शिशिर गुप्ता
एक विकासशील देश यदि लगातार चालीस दिन तक पूरी तरह बंद रहे तो यह सहज ही कल्पना की जा सकती है
कि उस देश के सामाजिक व आर्थिक ढांचे की क्या स्थिति हुई होगी। आज भारत का आम नागरिक जो पिछले
चालीस दिन से अपने घरों में बंद है, और अब उसकी सहनशक्ति की अग्निपरीक्षा शुरू हो चुकी है, वहीं देश का
आर्थिक विकास भी ठहर चुका है, उधोगो की धुरी (मजदूर) आज जहॉ रोटी की तलाश में दर-दर की ठोंकरे खाने को
मजबूर है, वहीं हमारे देश की विकास दर एक फीसदी से भी कम पर आने की संभावना बढ़ गई है, और अभी
कोरोना से इस जंग का कोई अंत भी नजर नही आ रहा है, संभावना व्यक्त की जाने लगी है कि पूरे देश में जारी
लॉकडाउन अभी अगले बीस दिन और चलेगा और उसके बाद भी आगे कुछ नही कहा जा सकता।
कोरोना ने जहॉ विश्व के अन्य देशों के साथ हमारे देश के आम आदमी को भी भयग्रस्त और कमजोर कर दिया है,
वहीं आज यही आम आदमी अपनी दैनन्दिनी वस्तुओं के अभाव में परेशान है, उसके पास परिवार को दो जून की
रोटी खिलाने इतना भी राशन नही है। सरकार व जिला प्रशासन की घर घर जरूरी सामान पहुचाने की घोषणाऍ भी
मात्र घोषणाऍ बनकर रह गई है। आम आदमी को सब्जी तो दूर दाल-रोटी भी नसीब नही हो पा रही है, ऐसी
स्थिति में ’लॉकडाउन‘ आगे बढाने की घोषणाओं से उसके दिल की धड़कन बढती जा रही है, और वह अपने आपको
असहाय समझने लगा है, पिछले डेढ महीने से आम आदमी या मजदूर को वेतन व मजदूरी भी नही मिल पाई है,
इसके कारण वह अपनी आर्थिक दुरावस्था को लेकर भी परेशान हो गया है।
खैर, यह तो हुई आम आदमी की बात। अब यदि हम राज्य या केन्द्र सरकार की बात करें तो ये सरकारें भी
आर्थिक दृष्टि से दिनों दिन कमजोर होती जा रही है। मौजूदा संक्रमण काल के चलते केन्द्र को बीस हजार करोड़
और राज्यो को 824 करोड रूपए का राजस्व कम मिल पाएगा, यह स्थिति लाकडाउन ने तीन मई तक चलते रहने
को लेकर है, यदि इसे दो सप्ताह भी और बढाया जो यह राजस्व घाटा अधिक बढ. जाएगा। यह तो राज्य व केन्द्र
के राजस्व घाटे की स्थिति है, वैसे लाकडाउन के कारण पूरे देश को करीब दो लाख करोड़ का नुकसान विभिन्न
क्षेत्रों में अब तक परिलक्षित हो चुका है।
यद्यपि यह सही है कि इस कोरोना महामारी के फैलाव से देश को बचाने का एकमात्र उपाय लॉकड़ाउन ही है, इसके
लिए हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सूझ-बूझ की पूरा विश्व तारीफ भी कर रहा है, यह भी कहा जा रहा है कि
यदि भारत में दूरदर्शिता का उपयोग कर यदि लॉकडाउन लागू नही किया गया होता तो जून अंत तक देश में 25
लाख मौतें हो जाती, इसलिए लॉकडाउन ने देश को इस मानव क्षति से बचा लिया, और यह भी कहा जा रहा है
कि यदि लाकडाउन नही होता तो पूरा देश कोरोना की राजधानी बन जाता, इस दृष्टि से लाकडाउन का प्रधानमंत्री
का फैसला काफी उचित व राष्ट्र के हित मे है, अब यह भी सही है कि संक्रमण काल हर तरह की अग्निपरीक्षा तो
होता ही है, और इसमें कोई दो राय नही कि भारत इसमें शत-प्रतिशत खरा उतरा है।
किन्तु इस संक्रमण दौर के चलते यह भी कहना पडेगा कि कुछ अवसरवादी तत्वों ने इस संकट काल का भी पूरा
फायदा उठाने का प्रयास किया। महामारी की आड़ में कई देशों के शासको ने मनमाने अधिकार हथियायें, वहीं 84
देशो के शासको ने अपने देशों में आपातकाल लागू किया।
कुल मिलाकर यदि हम विश्व की बात छोड अपने ही देश की बात करें तो ऐस लगने लगा है कि हमारा देश भी
आर्थिक आपातकाल के दौर से गुजर रहा है, किन्तु जैसा प्रधानमंत्री जी ने कहा ”जान है तो जहान है“ यदि देश
जीवित है तो आर्थिक स्थिति तो आगे-पीछे सुधर ही जाएगी। फिलहाल तो लॉकडाउन में हर आम और खास को
अपना हौसला बनाकर रखना है, तभी हम इस संकट से उबर पाएगें।