
नए मरीज सामने आए हैं। बेशक अभी तक 36,824 मरीज स्वस्थ होकर अपने-अपने घर लौट भी चुके हैं। उस
आधार पर आकलन करें, तो फिलहाल 56,316 मरीजों का ही इलाज जारी है। यकीनन कोरोना संक्रमण का बढ़ता
यह आंकड़ा सामान्य नहीं है, सामुदायिक संक्रमण की आशंकाओं को ही पुख्ता करता है। यह आंकड़ा 10-11 दिनों
में ही दोगुना हुआ है, जबकि पूरा भारत इस दौरान लॉकडाउन में ही था। अब भी लॉकडाउन के मायने तालाबंदी ही
हैं, बेशक घोषित कर्फ्यू नहीं है, लेकिन अघोषित पहरेदारी ज्यादा है। राज्य सरकारों को इस बार कुछ ज्यादा
अधिकार दिए गए हैं। वे स्थानीय जोन का रंग तय करेंगी या सैलून सरीखी कुछ दुकानें खुलेंगी या नहीं, इसका
फैसला भी उन्हीं पर छोड़ दिया गया है, लेकिन दिशा-निर्देशों की स्पष्ट व्याख्या है कि ऐसे मामलों में केंद्र की
अंतिम अनुमति अनिवार्य होगी। केंद्र आकलन करना चाहेगा कि ऐसी व्यवस्थाओं से संक्रमण की अवस्था कैसी
रहेगी। स्कूल-कॉलेज, धार्मिक केंद्र, सार्वजनिक समारोह, जिम, बार, होटल और शॉपिंग मॉल पहले भी बंद थे और
अब जरा सख्ती के साथ तालाबंदी की जा रही है। इस बार खेल स्टेडियम या कॉम्प्लेक्स को खोला गया है, लेकिन
वे बिना दर्शकों के होंगे। खिलाड़ी वहां प्रैक्टिस कर सकेंगे। लॉकडाउन-4 में भी राज्यों की सीमाओं पर ऐसी
पहरेदारी, नाकेबंदी अब भी है मानो वे देशों की विवादित सरहदें हों! इस संदर्भ में केंद्र सरकार को तुरंत आदेश
सार्वजनिक करने चाहिए और पुलिस को आदेश अच्छी तरह पढ़ा-समझा भी दिए जाएं। बहरहाल लॉकडाउन का
मकसद कभी नहीं था कि इससे कोरोना की विदाई तय होगी। लॉकडाउन का मकसद था कि संक्रमण की चेन टूटनी
चाहिए, लेकिन यह चेन अब भी नहीं टूटी है, लिहाजा प्रख्यात चिकित्सकों की नसीहत है कि जहां तक संभव हो,
घर पर ही रहें। यदि बाहर निकलना मजबूरी ही है, तो मास्क, एक मीटर की दूरी और बार-बार हाथ धोते रहना
आदि को मंत्र की तरह याद रखें। वैसे भी सरकार ने सार्वजनिक स्थान पर मास्क न पहनने को दंडित करने का
फैसला लिया है। सवाल है कि क्या लॉकडाउन ही अंतिम जीवन-रेखा है? कमोबेश आने वाले करीब छह महीने तो
ऐसे ही लगते हैं।