हरी राम यादव
चौराहे पर खड़ा टमाटर,
गुस्से में है एकदम लाल।
फड़फड़ा रहे उसके नथुने,
खड़े हुए हैं सिर के बाल।
बोल रहा है गर्व से वह,
छोड़ूंगा पीछे अरहर दाल।
दो महीने पीछे मुझको,
समझा था फ्री का माल ।
अभी तो सौ ही पहुंचा हूं,
आगे मचाऊंगा और धमाल।
मंहगाई की पूजा करने वालों,
मेरे लिए भी सजा लो थाल।।
अदरक बोली सुन टमाटर,
ज्यादा मत कर उछल-कूद।
मेरे आगे तू हैं एकदम बौना,
तेरा नहीं है कोई वजूद ।
तू सौ के क्या पार हुआ,
घमंड में है जैसे धन सूद।
मैं दो सौ चालीस पहुंची,
पर चुप बैठी जैसे फफूंद।
पास तुम्हारे धनिया पहुंची,
लेकिन रखी उसने आंखें मूंद।
तीखी मिर्ची के क्या कहने,
वह भी लगा रही ऊंची कूद ।।