अनिल कुमार शर्मा
जोत रहा था खेत
पूस मास की कड़कड़ाती सर्दी में
और लिख रहा था
हल की नोंक से भविष्य की कविता
सींचकर धरती को पसीने से
बो रहा है मेहनत का बीज
लिख रहा है फिर एक कविता
माह मास में वर्षा की आशा में
बाहर आ गये हैं धरती के गर्भ से
उसकी मेहनत के बीज के अंकुर
लहलहाने लगी है आशा की फसल
लिख रहा है फिर एक ताज़ा कविता
फाल्गुन में भुना अनाज खाने की
होली मनाने की
प्रकृति के रक्षकों पर कुपित प्रकृति
ओला वृष्टि
फसल की अंत्येष्टि
लिख रहा है वह
आत्मदाह शीर्षक पर
एक अनिवार्य
सामयिक कविता
बहस होगी इस कविता पर
लिखेंगे लेखक कवितायें
अपने गुट के अनुरूप
लिखे जायेंगे सम्पादकीय
घबराई व्यवस्था करेगी घोषणायें